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गुरुवार, 23 नवंबर 2017

खामोशी


   मेरे एक मित्र ने कहा, छिछले नदी-नाले सबसे अधिक शोर करते हैं, जो कि एक सुप्रसिद्ध कहावत, "गहरे जल निश्चल होते हैं" का विलोम था। उसके कहने का तात्पर्य था कि जो लोग सबसे अधिक शोर करने वाले होते हैं उनके पास कहने के लिए कुछ खास नहीं होता है। इस समस्या का एक पहलु और भी है, कि बहुत बोलने वाले ठीक से सुनते भी नहीं हैं। मुझे साईमन और गारफ़न्कल के एक गीत, Sounds of Silence में कही गई बात स्मरण आती है, लोग बिना ध्यान दिए सुनते हैं। वे कहे जा रहे शब्दों को कानों से तो सुनते हैं, परन्तु अपने विचारों को शान्त कर के वास्तव में ध्यान से मन से नहीं सुनते हैं। हमारे लिए भला होगा यदि हम हम शान्त हो कर ध्यान से मन से सुनना आरंभ कर दें।

   परमेश्वर का वचन बाइबल हमें बताती है कि "...चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय है" (सभोपदेशक 3:7)। अच्छी खामोशी, सुनने वाली खामोशी, नम्रता की खामोशी होती है। ऐसी खामोशी से सही सुना जाता है, बात को सही समझा जाता है, और फिर सही बात कही जाती है। नीतिवचन का लेखक लिखता है, "मनुष्य के मन की युक्ति अथाह तो है, तौभी समझ वाला मनुष्य उसको निकाल लेता है" (नीतिवचन 20:5)। बात की तह तक पहुँचने के लिए बहुत ध्यान से शान्त होकर सुनना अनिवार्य होता है।

   जब हम औरों की सुनते हैं, तो साथ ही हमें परमेश्वर की भी सुनने और जो वह कहता है उस पर ध्यान देने की भी आवश्यकता है। मैं उस घटना के बारे में सोचता हूँ जब फरिसी व्यभिचार में पकड़ी गई एक स्त्री को प्रभु के पास ले कर आए और उस स्त्री के विरुद्ध आरोपों तथा निन्दा की झड़ी लगाए हुए बोले जा रहे थे; परन्तु प्रभु खामोश होकर अपनी ऊँगली से मिट्टी पर कुछ लिख रहा था (देखिए यूहन्ना 8:1-11)। प्रभु क्या कर रहा था? मेरा सुझाव है कि वह परमेश्वर पिता की आवाज़ को सुन रहा होगा कि इस क्रुद्ध भीड़ को क्या उत्तर दिया जाए, और इस प्रिय स्त्री से क्या कहा जाए? प्रभु का अपनी खामोशी द्वारा दिया गया उत्तर आज भी संसार भर में गूँज रहा है, लोगों से बातें कर रहा है। - डेविड रोपर


समयानुसार खामोशी बहुत शब्दों से अधिक अर्थपूर्ण हो सकती है।

जहां बहुत बातें होती हैं, वहां अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुंह को बन्द रखता है वह बुद्धि से काम करता है। - नीतिवचन 10:19

बाइबल पाठ: सभोपदेशक 5:1-7
Ecclesiastes 5:1 जब तू परमेश्वर के भवन में जाए, तब सावधानी से चलना; सुनने के लिये समीप जाना, मूर्खों के बलिदान चढ़ाने से अच्छा है; क्योंकि वे नहीं जानते कि बुरा करते हैं। 
Ecclesiastes 5:2 बातें करने में उतावली न करना, और न अपने मन से कोई बात उतावली से परमेश्वर के साम्हने निकालना, क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में हैं और तू पृथ्वी पर है; इसलिये तेरे वचन थोड़े ही हों।
Ecclesiastes 5:3 क्योंकि जैसे कार्य की अधिकता के कारण स्वप्न देखा जाता है, वैसे ही बहुत सी बातों का बोलने वाला मूर्ख ठहरता है। 
Ecclesiastes 5:4 जब तू परमेश्वर के लिये मन्नत माने, तब उसके पूरा करने में विलम्ब न करना; क्यांकि वह मूर्खों से प्रसन्न नहीं होता। जो मन्नत तू ने मानी हो उसे पूरी करना। 
Ecclesiastes 5:5 मन्नत मान कर पूरी न करने से मन्नत का न मानना ही अच्छा है। 
Ecclesiastes 5:6 कोई वचन कहकर अपने को पाप में ने फंसाना, और न ईश्वर के दूत के साम्हने कहना कि यह भूल से हुआ; परमेश्वर क्यों तेरा बोल सुन कर अप्रसन्न हो, और तेरे हाथ के कार्यों को नष्ट करे? 
Ecclesiastes 5:7 क्योंकि स्वप्नों की अधिकता से व्यर्थ बातों की बहुतायत होती है: परन्तु तू परमेश्वर को भय मानना।

एक साल में बाइबल: 

  • यहेजकेल 20-21
  • याकूब 5