मसीही विश्वासी के गुण
(7) - प्रभु
के समान प्रेम रखता है
सुसमाचारों में दिए गए प्रभु यीशु मसीह
के शिष्य के गुणों में से यह सातवाँ गुण है कि मसीही विश्वासी, जैसा प्रभु यीशु ने औरों
से रखा वैसे ही वह भी प्रेम रखता है। प्रभु यीशु ने क्रूस पर मारे जाने के लिए
अपने पकड़वाए जाने से ठीक पहले, शिष्यों के साथ फसह का भोज
खाते हुए, उन शिष्यों से कहा, “मैं
तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो:
जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे
से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो” (यूहन्ना 13:34-35)। आगे चलकर प्रेरित यूहन्ना ने पवित्र आत्मा की अगुवाई में अपनी पहली
पत्री में लिखा, “जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता है, क्योंकि परमेश्वर
प्रेम है” (1 यूहन्ना 4:8); “और
जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, उसको हम जान गए, और हमें उस की प्रतीति है; परमेश्वर प्रेम है: जो
प्रेम में बना रहता है, वह परमेश्वर में बना रहता है;
और परमेश्वर उस में बना रहता है” (1 यूहन्ना
4:16)।
प्रभु यीशु मसीह ने न केवल अपने शिष्यों
से वरन समस्त संसार के सभी लोगों से निःस्वार्थ, और अपने आप को बलिदान कर देने वाला
प्रेम किया। प्रभु ने अपने इस प्रेम का उदाहरण यहूदा इस्करियोती को भी अपने साथ
साढ़े तीन वर्ष रखने और उसे वही सब सामर्थ्य एवं अधिकार जो प्रभु ने अन्य शिष्यों
को दिए थे देने के द्वारा, तथा क्रूस पर से उन्हें यातना
देने वालों को भी क्षमा कर देने (लूका 23:34) के द्वारा
दिखाया। अपनी पृथ्वी की संपूर्ण सेवकाई के दौरान “कि
परमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ्य से अभिषेक किया:
वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा; क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था”
(प्रेरितों 10:38)।
आज हमारे लिए भी परमेश्वर पिता ने यही
निःस्वार्थ प्रेम दिखाया है, “प्रेम इस में नहीं कि हम ने परमेश्वर ने प्रेम किया;
पर इस में है, कि उसने हम से प्रेम किया;
और हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा”
(1 यूहन्ना 4:10)। और प्रभु यीशु ने भी यही
निःस्वार्थ, बलिदान वाला प्रेम दिखाया है “परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है,
कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा” (रोमियों 5:8)।
प्रभु चाहता है कि उसके शिष्य भी आपस में
तथा संसार के लोगों से ऐसा ही प्रेम रखें; यही संसार के सामने उसके शिष्य होने की पहचान होगी:
- “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो” (यूहन्ना 13:35)।
- “सो मैं जो प्रभु में बन्धुआ हूं तुम से बिनती करता हूं, कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए थे, उसके योग्य
चाल चलो। अर्थात सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज
धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो” (इफिसियों 4:1-2)।
- “और यदि किसी को किसी पर दोष देने को कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध
क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे
ही तुम भी करो” (कुलुस्सियों 3:13)।
यह कर पाना तब
तक संभव नहीं है जब तक शिष्य छठे गुण की बात, अपने आप का
इनकार करना, और पहले गुण की बात, पूर्ण
समर्पण और आज्ञाकारिता के साथ प्रभु यीशु के लिए कार्यकारी एवं उपयोगी होने के लिए
प्रतिबद्ध न हो। जब तक किसी में भी किसी भी बात के लिए जरा भी ‘अहं’ है, तब तक व निःस्वार्थ
और बलिदान वाला प्रेम नहीं कर सकता है।
किसी भी मनुष्य
के लिए, अपनी ही सामर्थ्य और योग्यता से, अथवा इच्छा के द्वारा, प्रभु द्वारा कहे गए सातों
गुणों में से एक का भी निर्वाह कर पाना संभव नहीं है। किन्तु हम मसीही विश्वासियों
के अंदर निवास करने वाला परमेश्वर पवित्र आत्मा हमें सामर्थ्य देता है, हमारा मार्गदर्शन करता है, कि हम अंश-अंश करके अपने
प्रभु यीशु की समानता में ढलते चले जाएं (2 कुरिन्थियों 3:18),
उसके समान सोचने, रहने, और
व्यवहार करने वाले बनते चले जाएं। संसार के दृष्टिकोण से ये सभी गुण दुर्बलता और
असफलता के चिह्न हो सकते हैं, किन्तु प्रभु ने इन्हीं गुणों
को पहले जी कर दिखाया, तब ही शिष्यों से करने के लिए कहा;
और हम जानते हैं कि“इस कारण परमेश्वर ने
उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में
श्रेष्ठ है” (फिलिप्पियों 2:9)। आज
इन्हीं गुणों के कारण प्रभु यीशु का नाम वह सर्वश्रेष्ठ तथा सर्वोच्च नाम है
“कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है;
वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। और परमेश्वर पिता की महिमा के
लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है” (फिलिप्पियों 2:10-11)।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में
अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके
वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और
सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यिर्मयाह
22-23
- तीतुस 1