एक महिला ने, जो प्रभु यीशु के साथ अपने चलने
को एक अच्छे मसीही विश्वासी के समान सुदृढ़ बनाए रखना चाहती थी, और साथ ही पति के
पियक्कड़ होने की समस्याओं को भी झेल रही थी, कहा – “कभी कभी लगता है कि परमेश्वर
मेरी सुन ही नहीं रहा है।” वह महिला अनेकों वर्षों से प्रार्थना कर रही थी कि उसका
पति सुधार जाए परन्तु ऐसा हो नहीं रहा था। उस महिला के समान अनेकों अन्य मसीही
विश्वासियों ने भी इस परिस्थिति का सामना किया है, और कर भी रहे हैं।
जब हम परमेश्वर से बारंबार कुछ भली वस्तु या
भलाई की बात माँगें, कुछ ऐसा जिससे सरलता से उसकी महिमा हो सकती है, परन्तु हमारी
प्रार्थना फिर भी अनसुनी रहे, तो हम क्या सोचें? क्या वह हमारी प्रार्थना सुन रहा है
कि नहीं?
हम अपने तथा समस्त जगत के उद्धारकर्ता प्रभु
यीशु के जीवन से देखें। परमेश्वर के वचन बाइबल में लिखा है, क्रूस पर चढाए जाने के
लिए पकड़वाए जाने से ठीक पहले, प्रभु ने परमेश्वर पिता के साथ प्रार्थना में लंबा
समय बिताया। वह व्याकुल था, प्रार्थना में जूझ रहा था, परमेश्वर पिता के सामने
अपना हृदय उंडेल रहा था, परमेश्वर से विनती कर रहा था, “यह प्याला मुझ से दूर हो
जाए” (मत्ती 26:39)। परन्तु पिता परमेश्वर का स्पष्ट उत्तर था, “नहीं”; हमारे
उद्धार के लिए परमेश्वर को अपने पुत्र को क्रूस पर बलिदान होने की यातना उठाने के
लिए भेजना ही था। चाहे प्रभु यीशु को लगा कि पिता परमेश्वर ने उसे छोड़ दिया है (मत्ती
27:45-46), फिर भी उसने बलपूर्वक और सच्चे मन परमेश्वर से प्रार्थना की, क्योंकि
प्रभु को पूरा विश्वास था कि परमेश्वर उसकी सुन रहा है।
जब हम प्रार्थना करें, तो चाहे हम समझ सकें या
नहीं समझ सकें कि वह उसका उत्तर कैसे देगा, कब देगा, और क्या देगा; या कैसे उस
परिस्थिति में से भी हमारे लिए कुछ भलाई निकालेगा, फिर भी विश्वास बनाए रखें कि
परमेश्वर हमारी सुन रहा है, अपने समय और इच्छा के अनुसार उत्तर देगा, और उसका जो
भी उत्तर होगा, वह सर्वोत्तम होगा, हमारी भलाई के लिए ही होगा। हमें अपने सभी अधिकार
त्याग के, भरोसे के साथ प्रार्थना में रहने का यह कार्य करते रहना है।
हमें सर्वज्ञानी, सर्वसामर्थी परमेश्वर के
हाथों में सब कुछ छोड़ देना चाहिए; वह हमारी सुनता है, हमारे लिए मार्ग निकालता है,
हमारी भलाई के लिए ही कार्य करता है। - डेव ब्रेनन
जब
हम प्रार्थना के लिए घुटने झुकाते हैं, परमेश्वर सुनने के लिए कान झुकाता है।
दोपहर
से ले कर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अन्धेरा छाया रहा। तीसरे पहर के निकट यीशु
ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, एली, एली, लमा शबक्तनी अर्थात हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया? – मत्ती 27:45-46
बाइबल
पाठ: मत्ती 26:36-46
Matthew
26:36 तब यीशु अपने चेलों के साथ गतसमनी नाम एक स्थान में आया और
अपने चेलों से कहने लगा कि यहीं बैठे रहना, जब तक कि मैं
वहां जा कर प्रार्थना करूं।
Matthew
26:37 और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को साथ ले गया,
और उदास और व्याकुल होने लगा।
Matthew
26:38 तब उसने उन से कहा; मेरा जी बहुत उदास
है, यहां तक कि मेरे प्राण निकला चाहते: तुम यहीं ठहरो,
और मेरे साथ जागते रहो।
Matthew
26:39 फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुंह के बल गिरा, और यह प्रार्थना करने लगा, कि हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू
चाहता है वैसा ही हो।
Matthew
26:40 फिर चेलों के पास आकर उन्हें सोते पाया, और पतरस से कहा; क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग
सके?
Matthew
26:41 जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो,
कि तुम परीक्षा में न पड़ो: आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।
Matthew
26:42 फिर उसने दूसरी बार जा कर यह प्रार्थना की; कि हे मेरे पिता, यदि यह मेरे पीए बिना नहीं हट सकता
तो तेरी इच्छा पूरी हो।
Matthew
26:43 तब उसने आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्योंकि
उन की आंखें नींद से भरी थीं।
Matthew
26:44 और उन्हें छोड़कर फिर चला गया, और वही
बात फिर कहकर, तीसरी बार प्रार्थना की।
Matthew
26:45 तब उसने चेलों के पास आकर उन से कहा; अब
सोते रहो, और विश्राम करो: देखो, घड़ी
आ पहुंची है, और मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया
जाता है।
Matthew 26:46 उठो, चलें; देखो, मेरा पकड़वाने
वाला निकट आ पहुंचा है।
एक साल में बाइबल:
- उत्पत्ति 10-12
- मत्ती 4