जब मैं अपने पहनने के लिए कपड़े खरीदने जाती हूँ तो कुछ बातें हैं जो वहाँ उपस्थित लोगों को सुनने को मिलती हैं - बहुत लंबा है; बहुत छोटा है; बहुत बड़ा है; बहुत तंग है; बहुत ढीला है आदि! सही रीति से ’फिट’ आने वाले वस्त्र ढूँढ पाना लगभग असंभव लगता है।
बहुत से लोगों के लिए यही समस्या एक ऐसा चर्च ढूँढने में भी होती है जो उनके लिए बिलकुल ’फिट’ हो! उन्हें प्रत्येक चर्च में कुछ ना कुछ ऐसा दिखता ही है जो उनके अनुसार सही नहीं है। कहीं उन्हें लगता है कि उनके गुण और उपयोगिता का सही आँकलन और आदर नहीं होता, तो कहीं उनके मस्खरेपन का गलत अर्थ लगाया जाता है, तो किसी चर्च में उन्हें औरों के आचरण, विश्वास, कार्यक्रमों या उपस्थित लोगों से परेशानी रहती है। बस उन्हें यही लगता रहता है कि वे उस चर्च में ’फिट’ नहीं हो पा रहे हैं; उन्हें उस मण्डली के लोगों में उनका सही स्थान नहीं मिल पा रहा है।
लेकिन हम मसीही विश्वासी यह भी जानते हैं कि यह परमेश्वर कि आज्ञा है कि हम आपस में मेल-मिलाप के साथ और एक-दूसरे की सहायतार्थ चर्च में रहें। प्रेरित पौलुस ने इफिसियों की मण्डली को लिखा कि "जिस में सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है। जिस में तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्वर का निवास स्थान होने के लिये एक साथ बनाए जाते हो" (इफिसियों 2:21-22)। अर्थात सभी मसीही विश्वासी मिलकर परमेश्वर का निवास स्थान बनते जा रहे हैं, जैसे मूसा के समय में मिलापवाला तम्बू (निर्गमन 26) और राजा सुलेमान के दिनों में वह भव्य मन्दिर (1 राजा 6:1-14) था। जैसे उस तम्बू और फिर उस मन्दिर में सभी भिन्न वस्तुएं मिलकर एक ऐसी इकाई बन गई थीं जो एक साथ मिलकर परमेश्वर के आदर, आरधना और निवास का स्थान हो गईं, वैसे ही आज हम मसीही विश्वासीयों को भी भिन्न होते हुए भी मिलजुल कर और एक मन होकर एक ऐसा समाज होना है जहाँ संसार परमेश्वर के आदर, आराधना और निवास को देख सके।
हमें कभी भी कोई भी चर्च हमारे अपने आँकलन के अनुसार सिद्ध नहीं मिलेगा, लेकिन मसीही स्वभाव को लेकर यह हमारा प्रयास रहना चाहिए कि बजाए दूसरों को अपने प्रति ’फिट’ करने के, हम ही पहल करके उनके साथ ’फिट’ होने का प्रयास करें और हम सभी एक मन और एक उद्देश्य के लोग हों जो परमेश्वर की महिमा के लिए एक दूसरे के साथ ’फिट’ होकर रहें। - जूली ऐकैरमैन लिंक
मसीह यीशु का प्रेम भिन्नता में भी एकता और प्रेम उत्पन्न कर सकता है।
क्या तुम नहीं जानते, कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो, और परमेश्वर का आत्मा तुम में वास करता है? - 1 कुरिन्थियों 3:16
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 2:1-11
Philippians 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
Philippians 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
Philippians 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
Philippians 2:4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे।
Philippians 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।
Philippians 2:6 जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।
Philippians 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
Philippians 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
Philippians 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।
Philippians 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
Philippians 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
एक साल में बाइबल:
- भजन 18-19
- प्रेरितों 20:17-38