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शनिवार, 13 अगस्त 2022

मसीही सेवकाई और पवित्र आत्मा / The Holy Spirit and Christian Ministry – 25


Click Here for the English Translation 

बपतिस्मे की समझ - (2) – आग और पानी से बप्तिस्मा; उद्धार और बप्तिस्मा

पिछले लेख में हमने बपतिस्मे के अर्थ और उससे संबंधित बातों को देखना आरंभ किया था। परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित गलत शिक्षाओं का प्रचार और प्रसार करने वाले, मसीही सेवकाई में उपयोगी एवं प्रभावी होने के लिए “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” पाने पर भी बहुत बल देते हैं। इसी संदर्भ में हमने देखा था कि “बपतिस्मा” शब्द का अर्थ क्या है तथा बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार बपतिस्मा केवल एक ही है, पानी से दिया गया डूब का बपतिस्मा। यह देखने से पहले कि फिर यह “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” क्या है जिसके विषय बाइबल के आधार पर इतनी बातें की जाती हैं हम बपतिस्मे से संबंधित दो और बातें आज स्पष्ट कर लेते हैं, जो आगे चलकर इस विषय को समझने में हमारी सहायक होंगी। 

आग और पानी का बपतिस्मा

        मत्ती 3:11 में यूहन्ना द्वारा कही गई बात “वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा” को लेकर भी गलत शिक्षाएं और व्याख्या दी जाती है कि पवित्र आत्मा का बपतिस्मा, आग का बपतिस्मा है। किन्तु वाक्य स्पष्ट है; यूहन्ना यह नहीं कह रहा है कि “वह तुम्हें पवित्र आत्मा अर्थात आग से बपतिस्मा देगा”; वरन उसने कहा कि “वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा” - यानि कि प्रभु के पास दो वस्तुओं से दिए जाने वाले बपतिस्मे हैं - एक तो पवित्र आत्मा से दूसरा आग से। किन्तु जिन्होंने प्रभु यीशु को स्वीकार कर लिया, उस पर विश्वास कर लिया, अर्थात उद्धार पा लिया, उन्हें स्वतः ही, विश्वास करते ही तुरंत पवित्र आत्मा मिल जाएगा, अर्थात पवित्र आत्मा से बपतिस्मा मिल जाएगा। जिन्होंने प्रभु को स्वीकार नहीं किया, उद्धार नहीं पाया, फिर वे अनन्त कल के लिए नरक की आग की झील में डुबोए जाएंगे - उनके लिए फिर प्रभु के पास आग से बपतिस्मा अर्थात कभी न बुझने वाली आग की झील में डाल दिया जाना है (प्रकाशितवाक्य 19:20; 20:10, 14-15)। तो हर एक व्यक्ति को प्रभु के हाथों एक न एक बपतिस्मा, अर्थात एक न एक में डाला जाना मिलेगा - या तो पवित्र आत्मा से; अन्यथा आग से 

साथ ही एक अन्य पद पर भी ध्यान कीजिए: प्रेरितों 2:3 में लिखा है, “और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; और उन में से हर एक पर आ ठहरीं”; किन्तु इस घटना - आग की जीभों का आकर प्रभु के शिष्यों पर ठहर जाना और फिर उन्हें पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त, को न तो यहाँ पर और न ही कभी कहीं अन्य किसी स्थान पर “पवित्र आत्मा की आग से बपतिस्मा” कहा गया। जब कि यदि पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना और आग से बपतिस्मा पाना एक ही होते, तो यह सबसे उपयुक्त अवसर एवं घटना होती इस बात को दिखाने और प्रमाणित करने के लिए; क्योंकि पवित्र आत्मा आग के समान उन लोगों के ऊपर आकर ठहरा था और फिर वे सब लोग पवित्र आत्मा से भर गए थे। किन्तु वचन में इस घटना को यह दिखाने के लिए प्रयोग नहीं किया गया है। साथ ही, इसके बाद, न तो कभी बाइबल में, और न ही कभी मसीही विश्वासियों के जीवनों में, या अथवा इसके समान घटना फिर कभी घटित हुई है; उनके जीवनों में भी नहीं जो इस आयात को आधार बनाकर बड़ा ज़ोर देकर दावा करते हैं कि पवित्र आत्मा का बपतिस्मा और आग से बपतिस्मा एक ही बात हैं। 

क्या उद्धार के लिए बपतिस्मा आवश्यक है?


