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गुरुवार, 31 मार्च 2016

जीवन जल


   यहाँ अमेरिका में, हम अमेरिका निवासी पिछ्ले अनेक वर्षों से बोतल-बन्द पानी पीने के आदि हो गए हैं, जबकि अधिकांश लोगों के पास नलों से साफ और सुरक्षित जल पाने की सुविधा है, लेकिन फिर भी लोग पानी खरीद कर ही पीना पसन्द करते हैं। लोगों को लगता है कि खरीदा गया पानी नल में आने वाले मुफ्त पानी से अच्छा है। जब एक सही चीज़ आपको निःशुल्क मिल रही है तो उसे खरीदने के लिए कीमत चुकाने की बात मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आती।

   यही बात हमारे आत्मिक जीवन पर भी लागू होती है। अनेक लोगों के लिए पापों की क्षमा और उद्धार को परमेश्वर से मुफ्त मिलने वाले उपहार के रूप में स्वीकार करना बहुत कठिन है; वे उसे प्राप्त करने के लिए कुछ कीमत चुकाना चाहते हैं, अपने प्रयास करना चाहते हैं। लेकिन इस कीमत चुकाने की इच्छा के साथ समस्य यह है कि पापों की क्षमा और उद्धार बहुत महंगा है, और कोई ऐसा नहीं है जो इतनी कीमत चुका सके, क्योंकि इसे खरीद पाना पूर्ण सिद्धता द्वारा ही संभव है (मत्ती 19:21)। इसीलिए मानव इतिहास में उस एकमात्र व्यक्ति ने ही, जो मन-ध्यान-विचार तथा प्राण-देह आत्मा में पूर्णतः सिद्ध, निष्पाप और निषकलंक था (रोमियों 5:18), सब के लिए यह कीमत चुका कर इस क्षमा और उद्धार को सबके लिए मुफ्त उपहार के रूप में उपलब्ध करवा दिया है। अब जो भी एक प्यासे के समान जीवन का जल पीने के लिए उसके पास आता है, उसे वह अनन्त जीवन का यह जल सेंत-मेंत प्रदान करने का वायदा करता है (यूहन्ना 4:14; प्रकाशितवाक्य 21:6)।

   लेकिन फिर भी कुछ लोग अनन्त जीवन के इस जल को पाने के लिए कुछ कीमत चुकाने का प्रयास करते हैं, अपने भले कार्यों, उपकारों तथा दान-दक्षिणा के द्वारा। यद्यपि आत्मिक सेवा के ये कार्य परमेश्वर की नज़रों में भले और महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनके द्वारा परमेश्वर से पापों की क्षमा और उद्धार खरीदा नहीं जा सकता है। समस्त मानव जाति के सभी लोगों के लिए प्रभु यीशु ने अपने बलिदान द्वारा सभी के लिए यह कीमत चुका कर, अपने पुनरुत्थान द्वारा सबके लिए उद्धार का मार्ग खोल दिया है; अब दोबारा यह कीमत चुकाने का प्रयास करने की ना तो आवश्यक्ता है और ना ही यह कर पाना संभव है। परमेश्वर द्वारा जो उप्लब्ध करवा दिया गया है, उसे तो बस धन्यवाद के साथ ग्रहण ही किया जा सकता है।

   आज जो भी आत्मिक जीवन की प्यास बुझाने के लिए उस जीवन के जल की नदी प्रभु यीशु के पास पश्चाताप और विश्वास के साथ आता है, उसे परमेश्वर की ओर से यह जीवन जल भरपूरी के साथ सेंत-मेंत मिलता है। और अद्भुत बात यह है कि जो यह जीवन जल स्वीकार करता है, परमेश्वर का यह जीवन जल फिर उस व्यक्ति में होकर औरों के लिए भी प्रवाहित होने लग जाता है (यूहन्ना 7:37-38)। - जूली ऐकैरमन लिंक


प्रभु यीशु ही वह एक मात्र स्त्रोत है जो आत्मा की प्यास बुझा सकता है।

फिर पर्व के अंतिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकार कर कहा, यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आकर पीए। जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्र शास्त्र में आया है उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियां बह निकलेंगी। - यूहन्ना 7:37-38

बाइबल पाठ: यूहन्ना 4:10-14; रोमियों 5:12-21
John 4:10 यीशु ने उत्तर दिया, यदि तू परमेश्वर के वरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है; मुझे पानी पिला तो तू उस से मांगती, और वह तुझे जीवन का जल देता। 
John 4:11 स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं, और कूआं गहिरा है: तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहां से आया? 
John 4:12 क्या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है, जिसने हमें यह कूआं दिया; और आप ही अपने सन्तान, और अपने ढोरों समेत उस में से पीया? 
John 4:13 यीशु ने उसको उत्तर दिया, कि जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा। 
John 4:14 परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूंगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा: वरन जो जल मैं उसे दूंगा, वह उस में एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा। 

Romans 5:12 इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया। 
Romans 5:13 क्योंकि व्यवस्था के दिए जाने तक पाप जगत में तो था, परन्तु जहां व्यवस्था नहीं, वहां पाप गिना नहीं जाता। 
Romans 5:14 तौभी आदम से ले कर मूसा तक मृत्यु ने उन लोगों पर भी राज्य किया, जिन्हों ने उस आदम के अपराध की नाईं जो उस आने वाले का चिन्ह है, पाप न किया। 
Romans 5:15 पर जैसा अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के वरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुतेरे लागों पर अवश्य ही अधिकाई से हुआ। 
Romans 5:16 और जैसा एक मनुष्य के पाप करने का फल हुआ, वैसा ही दान की दशा नहीं, क्योंकि एक ही के कारण दण्ड की आज्ञा का फैसला हुआ, परन्तु बहुतेरे अपराधों से ऐसा वरदान उत्पन्न हुआ, कि लोग धर्मी ठहरे।
Romans 5:17 क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कराण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्म रूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे। 
Romans 5:18 इसलिये जैसा एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। 
Romans 5:19 क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे। 
Romans 5:20 और व्यवस्था बीच में आ गई, कि अपराध बहुत हो, परन्तु जहां पाप बहुत हुआ, वहां अनुग्रह उस से भी कहीं अधिक हुआ। 
Romans 5:21 कि जैसा पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिये धर्मी ठहराते हुए राज्य करे।

एक साल में बाइबल: 
  • न्यायियों 11-12
  • लूका 6:1-26