अब मत्ती 1:18 और 20 को देखिए, जहाँ यह स्पष्ट लिखा
है कि यीशु मसीह का मरियम की कोख में आना किसी भी मानवीय प्रक्रिया के द्वारा नहीं
था, बल्कि पवित्र आत्मा के
द्वारा किया गया था। अर्थात न तो यूसुफ और न ही मरियम की, प्रभु के मरियम के गर्भ
में आने और बढ़ने में कोई भी भूमिका थी। साथ ही, यह यूसुफ और मरियम के “इकट्ठे होने से पहले” हुआ
था (मत्ती 1:18)। इसलिए मरियम की कोख में एक भ्रूण होने के समय से ही प्रभु यीशु
में किसी भी मनुष्य का कोई भी पाप स्वभाव वाला डीएनए नहीं था।
अब इब्रानियों 10:5 पर आइए – जो प्रभु यीशु
का स्वर्ग छोड़कर पृथ्वी पर आने से ठीक पहले का परमेश्वर पिता से हुआ वार्तालाप है।
यहाँ पर प्रभु यीशु एक बहुत महत्वपूर्ण बात कहता है – “मेरे लिये एक देह तैयार किया”;
अर्थात, परमेश्वर ने यीशु मसीह
के लिए एक मानवीय देह को तैयार किया और उसे मरियम की कोख में रख दिया, जिसमें प्रवेश करके
यीशु ने एक सिद्ध,
निष्पाप मनुष्य के रूप में,
बिना किसी मनुष्य के पापमय डीएनए के, बिना पाप स्वभाव के जन्म लिया था।
प्रभु यीशु के लिए इस रूप में जन्म लेना
अनिवार्य था,
ताकि उसके लिए यह पूर्ण सत्यनिष्ठा के साथ यह कहा जा सके कि उसने मनुष्य के समान
सब कुछ सहा किन्तु निष्पाप रहा (इब्रानियों 4:15)। हमारे पापों से हमें छुड़ा लेने
के लिए, प्रभु यीशु ने मानवीय
कोख में सीमित होकर बन्द रहना और फिर मनुष्य के समान जन्म लेने के समय की सारी
पीड़ा और समस्याओं और शिशु अवस्था से वयस्क होने तक की सभी बातों और समस्याओं को भी
सहन किया। दूसरे शब्दों में,
उसने हमारे लिए वह सभी कुछ सहन किया जो किसी भी अन्य मनुष्य को सामान्यतः सहना
होता है, अपने माँ के गर्भ में
आने से लेकर कलवरी के क्रूस पर चढ़ाए जाने और मृत्यु के समय तक।
इस सृष्टि का सृष्टिकर्ता, जिसके द्वारा और जिसके
लिए सभी कुछ सृजा गया (कुलुस्सियों 1:16), जिसने अपने शब्द के द्वारा इस सृष्टि की
रचना की (उत्पत्ति 1), उसने अपने इस अधिकार और सामर्थ्य को अपने लिए या आपने लाभ
के लिए कभी उपयोग नहीं किया,
लेकिन अपने आप को अपने सारे अधिकार और सामर्थ्य से खाली कर के मनुष्य का स्वरूप ले
लिया, और मृत्यु, क्रूस की
भयानक मृत्यु तक भी पिता परमेश्वर का आज्ञाकारी बना रहा (फिलिप्पियों 2:6-8),
जिससे कि हम परमेश्वर के साथ संगति में बहाल किए जाएँ, परमेश्वर से हमारा मेल-मिलाप हो जाए (रोमियों 5:1-11)।
और आज भी वह हमें अंश-अंश करके अपनी समानता में परिवर्तित करता जा रहा है (2
कुरिन्थियों 3:18)।
इसलिए वह पूर्णतः मनुष्य भी है और पूर्णतः
परमेश्वर भी, और हमें पूर्णतः पाप से छुड़ाने वाला परमेश्वर भी।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार
नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित
करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता
है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ
प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा
से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय
जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल
एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना
है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके
लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा
और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर
क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप
तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और
मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे
अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित
मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक
के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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The Lord Jesus had neither Joseph’s, nor Mary’s DNA; therefore there was no human sin nature in Him. Remember, Adam and Eve were created sinless and perfect; till Satan beguiled them into sinning, and brought imperfection and sin nature within them. Therefore, it is possible to be fully human, and yet be without sin, or without a sin nature, as Adam and Eve were before their fall.
Now see Matthew 1:18 and 20, where it very clearly says that the Lord
Jesus, in the womb of Mary, was conceived not of any human being, not through
or because of any human being, but of the Holy Spirit, i.e., neither Joseph nor
Mary had any role in His being conceived or being brought into the womb to
grow. And, this was before Joseph and Mary “came together” (Matthew 1:18). So
as an embryo in the womb of Mary, the Lord Jesus had no DNA of any human with a
sin nature or sin.
Come to Hebrews 10:5 - where the conversation of the Lord Jesus with God
the Father before His coming to earth is recorded. The Lord Jesus makes a very
important statement here - “But a body You have prepared for Me”; i.e., God had
prepared a human body for the Lord Jesus, which was placed in Mary’s womb and
into which the Lord Jesus entered, to be born as a perfect, sinless human
being, without any sin or sin nature, nor having any sinful human’s DNA.
It was necessary for the Lord to be so born, so it could truthfully be
said of Him that He suffered everything like any other human being, yet
remained sinless (Hebrews 4:15). To be our sin-substitute and redeemer, the
Lord Jesus even suffered being confined to a human womb, and the pains of being
born in the manner of a human being, then the pains and problems of growing up,
living, and suffering all things. In other words, He went through
everything like any other human being, from conception till His death on the
Cross of Calvary, for us.
The Creator of this universe, by whom and for whom everything was
created (Colossians 1:16), who brought creation into existence by His spoken
Word (Genesis 1), did not ever exercise this authority for Himself or any
benefit for self, but emptied Himself of all His power and authority and took
the form of a man, became obedient unto death to God the Father, even the death
of the cross (Philippians 2:6-8), so that we can be restored and reconciled
back into fellowship with God (Romans 5:1, 11), and be transformed bit by bit
into His likeness by the Holy Spirit (2 Corinthians 3:18).
So, He was fully man, fully God, fully perfect, and fully our redeemer
and Savior God.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your
decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and
heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is
respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of
the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of
your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the
only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but
sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart,
and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can
also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am
sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon
yourself, paying for them through your life.
Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you
rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are
the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and
redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me
under your care, and make me your disciple. I submit my life into your
hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your
present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and
blessed for eternity.