पाप का समाधान - उद्धार - 15
हम देख चुके हैं कि अदन की वाटिका में हुए पहले पाप
के कारण उत्पन्न स्थिति के समाधान और निवारण के लिए जिस सिद्ध, पवित्र, निष्पाप, निष्कलंक मनुष्य की आवश्यकता थी, उसका पृथ्वी पर जन्म और जीवन स्वाभाविक मानवीय प्रणाली से संभव नहीं था,
क्योंकि पृथ्वी पर जन्म लेने वाला प्रत्येक मनुष्य पाप के दोष एवं
प्रवृत्ति के साथ जन्म लेता है, और पाप करता है। इसलिए वह
केवल अपना दण्ड सहन कर सकता है, किसी अन्य के दण्ड को नहीं वहन
कर सकता है। प्रभु यीशु का पृथ्वी पर मनुष्य रूप में जन्म परमेश्वर द्वारा किया
गया आश्चर्यकर्म था; प्रभु ने अन्य सभी मनुष्यों के समान
स्त्री से पृथ्वी पर जन्म भी लिया, उत्पत्ति 3:15 की भविष्यवाणी और बात को पूरा भी किया, किन्तु उनकी
देह में मनुष्य के पाप का दोष और प्रवृत्ति नहीं थी।
साथ ही, हमने यह भी देखा था कि यद्यपि प्रभु यीशु जन्म से ही
निष्पाप, निष्कलंक, पवित्र, और सिद्ध थे; किन्तु शैतान ने उन्हें मार डालने या
पाप में गिराने के प्रयासों में कोई कसर रख नहीं छोड़ी थी। किन्तु प्रभु ने उसकी
कोई चाल को सफल नहीं होने दिया, और अपने पर पाप का कोई
अभियोग नहीं आने दिया। प्रभु यीशु हर परिस्थिति, हर बात के
लिए पिता परमेश्वर के आज्ञाकारी बने रहे; दुख उठा कर भी।
उन्होंने यह दिखा दिया कि परमेश्वर की सहायता से मानवीय शरीर में होकर भी शैतान की
युक्तियों को विफल किया जा सकता है, पापा करते रहने से बचा
जा सकता है।
क्योंकि पाप के मानवीय जीवन में प्रवेश का द्वार
मनुष्य द्वारा उसके लिए परमेश्वर की योजनाओं और आज्ञाओं के प्रति संदेह के कारण
खुला था; इसलिए
पाप के समाधान और निवारण के लिए बलिदान होने वाले सिद्ध मनुष्य को परमेश्वर पर
बिना कोई संदेह किए पूर्ण विश्वास करने वाला भी होना आवश्यक था। प्रभु यीशु ने यह
भी अपने जीवन से कर के दिखाया, वरन पृथ्वी पर आने से भी पहले
कर के दिखाया। प्रभु यीशु मसीह में पापों की क्षमा और उद्धार के सुसमाचार की एक
विशेषता यह भी है कि प्रभु के पृथ्वी पर आने से पहले ही उसके बारे में पवित्र
शास्त्र में लिख दिया गया था। पौलुस प्रेरित ने कुरिन्थुस के मसीही विश्वासियों की
मंडली को लिखा, “हे भाइयों, मैं
तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूं जो पहिले सुना चुका हूं, जिसे
तुम ने अंगीकार भी किया था और जिस में तुम स्थिर भी हो। उसी के द्वारा तुम्हारा
उद्धार भी होता है, यदि उस सुसमाचार को जो मैं ने तुम्हें
सुनाया था स्मरण रखते हो; नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना
व्यर्थ हुआ। इसी कारण मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची थी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के
अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। और गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा” (1 कुरिन्थियों 15:1-4)। प्रभु यीशु परमेश्वर की बातों
के प्रति पूर्णतः आज्ञाकारी रहा, उसने परमेश्वर के लिखे हुए
को पूरा किया; परमेश्वर पिता की किसी बात के लिए कोई आनाकानी
अथवा संदेह नहीं किया:
- पृथ्वी
पर आते समय प्रभु ने कहा, “तब मैं ने कहा, देख, मैं
आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ
है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं” (इब्रानियों 10:7)। परमेश्वर पिता के प्रति उसकी
आज्ञाकारिता उसके पृथ्वी पर आने से पहले आरंभ हो चुकी थी।
- जब
वह पृथ्वी पर आया, तो अपने
ईश्वरत्व को छोड़कर, दीन, नम्र,
और आज्ञाकारी दास का स्वरूप धारण करके आया, “जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को
अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया,
और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य
की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया,
और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु,
हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली”
