कलीसिया
सेवा के लिए तत्पर और तैयार, कलीसिया की उन्नति
पिछले कुछ लेखों में हम प्रभु यीशु
द्वारा अपनी कलीसिया के कार्यों के लिए नियुक्त किए गए कार्यकर्ताओं के बारे में
इफिसियों 4:11 से
देखते आ रहे हैं। हमने पाँच प्रकार के कलीसिया के सेवकों और उनकी सेवकाइयों के
बारे में देखा, और यह भी देखा कि समय और आवश्यकता के अनुसार,
एक ही व्यक्ति एक से अधिक प्रकार की सेवकाइयों को भी कर सकता है,
और आरंभिक कलीसियाओं में यह होता रहा है। इससे हमने यह तात्पर्य
लिया था कि कलीसिया में महत्व इन पाँच प्रकार की सेवकाइयों के निरंतर ज़ारी रहने का
है, न कि सेवकाइयों के लिए नियुक्त किए गए व्यक्तियों का।
जिस कलीसिया में ये पाँच प्रकार के कार्य ज़ारी रहेंगे, वह
कलीसिया उन्नति करती रहेगी, बढ़ती रहेगी, और प्रभु के लिए उपयोगी, तथा प्रभु की महिमा का कारण
होगी। इफिसियों 4:12-16 में हम इन सेवकाइयों को किए जाने के
प्रभावों को मसीही विश्वासियों के जीवनों में क्रमवार, और
उनके उन्नत होने की एक से अगली सीढ़ी पर बढ़ते हुए देखते हैं। इफिसियों 4:11 की सेवकाइयों के प्रभावों के क्रम का आरंभ इफिसियों 4:12, “जिस से पवित्र लोग सिद्ध हों जाएं, और सेवा का काम
किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए” से होता है। यहाँ पर इन सेवकाइयों के द्वारा कलीसिया में होने वाले पहले
तीन प्रभाव दिए गए हैं:
- पवित्र
लोग सिद्ध हों जाएं
- सेवा
का काम किया जाए
- मसीह
की देह उन्नति पाए
यहीं पर उन्नत
होते जाने के क्रम को भी देखा जा सकता है - पवित्र लोग सिद्ध होंगे, वे सिद्ध हुए लोग सेवा के कार्य को योग्य रीति से करेंगे, जिससे मसीह की देह अर्थात कलीसिया उन्नति पाएगी। इस पद में, मूल भाषा के जिस शब्द का अनुवाद “सिद्ध” किया गया है, उसका शब्दार्थ होता है “पूर्णतः सुसज्जित” होना, अर्थात
किसी भी कार्य या ज़िम्मेदारी के निर्वाह के लिए पूरी तरह से तैयार और आवश्यक
संसाधनों एवं उपकरणों तथा समझ-बूझ से लैस होना। यहाँ “सिद्ध”
शब्द का अर्थ आत्मिक और नैतिक रीति से निर्दोष, निष्पाप, निष्कलंक होना नहीं है, वरन कलीसिया के कार्यों के लिए तत्पर और तैयार हो जाना है। साथ ही ध्यान कीजिए कि 4:12 की ये तीनों बातें
कलीसिया के सभी “पवित्र लोगों” के लिए
हैं, किसी विशेष नियुक्ति अथवा चुने गए कुछ विशिष्ट लोगों के
लिए नहीं। अर्थात, 4:11 की सेवकाइयों के कलीसिया में
भली-भांति निर्वाह के द्वारा समस्त कलीसिया, प्रभु के सभी
सच्चे और समर्पित विश्वासी प्रभु के कार्य के लिए तत्पर और तैयार हो जाएंगे,
अपनी-अपनी सेवकाई के लिए आवश्यक गुणों और वरदानों से लैस हो जाएंगे।
इसका एक उदाहरण है थिस्सलुनीकिया की
कलीसिया, जिसकी
स्थापना का वर्णन हम प्रेरितों 17:1-9 में पाते हैं।
प्रेरितों 17:2-4 में लिखा है कि थिस्सलुनीकिया में पौलुस की
सेवकाई केवल “तीन सबत के दिन” ही
की थी, जो दो या अधिक से अधिक तीन सप्ताह का समय बनता है,
और इस दौरान पौलुस ने उन्हें सुसमाचार भी दिया, वचन की शिक्षाएं भी दीं, जिसके परिणामस्वरूप बहुत से
लोगों ने प्रभु को उद्धारकर्ता ग्रहण किया। पौलुस द्वारा इस मण्डली को लिखी पहली
पत्री के आरंभिक अध्याय में ही हम इफिसियों 4:12 में लिखी
बात के प्रमाण को देखते हैं। दो या तीन सप्ताह की वचन की सेवकाई से स्थापित हुए
थिस्सलुनीकिया की कलीसिया के विषय स्वयं पौलुस की गवाही थी कि उन्होंने बड़े क्लेश
में भी पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को ग्रहण किया, मकिदुनिया
और आख्या के सभी विश्वासियों के लिए आदर्श बने, उन इलाकों
में परमेश्वर के वचन का प्रचार किया, और उनके मूरतों से
परिवर्तन, मसीही विश्वास में आने, और
प्रभु के दूसरे आगमन के लिए तैयार होने की चर्चा हर जगह फैल गई (1 थिस्सलुनीकियों 1:6-10)। जैसे ही इफिसियों 4:11
की सेवकाइयों के द्वारा परमेश्वर पवित्र आत्मा को कार्य करने का
अवसर और स्वतंत्रता प्राप्त हुई, थिस्सलुनीकिया के उन लोगों
के जीवनों में इफिसियों 4:12 की तीनों बातें, तथा उससे और आगे के पदों की बातें भी प्रत्यक्ष दिखने लग गईं।
यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो आपके पास अभी अपने आप
को जाँचने और परखने का अवसर है कि इफिसियों 4:12 के अनुसार
आप “सिद्ध” अर्थात प्रभु के कार्य के
लिए तत्पर और तैयार हैं कि नहीं, थिस्सलुनीकिया के विश्वासियों के समान अपने पुराने
जीवन से पूर्णतः परिवर्तित होकर प्रभु की सेवा, उसके
सुसमाचार के प्रचार में कार्यरत हैं कि नहीं - क्योंकि यह सभी “पवित्र लोगों” का दायित्व है। और इसके लिए आपको किसी विशेष प्रशिक्षण अथवा लंबे समय तक
सिखाए जाने और अनुभव पाने की आवश्यकता नहीं है, वरन प्रभु को
पूर्णतः समर्पित और उसके आज्ञाकारी होने की आवश्यकता है, जैसा हम थिस्सलुनीकिया
की कलीसिया के उदाहरण से देखते हैं। उपरोक्त बातों का और प्रभु यीशु के वचनों की
शिक्षा पाने और पालन करने का ध्यान रखिए। यह आपके लिए भी तथा औरों के लिए भी
उन्नति का कारण ठहरेगा।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- लैव्यव्यवस्था
6-7
- मत्ती 25:1-30