बपतिस्मा - गणित का समीकरण? (6)
पिछले लेखों में हमने देखा कि मसीही
विश्वास के स्थान पर मसीही या ईसाई धर्म का निर्वाह करने वाले प्रेरितों 2:42 में दी गई मसीही
विश्वासियों के लिए ‘लौलीन’ रहने वाली
चार बातों (वचन की शिक्षा पाना, संगति रखना, प्रभु-भोज में सम्मिलित होना, प्रार्थना करना) को उद्धार
या नया जन्म प्राप्त कर लेने के लिए गणित के एक समीकरण के समान, एक रस्म के समान मान तथा मना लेते हैं। वे इन चारों बातों के वास्तविक
महत्व को समझने और उसके आधार पर प्रभु की आज्ञाकारिता में उनका निर्वाह करने की
बजाए एक रीति के समान इनकी औपचारिकता को पूरा करने के द्वारा समझते हैं कि वे भी
नया जन्म या उद्धार पाए हुए हैं। किन्तु बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार उनका यह
मान्यता रखना एक सर्वथा गलत धारणा ही है, तथा धर्म-कर्म-रस्म
के निर्वाह द्वारा प्रभु परमेश्वर की दृष्टि में स्वीकार्य होने के लिए उनका एक
व्यर्थ एवं निष्फल प्रयास हैं। पिछले लेखों में हम प्रेरितों 2:42 की चारों बातों के औपचारिक निर्वाह के बारे में देख चुके हैं। आज हम
प्रेरितों 2 अध्याय में स्थापित हुई पहली मण्डली के लोगों के
साथ तब जुड़ी, और आज मसीही विश्वासियों तथा ईसाई धर्म-समाज के
साथ भी घनिष्ठता से जुड़ी एक और बात के बारे में कुछ और विस्तार से देखेंगे,
जिसे भी गणित के समीकरण के समान लेकर, उसके
विषय भी गलत धारणा बना ली गई है, और उसे मनुष्यों द्वारा दिए
गए भिन्न स्वरूपों में बड़ी निष्ठा से निभाया भी जाता है, बिना
यह देखे और विचारे कि बाइबल में उसके बारे में क्या कुछ लिखा और सिखाया गया है। यह
पाँचवीं बात है बपतिस्मा।
5. बपतिस्मा: प्रभु यीशु मसीह और बाइबल की शिक्षा है कि जो प्रभु यीशु मसीह का शिष्य
बने उसे ही बपतिस्मा दिया जाए “इसलिये तुम जा कर सब
जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रआत्मा के नाम से
बपतिस्मा दो” (मत्ती 28:19)।
अर्थात बपतिस्मा उनके लिए है जो प्रभु यीशु का शिष्य बनना स्वीकार करता है,
जो अपने इस मसीही विश्वास के द्वारा प्रभु का जन बन जाता है। जब हम
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के द्वारा पहले दिए जा रहे बपतिस्मे के बारे में देखते
हैं, और फिर बाद में प्रभु यीशु की उपरोक्त आज्ञाकारिता में
उनके शिष्यों के द्वारा दिए जाने वाले बपतिस्मे के बारे में देखते हैं, तो यह प्रकट है कि बाइबल में तो बपतिस्मा केवल उन्हें ही दिया गया जो
पापों के लिए पश्चाताप और प्रभु के प्रति सच्चे समर्पण के साथ बपतिस्मा लेने के
उद्देश्य से स्वेच्छा से आए। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने अपनी सेवकाई का आरंभ
मन फिराव के आह्वान के साथ किया (मत्ती 3:2); और यही प्रभु
यीशु ने भी किया (मरकुस 1:15)। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले
के प्रचार को मानकर जो लोग अपने पापों का अंगीकार करते थे, उन्हें
वह बपतिस्मा देता था (मत्ती 3:5, 6) - यूहन्ना उन्हें
बपतिस्मा देने के लिए नहीं जाता था, लोग स्वतः बपतिस्मा लेने
के लिए यूहन्ना के पास आते थे। किन्तु जब कपटी फरीसी और सदूकी, पाखण्ड में होकर उससे बपतिस्मा लेने के लिए आए, तो उसने
उनकी भर्त्सना की और पहले मन फिराने के लिए कहा (मत्ती 3:7-8)। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने स्पष्ट कहा कि वह “मन
फिराव का बपतिस्मा” देता था (मत्ती 3:11)। प्रभु यीशु मसीह ने भी अपने शिष्यों से उन्हें ही बपतिस्मा देने के लिए
कहा जो पहले स्वेच्छा से उसके शिष्य बनना स्वीकार कर चुके थे (मत्ती 28:19-20),