(फिलिप्पियों 2:6)।
- प्रभु
का “भोजन”
अर्थात उसकी सामर्थ्य, परमेश्वर पिता की
आज्ञाकारिता थी, “यीशु ने उन से कहा, मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजने वाले की इच्छा
के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं” (यूहन्ना 4:34)।
- प्रभु
ने अपने शिष्यों में से अपने सबसे निकट के शिष्य भी अपनी इच्छा के अनुसार
नहीं, वरन पिता
परमेश्वर से सारी रात प्रार्थना करने के बाद चुने, “और
उन दिनों में वह पहाड़ पर प्रार्थना करने को निकला, और
परमेश्वर से प्रार्थना करने में सारी रात बिताई। जब दिन हुआ, तो उसने अपने चेलों को बुलाकर उन में से बारह चुन लिये, और उन को प्रेरित कहा” (लूका 6:12-13)।
- प्रभु
यीशु ने अपनी सेवकाई और कार्यों के लिए कहा, “इस पर यीशु ने उन से कहा, मैं
तुम से सच सच कहता हूं, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता,
केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि
जिन जिन कामों को वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है”
(यूहन्ना 5:19); और “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता
हूं, वैसा न्याय करता हूं, और
मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं,
परन्तु अपने भेजने वाले की इच्छा चाहता हूं” (यूहन्ना 5:30)।
- प्रभु
द्वारा अपने प्राणों का बलिदान देना और उसका पुनरुत्थान भी परमेश्वर पिता की
इच्छा के अनुसार था “पिता इसलिये मुझ से प्रेम रखता है, कि मैं अपना
प्राण देता हूं, कि उसे फिर ले लूं। कोई उसे मुझ से
छीनता नहीं, वरन मैं उसे आप ही देता हूं: मुझे उसके
देने का अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है:
यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है” (यूहन्ना 10:17-18)।
- निष्पाप, निष्कलंक, और पवित्र प्रभु के लिए, जिसके चरित्र, स्वभाव, और विचार में भी पाप नहीं था, सारे संसार के सभी लोगों के पापों को अपने ऊपर ले लेना अत्यंत विचलित
कर देने वाला कार्य था; किन्तु फिर भी उसने पिता
परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति के लिए उसे किया, “हे
पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी
मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।” “और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल हो कर और भी हृदय वेदना से प्रार्थना
करने लगा; और उसका पसीना मानो लहू की बड़ी बड़ी बून्दों
के समान भूमि पर गिर रहा था” (लूका 22:42,
44)।
- क्रूस
पर जाने से पहले प्रभु ने अपनी प्रार्थना में पिता परमेश्वर से कहा, “जो काम तू ने मुझे करने को
दिया था, उसे पूरा कर के मैं ने पृथ्वी पर तेरी महिमा
की है” (यूहन्ना 17:4); और
क्रूस पर से, अपने प्राण छोड़ने से पहले प्रभु ने
सुनिश्चित किया कि परमेश्वर के वचन में उनके लिए लिखी सभी बातें पूरी हो गई
हैं, और, “इस के बाद यीशु ने
यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिये कि पवित्र
शास्त्र की बात पूरी हो कहा, मैं प्यासा हूं। वहां एक
सिरके से भरा हुआ बर्तन धरा था, सो उन्होंने सिरके में
भिगोए हुए इस्पंज को जूफे पर रखकर उसके मुंह से लगाया। जब यीशु ने वह सिरका
लिया, तो कहा पूरा हुआ और सिर झुका कर प्राण त्याग
दिए” (यूहन्ना 19:28-30)।
- अपने
पुनरुत्थान के बाद प्रभु ने अपने शिष्यों को समझाया कि किस प्रकार पवित्र
शास्त्र में उस के लिए लिखी हुई बातों का पूरा होना अवश्य था, “फिर उसने उन से कहा,
ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने
तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था
और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे
विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों। तब उसने पवित्र
शास्त्र बूझने के लिये उन की समझ खोल दी। और उन से कहा, यों लिखा है; कि मसीह दु:ख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा” (लूका
