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रविवार, 9 अक्तूबर 2016

उम्मीद


   अपनी पुस्तक God in the Dock (कटघरे में परमेश्वर) में सुप्रसिद्ध मसीही विश्वासी और लेखक सी. एस. ल्युईस ने लिखा: "कलपना कीजिए कि एक इमारत में, जिसमें कई लोग साथ रहते हैं, आधे यह मानते हैं कि वह इमारत के होटल है, और शेष आधे यह मानते हैं कि वह इमारत एक कैदखाना है। जो उसे होटल मानते हैं, उन्हें वह इमारत काफी कष्टदायक और असहनीय लगेगी; और जो उसे कैदखाना मानते हैं उनके लिए वही इमारत आश्चर्यजनक रूप से आरामदेह होगी।" ल्युईस ने बड़ी चतुराई से इस तुलनात्मक स्थिति के द्वारा इस बात को दिखाया है कि कैसे हम अपनी उम्मीद के आधार पर जीवन के प्रति दृष्टिकोण को बनाते हैं। ल्युईस आगे लिखते हैं, "यदि आप इस संसार को एक होटल के रूप में देखते हैं जो आप के सुख-सुविधा और आनन्द उठाने के लिए है, तो आपको यह संसार कष्टदायक एवं असहनीय लगेगा। परन्तु यदि आप इसी संसार को अपने प्रशिक्षण और सुधार का स्थान मान लेते हैं तो यही संसार आपको फिर उतना बुरा भी नहीं लगेगा।"

   अधिकांशतः उम्मीद करी जाती है कि जीवन को आरामदेह, आनन्दपूर्ण और कष्ट-विहीन होना चाहिए। परन्तु परमेश्वर का वचन बाइबल हमें ऐसा नहीं सिखाती है। एक मसीही विश्वासी के लिए संसार आत्मिक विकास एवं उन्नति का स्थान है, अच्छे और बुरे, दोनों ही प्रकार के अनुभवों के द्वारा। प्रभु यीशु मसीह जीवन के प्रति उम्मीद रखने के विषय में यथार्तवादी थे; उन्होंने अपने चेलों से कहा, "मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्‍ति मिले; संसार में तुम्हें क्‍लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीन लिया है" (यूहन्ना 16:33)। प्रभु यीशु में होकर हमको जीवन की आशीषों और कष्टों को झेलने के समय एक भीतरी शान्ति भी रहती है, क्योंकि हम यह जानते हैं कि सब कुछ परमेश्वर के नियंत्रण में है, और जो भी परमेश्वर हमारे साथ होने दे रहा है वह उसकी सार्वभौमिक योजना के अन्तर्गत, अन्ततः हमारी भलाई और उसकी महिमा के लिए ही हो रहा है।

   हमारे जीवनों में प्रभु यीशु की उपस्थिति, कष्ट के समयों में भी हमें प्रसन्नचित बने रहने की सहायता एवं सामर्थ प्रदान करती है। - डेनिस फिशर


कष्ट के समयों में भी प्रभु यीशु में शान्ति प्राप्त होती है।

मैं तुम्हें शान्‍ति दिए जाता हूं, अपनी शान्‍ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। - यूहन्ना 14:27

बाइबल पाठ: यूहन्ना 16:25-33
John 16:25 मैं ने ये बातें तुम से दृष्‍टान्‍तों में कही हैं, परन्तु वह समय आता है, कि मैं तुम से दृष्‍टान्‍तों में और फिर नहीं कहूंगा परन्तु खोल कर तुम्हें पिता के विषय में बताऊंगा। 
John 16:26 उस दिन तुम मेरे नाम से मांगोगे, और मैं तुम से यह नहीं कहता, कि मैं तुम्हारे लिये पिता से बिनती करूंगा। 
John 16:27 क्योंकि पिता तो आप ही तुम से प्रीति रखता है, इसलिये कि तुम ने मुझ से प्रीति रखी है, और यह भी प्रतीति की है, कि मैं पिता कि ओर से निकल आया। 
John 16:28 मैं पिता से निकलकर जगत में आया हूं, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास जाता हूं। 
John 16:29 उसके चेलों ने कहा, देख, अब तो तू खोल कर कहता है, और कोई दृष्‍टान्‍त नहीं कहता। 
John 16:30 अब हम जान गए, कि तू सब कुछ जानता है, और तुझे प्रयोजन नहीं, कि कोई तुझ से पूछे, इस से हम प्रतीति करते हैं, कि तू परमेश्वर से निकला है। 
John 16:31 यह सुन यीशु ने उन से कहा, क्या तुम अब प्रतीति करते हो? 
John 16:32 देखो, वह घड़ी आती है वरन आ पहुंची कि तुम सब तित्तर बित्तर हो कर अपना अपना मार्ग लोगे, और मुझे अकेला छोड़ दोगे, तौभी मैं अकेला नहीं क्योंकि पिता मेरे साथ है। 
John 16:33 मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्‍ति मिले; संसार में तुम्हें क्‍लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीन लिया है।

एक साल में बाइबल: 
  • यशायाह 32-33
  • कुलुस्सियों 1