हाल ही में मैंने अमेरिका में व्यक्तियों के लिए जासूसी का काम करने वाले एक जन के बारे में पढ़ा जो लोगों के दरवाज़े पर जाकर खटखटाता था और जो भी दरवाज़ा खोलता उसे अपनी पहचान बताने वाला बिल्ला दिखाकर कहता, "मुझे पता है कि मुझे आपको मेरे यहाँ आने का कारण बताने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।" अनेक अवसरों पर दरवाज़ा खोलने वाला भौंचका रह जाता और कह उठता, "आपको बात का पता कैसे चला?" और इससे काफी पहले हुए किसी अपराधिक कार्य का भेद खुलना आरंभ हो जाता था। स्मिथसोनियन पत्रिका में इसके विषय में लिखते हुए रौन रोज़ेनबॉम ने लोगों की इस प्रतिक्रिया के बारे में लिखा, "यह विवेक के प्राथमिक बल का कार्य, हृदय के अपने आप से चल रहे भीतरी वार्तालाप का प्रगटिकरण है।"
हम सब अपने बारे में अनेक ऐसी बातें जानते हैं जो अन्य कोई नहीं जानता - हमारी असफलताएं, हमारे दोष, हमारे पाप - चाहे हम ने परमेश्वर के समक्ष इन सबका अंगीकार कर लिया है, लेकिन वे लौट लौट कर हमें दोषी ठहराने के लिए हमारे सामने आ खड़े होते हैं। प्रभु यीशु के एक निकट अनुयायी, यूहन्ना ने हमारे प्रति परमेश्वर के प्रेम और उसके द्वारा हमें उसकी आज्ञाकारिता में बने रहने के निर्देशों के विषय में लिखा: "इसी से हम जानेंगे, कि हम सत्य के हैं; और जिस बात में हमारा मन हमें दोष देगा, उसके विषय में हम उसके साम्हने अपने अपने मन को ढाढ़स दे सकेंगे। क्योंकि परमेश्वर हमारे मन से बड़ा है; और सब कुछ जानता है" (1 यूहन्ना 3:19-20)।
परमेश्वर के प्रति हमारा विश्वास हमारे प्रति प्रभु यीशु में होकर किए गए उसके प्रेम और क्षमा के द्वारा आरंभ एवं घनिष्ठ होता है ना कि हमारे किसी कर्म के द्वारा, "...और इसी से, अर्थात उस आत्मा से जो उसने हमें दिया है, हम जानते हैं, कि वह हम में बना रहता है" (1 यूहन्ना 3:24)। परमेश्वर जो हमेशा हमारी हर बात की संपूर्ण जानकारी रखता है, हमारी अपनी आत्मनिन्दा से बढ़कर है, और अपने महान प्रेम में होकर ही हमारे पक्ष में कार्य करता है। - डेविड मैक्कैसलैंड
जिसने मसीह यीशु को स्वीकार कर लिया है, उसे परमेश्वर से दण्ड स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं होगी।
और धर्म का फल शांति और उसका परिणाम सदा का चैन और निश्चिन्त रहना होगा। - यशायाह 32:17
बाइबल पाठ: 1 यूहन्ना 3:16-24
1 John 3:16 हम ने प्रेम इसी से जाना, कि उसने हमारे लिये अपने प्राण दे दिए; और हमें भी भाइयों के लिये प्राण देना चाहिए।
1 John 3:17 पर जिस किसी के पास संसार की संपत्ति हो और वह अपने भाई को कंगाल देख कर उस पर तरस न खाना चाहे, तो उस में परमेश्वर का प्रेम क्योंकर बना रह सकता है?
1 John 3:18 हे बालकों, हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें।
1 John 3:19 इसी से हम जानेंगे, कि हम सत्य के हैं; और जिस बात में हमारा मन हमें दोष देगा, उसके विषय में हम उसके साम्हने अपने अपने मन को ढाढ़स दे सकेंगे।
1 John 3:20 क्योंकि परमेश्वर हमारे मन से बड़ा है; और सब कुछ जानता है।
1 John 3:21 हे प्रियो, यदि हमारा मन हमें दोष न दे, तो हमें परमेश्वर के साम्हने हियाव होता है।
1 John 3:22 और जो कुछ हम मांगते हैं, वह हमें उस से मिलता है; क्योंकि हम उस की आज्ञाओं को मानते हैं; और जो उसे भाता है वही करते हैं।
1 John 3:23 और उस की आज्ञा यह है कि हम उसके पुत्र यीशु मसीह के नाम पर विश्वास करें और जैसा उसने हमें आज्ञा दी है उसी के अनुसार आपस में प्रेम रखें।
1 John 3:24 और जो उस की आज्ञाओं को मानता है, वह उस में, और वह उन में बना रहता है: और इसी से, अर्थात उस आत्मा से जो उसने हमें दिया है, हम जानते हैं, कि वह हम में बना रहता है।
एक साल में बाइबल:
- निर्गमन 36-38
- मत्ती 23:1-22