24:44-46)।
प्रभु के पृथ्वी पर आने से पहले से लेकर, उनके जीवन, शिक्षाओं, क्रूस पर बलिदान देने, मृतकों में से जी उठने - सभी के विषय परमेश्वर ने अपने वचन में सब कुछ
पहले से लिखवा दिया था। प्रभु यीशु ने उन सभी बातों का पूर्णतः निर्वाह किया,
कभी परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारी नहीं रहा, कभी
उसकी किसी बात, किसी योजना पर संदेह नहीं किया, परमेश्वर की आज्ञाकारिता करने में कभी कुड़कुड़ाया नहीं, हर बात में परमेश्वर की इच्छा जानकार उसी के
अनुसार कार्य किया। इसी प्रभु ने अपनी सेवकाई के आरंभ से ही कहा, “यूहन्ना के पकड़वाए
जाने के बाद यीशु ने गलील में आकर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया। और
कहा, समय पूरा हुआ है, और परमेश्वर का
राज्य निकट आ गया है; मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो”
(मरकुस 1:14-15)।
क्या आप परमेश्वर की इस चेतावनी के प्रति सचेत और
तैयार हैं? संसार
के हालात स्पष्ट संकेत कर रहे हैं कि अब किसी भी क्षण प्रभु को दोबारा आगमन हो
जाएगा, और जिन्होंने उद्धार नहीं पाया है, वे अनन्त विनाश में, तथा पापों से पश्चाताप करके
उनके लिए प्रभु यीशु से क्षमा मांग लेने वाले अनन्त आशीष के स्थान - स्वर्ग में
चले जाएंगे। क्या आप उस घड़ी के इस अपरिवर्तनीय निर्णय का सामना करने के लिए तैयार
हैं? यदि आप ने अभी भी उद्धार नहीं पाया है, अपने पापों के लिए प्रभु यीशु से क्षमा नहीं मांगी है, तो अभी आपके पास अवसर है। स्वेच्छा से, सच्चे और
पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप
के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ
कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में
आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि
आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर
पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए
चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को
अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें,
अपने साथ कर लें।” आपका सच्चे मन से लिया गया
मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना
देगा।
बाइबल पाठ: प्रेरितों 17:24-31
प्रेरितों 17:24 जिस परमेश्वर ने
पृथ्वी और उस की सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी
का स्वामी हो कर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता।
प्रेरितों 17:25 न किसी वस्तु का
प्रयोजन रखकर मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह
तो आप ही सब को जीवन और श्वास और सब कुछ देता है।
प्रेरितों 17:26 उसने एक ही मूल से
मनुष्यों की सब जातियां सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाईं हैं; और उन के ठहराए हुए समय, और निवास के सिवानों को
इसलिये बान्धा है।
प्रेरितों 17:27 कि वे परमेश्वर को
ढूंढ़ें, कदाचित उसे टटोल कर पा जाएं तौभी वह हम में से किसी
से दूर नहीं!
प्रेरितों 17:28 क्योंकि हम उसी में
जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर
रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है, कि हम तो उसी के वंश भी हैं।
प्रेरितों 17:29 सो परमेश्वर का वंश
हो कर हमें यह समझना उचित नहीं, कि ईश्वरत्व, सोने या रूपे या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की
कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों।
प्रेरितों 17:30 इसलिये परमेश्वर अज्ञानता
के समयों में आनाकानी कर के, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन
फिराने की आज्ञा देता है।
प्रेरितों 17:31 क्योंकि उसने एक दिन
ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का
न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से
जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।
एक साल में बाइबल:
· नीतिवचन 16-18
· 2 कुरिन्थियों 6