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रविवार, 12 अगस्त 2018

विचार



      जब मार्शल मेक्लूहन ने 1964 में वाक्याँश “मीडिया ही सन्देश है” दिया था, उस समय पर्सनल कम्पूटर नहीं थे, मोबाइल फोन काल्पनिक वैज्ञानिक कहानियों में होते थे और इंटरनैट का अस्तित्व नहीं था। आज हम समझ सकते हैं कि इस डिजिटल युग में हमारे विचारों को प्रभावित करने के संबंध में वह कैसी महान दूरदर्शिता थी। निकोलस कार्र की पुस्तक, The Shallows: What the Internet is Doing to Our Brains में उन्होंने लिखा है “[मीडिया] हमारे विचारों के लिए न केवल सामग्री प्रदान करता है, वरन वह हमारे विचारों की प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है। और नैट एकाग्र रहने और विचार करने की मेरी क्षमता को कम करता चला जा रहा है। चाहे मैं ऑनलाइन हूँ अथवा नहीं, मेरा मस्तिष्क अब जानकारी को वैसे ग्रहण करना चाहता है जैसे नैट उसे वितरित करता है: अति शीघ्रता से प्रवाहित होते रहने वाले टुकड़ों में।”

      मुझे परमेश्वर के वचन बाइबल के जे. बी. फिलिप्स के अनुवाद में रोमियों 12:2 को जिस प्रकार से कहा गया है वह पसन्द है: “अपने चारों ओर के संसार को आपको दबाकर अपने सांचे में न ढालने दें, परन्तु परमेश्वर को अन्दर से आपके मनों को नए सांचों में ढालने दें, जिससे आप व्यावाहारिक रीति से प्रमाणित कर सकें कि आपके लिए परमेश्वर की योजनाएं भली हैं, उसकी सभी मांगों को पूरा करती हैं और आपको सच्ची परिपक्वता की ओर ले जाती हैं।” यह बात आज हमारे लिए कितनी प्रासंगिक है, जब हम देखते हैं कि सँसार हमारे विचारों और मनों द्वारा सामग्री पर कार्यवाही करने की क्षमता और विधि को कैसे प्रभावित कर रहा है।

      हम अपने चारों से आती रहने वाली जानकारी की बाढ़ को तो नहीं रोक सकते हैं, परन्तु हम परमेश्वर सेः माँग सकते हैं कि वह हमारी सहायता करे कि हम अपने ध्यान उसी पर केंद्रित रखें और हमारे जीवनों में उसकी उपस्थिति के द्वारा अपने विचारों को ढाले जाने दें। - डेविड मैक्कैस्लैंड


सँसार को नहीं, परन्तु परमेश्वर के आत्मा को अपने मन-विचारों को ढालने दें।

हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्न कर। - भजन 51:10

बाइबल पाठ: रोमियों 12:1-8
Romans 12:1 इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान कर के चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।
Romans 12:2 और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।
Romans 12:3 क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।
Romans 12:4 क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही सा काम नहीं।
Romans 12:5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह हो कर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
Romans 12:6 और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे।
Romans 12:7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखाने वाला हो, तो सिखाने में लगा रहे।
Romans 12:8 जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे।


एक साल में बाइबल: 
  • भजन 84-86
  • रोमियों 12