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शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

मन का संगीत

अपनी पुस्तक "Musicophilia: Tales of Music and the Brain" में लेखक औलिवर ने मानसिक रोगों के उपचार में संगित के प्रभाव को पूरा एक अध्याय दिया है। औलिवर ने लिखा है कि उसने देखा है कि "एलज़्हाईमर्स रोग (जो स्मरण शक्ति को नष्ट करके रोगी को परिवार और समाज में रहते हुए भी सबसे अलग-थलग कर देता है), के काफी बढ़े लक्षणों वाले रोगियों के समूह को भी जब संगीत सुनाया गया तो बीते समय की उनकी यादें, जिन्हें वे भूल चुके थे, सजीव हो गईं। पुराना संगीत सुनकर, जैसे जैसे वे उसे पहचानने लगे, रोगियों के चेहरे के भाव बदलने लगते हैं और उनके चेहरे पर रौनक आने लगती है। फिर एक दो जन उस संगीत को बजते हुए संगीत के साथ गाने लगते हैं। उनको गाते देखकर और रोगी भी उनके साथ सम्मिलित होने लगते हैं और धीरे धीरे सारा समूह ही एक साथ गाने लगता है, जबकि इससे पहिले उनमें से कुछ बिलकुल मौन रहते थे।"

औलिवर के समान मैंने भी ऐसी ही प्रतिक्रिया एलज़्हाईमर्स रोगियों की देख-रेख करने वाले एक स्थान पर जहां मेरी सास रहती थीं, उनके लिये आयोजित करी जाने वाली इतवार की चर्च सभा में देखी है। शायद आपने भी कुछ ऐसा अपने किसी प्रीय जन के साथ अनुभव किया हो, जिनकी स्मरण शक्ति धुंधली पड़ गई हो और कोई गीत सुनकर उनके अन्दर से प्रतिक्रिया आरंभ हो जाती है।

पौलुस ने इफुसुस के मसीहियों को प्रोत्साहित किया कि "दाखरस से मतवाले न बनो, क्‍योंकि इस से लुचपन होता है, पर आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ। और आपस में भजन और स्‍तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने अपने मन में प्रभु के साम्हने गाते और कीर्तन करते रहो" (इफिसियों ५:१८, १९)। ऐसे गीत जो परमेश्वर को महिमा देते हैं, मन की गहराईयों तक जाते हैं, जहां उनके अर्थ कभी लुप्त नहीं होते। ये स्तुति के गीत, उनमें व्याप्त कविता, लय और विचारों से भी बढ़कर मन एवं हृदय को स्वस्थ रखते हैं। - डेविड मैककैसलैंड


परमेश्वर के साथ लयबद्ध मन उसकी स्तुति गाये बिना रह नहीं सकता।

आपस में भजन और स्‍तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने अपने मन में प्रभु के साम्हने गाते और कीर्तन करते रहो। - इफिसियों ५:१९


बाइबल पाठ: इफिसियों ५:१५-२१

इसलिये ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो; निर्बुद्धियों की नाईं नहीं पर बुद्धिमानों की नाईं चलो।
और अवसर को बहुमूल्य समझो, क्‍योंकि दिन बुरे हैं।
इस कारण निर्बुद्धि न हो, पर ध्यान से समझो, कि प्रभु की इच्‍छा क्‍या है,
और दाखरस से मतवाले न बनो, क्‍योंकि इस से लुचपन होता है, पर आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ।
और आपस में भजन और स्‍तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने अपने मन में प्रभु के साम्हने गाते और कीर्तन करते रहो।
और सदा सब बातों के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्वर पिता का धन्यवाद करते रहो।
और मसीह के भय से एक दूसरे के आधीन रहो।

एक साल में बाइबल:
  • यशायाह १४-१६
  • इफिसियों ५:१-१६