यद्यपि बहुत से लोग बपतिस्मे को उद्धार के लिए अनिवार्य हैं और इस पर बहुत बाल देते हैं, किन्तु बाइबल इस बात के लिए बहुत स्पष्ट है कि उद्धार किसी भी कर्म से नहीं है (इफिसियों 2:5, 8-9), बपतिस्मे से भी नहीं। क्रूस पर पश्चाताप करने वाला डाकू ने कौन सा बपतिस्मा लिया, किन्तु वह स्वर्ग गया। अनेकों लोग जीवन के अंतिम पलों में उद्धार पाते हैं, या विश्वास करने के बाद बपतिस्मा नहीं लेने पाते हैं, क्या वे इसलिए नाश हो जाएंगे क्योंकि पश्चाताप और विश्वास तो किया किन्तु एक रस्म पूरी नहीं की? इस वास्तविकता की बारीकी को समझना आवश्यक है कि उद्धार बपतिस्मे से नहीं है; वरन उद्धार पाए हुओं के लिए बपतिस्मा है। जैसा कि मत्ती 28:19-20 में प्रभु द्वारा दिए गए क्रम से प्रकट है - पहले शिष्य बनाओ; जो शिष्य बने फिर उसे बपतिस्मा दो और उसे प्रभु की बातें सिखाओ। कोई भी बपतिस्मे के द्वारा प्रभु का शिष्य नहीं बनता है, यह न तो कहीं कहा, और न ही कहीं कर के दिखाया गया है; वरन जो पश्चाताप और विश्वास लाने के द्वारा प्रभु का शिष्य बनाता है, उसे ही बपतिस्मा दिया जाता है। प्रभु द्वारा दिए गए इसी क्रम का निर्वाह प्रेरितों 2 अध्याय में, पतरस के पहले प्रचार में भी हुआ है, पहले लोगों ने पापों का अंगीकार और पश्चाताप किया, और फिर जिन्होंने प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास किया और उसे उद्धारकर्ता ग्रहण किया, उन्हें बपतिस्मा दिया गया; और यही क्रम सारे नए नियम में दोहराया गया है। इससे यह भी स्पष्ट है कि बपतिस्मा बच्चों या शिशुओं के लिए नहीं है, केवल उनके लिए है जिन्होंने प्रभु यीशु को उद्धारकर्ता स्वीकार किया और उसके शिष्य हो गए हैं।

 

यहाँ पर अकसर प्रेरितों 2:38 का गलत प्रयोग यह कहकर किया जाता है कि इस पद में लिखा है “तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले” अर्थात पापों की क्षमा बपतिस्मे के द्वारा है। किन्तु यह इस वाक्य की गलत समझ है; यहाँ यह अर्थ नहीं है कि पापों की क्षमा प्राप्त करने के लिए बपतिस्मा ले - अन्यथा क्रूस पर पश्चाताप करने वाले डाकू को पापों के क्षमा नहीं मिली। वरन प्रेरितों 2:38 के इस वाक्य का सही अर्थ है कि “अपने पापों की क्षमा प्राप्त कर लेने की बपतिस्मे के द्वारा साक्षी दो”। इस वाक्य में लिखे गए शब्दों के क्रम के कारण इसका अर्थ भिन्न प्रतीत होता है, किन्तु है नहीं। इसे एक उदाहरण से समझते हैं; डॉक्टर बहुधा सफेद कोट पहने और साथ में स्टेथोस्कोप रखते हैं। मान लीजिए डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर लेने के पश्चात, उन्हें डॉक्टरी की डिग्री देते समय यदि उनसे, प्रेरितों 2:38 के उपरोक्त वाक्य के समान एक वाक्य द्वारा यह कहा जाए, “तुम में से हर एक अपने प्रशिक्षण के लिए सफेद कोट और स्टेथोस्कोप ले” तो क्या इसका यह अर्थ है कि सफेद कोट और स्टेथोस्कोप रखने से वे डॉक्टर हो जाएंगे; या यह कि अब जब तुम डॉक्टर हो गए हो, डॉक्टरी का प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया है, तो उसका प्रत्यक्ष चिह्न, सफेद कोट और स्टेथोस्कोप साथ रखो? उस गलत शिक्षा और धारणा से बाहर निकाल कर जब व्यावहारिक जीवन की सामान्य सोच एवं अर्थ के साथ उस वाक्य को देखते हैं तो उसका वह अर्थ प्रकट हो जाता है जो लगभग दो हज़ार वर्ष पूर्व पतरस द्वारा इस वाक्य को कहे जाने पर लोगों ने समझा था। उद्धार बपतिस्मे से नहीं है; उद्धार पाए हुओं के लिए बपतिस्मा है। प्रेरितों 2:38 को और विस्तार से देखने तथा समझने के लिए आप इन लिंक्स का भी प्रयोग कर सकते हैं: क्या प्रेरितों 2:38 सिखाता है कि उद्धार के लिए बपतिस्मा आवश्यक है?


यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो यह आपके लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय वचन में दी गई शिक्षाओं को गंभीरता से सीखें, समझें और उनका पालन करें; और सत्य को जान तथा समझ कर ही उचित और उपयुक्त व्यवहार करें, सही शिक्षाओं का प्रचार करें। किसी के भी द्वारा प्रभु, परमेश्वर, पवित्र आत्मा के नाम से प्रचार की गई हर बात को 1 थिस्सलुनीकियों 5:21 तथा प्रेरितों 17:11 के अनुसार जाँच-परख कर, यह स्थापित कर लेने के बाद कि उस शिक्षा का प्रभु यीशु द्वारा सुसमाचारों में प्रचार किया गया है; प्रेरितों के काम में प्रभु के उस प्रचार का निर्वाह किया गया है; और पत्रियों में उस प्रचार तथा कार्य के विषय शिक्षा दी गई है, तब ही उसे स्वीकार करें तथा उसका पालन करें, उसे औरों को सिखाएं या बताएं। आपको अपनी हर बात का हिसाब प्रभु को देना होगा (मत्ती 12:36-37)। जब वचन आपके हाथ में है, वचन को सिखाने के लिए पवित्र आत्मा आपके साथ है, तो फिर बिना जाँचे और परखे गलत शिक्षाओं में फँस जाने, तथा मनुष्यों और उनके समुदायों और उनकी गलत शिक्षाओं को आदर देते रहने के लिए, उन गलत शिक्षाओं में बने रहने के लिए क्या आप प्रभु परमेश्वर को कोई उत्तर दे सकेंगे?


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


एक साल में बाइबल पढ़ें: 

  • भजन 87-88 

  • रोमियों 13


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English Translation

Understanding Baptism - (2) – Baptism with Water & Fire; Salvation & Baptism


From the last article we have started looking at the meaning of “baptism” and its related things. The people preaching and teaching wrong things about the Holy Spirit, emphasize a lot on “baptism of the Holy Spirit” for an effective Christian Ministry. In this context we have seen the meaning of the word “baptism”, and seen how, according to the teachings of the Bible, there is only one baptism - with water, by immersion. Before going on to study what the Bible teaches about “baptism of the Holy Spirit”, let us look into and clarify two more related things, which will later help us to understand the topic better.


Baptism with Water and Fire


The statement made by John in Matthew 3:11 “... He will baptize you with the Holy Spirit and fire” is also often misunderstood and misinterpreted. Wrong teachings and doctrines are stated using this statement to say that the “baptism of the Holy Spirit” is the same as “baptism with fire.” But the sentence is clear in itself; John is not saying, “He will baptize you with the Holy Spirit i.e., with fire;” rather, what John has said is that “He will baptize you with the Holy Spirit and with fire” - that is to say the Lord has two things, the Holy Spirit and fire, to baptize with. Those who have accepted the Lord Jesus and come into faith in Him as their savior, i.e., have been saved, they immediately receive the Holy Spirit at the moment of their salvation, which is the same as being baptized with the Holy Spirit (As we will see in subsequent articles). But those who do not believe in the Lord Jesus, do not accept Him as their savior, have not been saved, will eventually be cast into or immersed in the lake of fire, into hell - for the unsaved, the unbelievers, the Lord has a baptism with fire, of being cast into the unquenchable fire of hell for eternity (Revelation 19:20; 20:10, 14-15). Therefore, every person will receive one baptism or the other from the Lord; either with the Holy Spirit on being saved, or in hell fire if remains unsaved till death.


Consider another verse regarding “baptism with fire”; it is written in Acts 2:3, “Then there appeared to them divided tongues, as of fire, and one sat upon each of them.” But this incidence, of an appearance of ‘tongues of fire’ coming upon the disciples and their receiving the power of the Holy Spirit, neither here nor at any other place has ever been referred to or stated as “baptism of the Holy Spirit with fire.” Whereas, if baptism of the Holy Spirit and baptism with fire were one and the same thing, then this was the most appropriate time and incidence to say and affirm it, since the Holy Spirit had come to be upon the disciples and they were filled with the power of the Holy Spirit. But nowhere has this incidence ever been used to say anything like what it is often misinterpreted as. Also, subsequently, neither in the Bible, nor in the lives of the Christian Believers, anything similar has ever happened; not even in the lives and experiences of those who so vehemently claim that baptism of the Holy Spirit and with fire are the same, and use this verse in support of their notion.