और हम पहले देख चुके हैं कि प्रभु यीशु का शिष्य बनने के लिए
व्यक्ति को पहले अपने पापों से पश्चाताप करना अनिवार्य है। अर्थात प्रभु यीशु
द्वारा दिए गए बपतिस्मा देने और लेने के निर्देश में पहले व्यक्ति द्वारा पश्चाताप
करना अनिवार्यतः निहित है। यही बात, अपने आप में, शिशुओं या बच्चों के, तथा चर्च की रीति पूरी करने के
लिए बपतिस्मा देने या लेने को निषेध कर देती है।
संपूर्ण बाइबल में कहीं भी किसी शिशु
अथवा बच्चे को बपतिस्मा देने का कोई उदाहरण नहीं है; जिनका भी बपतिस्मा होने के उदाहरण
हैं वे सभी वयस्क थे और उन्होंने स्वेच्छा से पापों से पश्चाताप करने के पश्चात ही
बपतिस्मा लिया। साथ ही जहां कहीं भी बपतिस्मा दिए जाने का उल्लेख है, वहाँ यह भी स्पष्ट संकेत है कि वह पानी के छिड़काव या माथे पर पानी से चिह्न
बना देने के द्वारा नहीं, वरन किसी नदी या बहुत जल के स्थान
पर पानी के अंदर उतर कर, फिर पानी में से बाहर आने, अर्थात डुबकी के द्वारा दिया गया बपतिस्मा था (मत्ती 3:16; यूहन्ना 1:28; 3:23; प्रेरितों 8:36-39)। और न ही बाइबल में
किसी दृढ़ीकरण या confirmation की कोई बात, आवश्यकता, अथवा
विधि दी गई है।
किन्तु इस “समीकरण” वाली
धारणा के अधीन, लोग सामान्यतः यही मान लेते हैं कि किसी भी
आयु में, किसी भी प्रकार का “बपतिस्मा”
लेने से वे मसीह के जन, उसके शिष्य, और उद्धार या नया जन्म पाए हुए व्यक्ति बन जाते हैं; जो कदापि सत्य नहीं है, बाइबल और प्रभु यीशु की
शिक्षा नहीं है। बपतिस्मा न तो नया जन्म देता है, न उद्धार
और पापों की क्षमा देता है, और न ही प्रभु यीशु का शिष्य
बनाता है। प्रत्येक चर्च अथवा मण्डली में ऐसे कितने ही लोग मिल जाएंगे, जिन्होंने एक रस्म या रीति के तौर पर बपतिस्मा तो लिया और उससे संबंधित
विधि-विधान तो पूरे किए, किन्तु सच्चे मन से पापों से
पश्चाताप नहीं किया, न ही प्रभु यीशु मसीह को अपना
उद्धारकर्ता ग्रहण किया। उनके जीवन, आदतें, बोल-चाल, व्यवहार, यदि सभी कुछ
दिखा देते हैं कि वे वास्तव में उद्धार पाए हुए नहीं हैं। उनके बपतिस्मे ने उनका
जीवन नहीं बदला; वे अभी भी अपने पापों ही में जी रहे हैं।
उद्धार या नया जन्म पाए हुए व्यक्ति के लिए बपतिस्मा प्रभु का निर्देश है; किन्तु हर बपतिस्मा पाया हुआ व्यक्ति उद्धार पाया हुआ और प्रभु का जन नहीं
होता है - मनुष्यों द्वारा गढ़ी और लागू की गई इस गलत धारणा की बाइबल में कहीं कोई
समर्थन अथवा पुष्टि नहीं है।
आज मसीही विश्वास के स्थान पर ईसाई धर्म
को मानने और मनाने वाले लोग बड़ी निष्ठा और लगन से किन्तु गलत धारणा और विचारधारा
के साथ प्रभु भोज और बपतिस्मे में सम्मिलित तो होते हैं, किन्तु यह नहीं जानते और
समझते हैं कि यदि उन्होंने पापों से पश्चाताप नहीं किया है, प्रभु
यीशु को स्वेच्छा से अपना उद्धारकर्ता ग्रहण नहीं किया है, सच्चे
मन से उसके शिष्य नहीं बने हैं, तो यह सब उनके लिए व्यर्थ और
निष्फल है; वे अभी भी अपने पापों में पड़े हुए हैं और अनन्त
विनाश के मार्ग पर ही अग्रसर हैं। इसलिए यदि आपने अभी तक अपने आप को प्रभु यीशु
मसीह की शिष्यता में समर्पित नहीं किया है, और आप अभी भी
अपने एक परिवार विशेष में जन्म अथवा उस परिवार और अपने जन्म से संबंधित धर्म तथा
उसकी रीतियों के पालन के आधार पर अपने आप को प्रभु का जन समझ रहे हैं, तो आपको भी अपनी इस गलतफहमी से बाहर निकलकर परमेश्वर के वचन बाइबल की सच्चाई
को स्वीकार करने और उसका पालन करने की आवश्यकता है।
आज और अभी आपके पास अपनी अनन्तकाल की
स्थिति को सुधारने का अवसर है; प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यशायाह
34-36
- कुलुस्सियों 2