Is Baptism necessary for Salvation?


Although many people very resolutely stress upon baptism being a condition for salvation, but the Bible is very clear about the fundamental fact that salvation is not by any kind of works (Ephesians 2:5-8), not even by baptism. The thief who repented on the Cross, was never baptized, but he went to heaven. There are many people who repent and receive salvation towards the end of their lives, and are unable to be baptized at that time; similarly, many people who believe in the Lord Jesus do not have the opportunity or situations and conditions to receive baptism. Will they be sent to eternal destruction despite having truly repented of their sins and believed in the Lord Jesus, just because they could not fulfill one ritual? It is essential to understand the fine-points about this, that salvation is not through baptism; rather, baptism is for those who have been saved. As is apparent from the sequence given in the Great Commission by the Lord Jesus before His ascension to heaven, in Matthew 28:19-20, the first thing the Lord’s disciples were to do is to make other disciples; then, those who had become disciples, they were to be baptized and taught the teachings of the Lord. No one has ever been made a disciple by being baptized - this has never been preached or practiced; but those who became disciples of the Lord through repentance of sins and accepting the Lord as savior, they were baptized. The sequence set by the Lord Jesus was followed in Acts chapter 2, at the time of the first preaching of Peter; first the people confessed and repented of their sins, and then, those who had accepted the Lord Jesus as their savior were baptized; and this sequence has always been followed throughout the New Testament. This also makes it very clear that children and infants cannot be baptized, since baptism is only for those who have voluntarily repented of their sins, became the disciples of the Lord Jesus, and willingly come forward to be baptized.


Here, very often Acts 2:38 is misused and misinterpreted by saying that it is written in this verse that “... let every one of you be baptized in the name of Jesus Christ for the remission of sins …”, therefore forgiveness of sins is through baptism. But this is a misinterpretation of this sentence; this sentence here is not meant to say that baptism is to be taken to receive the forgiveness of sins - else, the thief who repented on the Cross did not receive forgiveness. Rather, the correct understanding and meaning of this sentence from Acts 2:38 is that “witness your having received forgiveness of sins by getting baptized.” Because of the construction of the sentence and the sequence of the words used in it, it seems to imply differently. Understand this through an example: Doctors usually wear a white coat and carry a stethoscope. Now, having completed their medical studies, cleared their qualifying exams, at the time of being conferred their medical degrees, supposing it is said to them, in line with what is written in Acts 2:38, “each of you for being a doctor wear a white coat and carry a stethoscope”, then is this supposed to mean that they become doctors only because of wearing a white coat and carrying a stethoscope? Or, is it meant to say that “now that you have completed your studies and qualified to be a doctor, therefore, witness for your accomplishment through wearing a white coat and carrying a stethoscope”? When we come out of the confines of the wrong teachings and false notions, and start to consider Acts 2:38 from the perspective of general thinking and practical application, then its meaning becomes apparent, the meaning which about two thousand years ago those initial audience would have readily understood when Peter first spoke this sentence to them. Salvation is not through baptism; but baptism is for those who have been saved. To understand Acts 2:38 better you can look at a detailed exposition through this link:Does Acts 2:38 Teach that baptism is necessary for salvation?


If you are a Christian Believer, then it is mandatory for you to learn the teachings related to the Holy Spirit from the Word of God, seriously ponder over them, understand them, and obey them. You should learn the truth and accordingly live and behave appropriately and worthily, and should teach only the truth from the Bible. You will have to give an account of everything you say to the Lord Jesus (Matthew 12:36-37). When you have God’s Word in your hand, and the Holy Spirit is there with you to teach you, then how will you be able to answer for yourself for getting deceived by wrong doctrines and false preaching and teachings? How will you justify your giving credibility to the persons, sects, and denominations teaching and preaching wrong things in the name of the Holy Spirit, and being part of their false teachings?

 

If you are still thinking of yourself as being a Christian, because of being born in a particular family and having fulfilled the religious rites and rituals prescribed under your religion or denomination since your childhood, then you too need to come out of your misunderstanding of Biblical facts and start understanding and living according to what the Word of God says, instead of what any denominational creed says or teaches. Make the necessary corrections in your life now while you have the time and opportunity; lest by the time you realize your mistake, it is too late to do anything about it.


If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.



Through the Bible in a Year: 

  • Psalms 87-88 

  • Romans 13