ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

मंगलवार, 4 सितंबर 2018

आज्ञाकारिता


      मुझे एक भूमिगत पानी की टंकी की आवश्यकता थी, और मुझे यह भी बिलकुल स्पष्ट पता था कि मुझे वह कैसे बनी हुई चाहिए। इसलिए मैंने मिस्त्री को अपनी आवश्यकतानुसार उस टंकी को बनाने के लिए बिलकुल स्पष्ट निर्देश दिए। मैंने जब अगले दिन जाकर देखा कि काम कैसा चल रहा है तो मुझे देख कर क्रोध आया कि मिस्त्री ने मेरे कहे के अनुसार नहीं किया था, उसने योजना को बदल दिया था, इससे वे प्रभाव भी नहीं होने पाते जो मैं उस टंकी के द्वारा चाहता था। मेरे निर्देशों का पालन न करने के लिए जो बहाने वह मुझे सुना रहा था वे उसकी अनाज्ञाकारिता के समान ही खिसियाने वाले थे।

      मैं बैठकर उसे फिर से टंकी को दोबारा बनाते हुए देखने लगा, और मेरी खिसियाहट तथा क्रोध के धीरे-धीरे शान्त होने के साथ ही मुझे अपने दोष का भी बोध होने लगा, कि मैंने भी परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता कितनी ही बार की है, और कितनी ही बार अपने जीवन में उसके निर्देशों का पालन न करने के कारण उसके काम को फिर से दोबारा से करना पड़ा है।

      प्राचीन इस्त्राएलियों के समान, जो अकसर परमेश्वर के निर्देशों की आज्ञाकारिता न करने के दोषी रहते थे, हम भी अकसर अपने ही मार्ग पर चलते रहते हैं। किन्तु उसकी आज्ञाकारिता ही परमेश्वर के साथ प्रगाढ़ संबंध बनाने का मार्ग है। जैसा परमेश्वर के वचन बाइबल में लिखा है, मूसा ने इस्त्राएलियों से कहा था, “इसलिये तुम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार करने में चौकसी करना; न तो दाहिने मुड़ना और न बांए। जिस मार्ग में चलने की आज्ञा तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को दी है उस सारे मार्ग पर चलते रहो, कि तुम जीवित रहो, और तुम्हारा भला हो, और जिस देश के तुम अधिकारी होगे उस में तुम बहुत दिनों के लिये बने रहो” (व्यवस्थाविवरण 5:32-33)। मूसा के सदियों बाद, प्रभु यीशु ने भी अपने शिष्यों से कहा कि वे उसपर भरोसा, और परस्पर प्रेम बनाए रखें।

      हमारे मनों का यह समर्पण और इसके साथ उसके प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता ही है जो हमारे लिए भला ही उत्पन्न करती है। हम मसीही विश्वासियों के अन्दर निवास करने वाला परमेश्वर का आत्मा हमारी सहायता करता है कि हम परमेश्वर के आज्ञाकारी बने रहें, और स्मरण रखें कि “क्योंकि परमेश्वर ही है, जिस न अपनी सुइच्‍छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है” (फिलिप्पियों 2:13)। - लॉरेंस दरमानी


हम परमेश्वर के जितना निकट चलेंगे, 
उसके मार्गदर्शन को उतनी स्पष्टता से अनुभव करेंगे।

शमूएल ने कहा, क्या यहोवा होमबलियों, और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन मानना तो बलि चढ़ाने और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है। - 1 शमूएल 15:22

बाइबल पाठ: व्यवस्थाविवरण 5: 28-33
Deuteronomy 5:28 जब तुम मुझ से ये बातें कह रहे थे तब यहोवा ने तुम्हारी बातें सुनीं; तब उसने मुझ से कहा, कि इन लोगों ने जो जो बातें तुझ से कही हैं मैं ने सुनी हैं; इन्होंने जो कुछ कहा वह ठीक ही कहा।
Deuteronomy 5:29 भला होता कि उनका मन सदैव ऐसा ही बना रहे, कि वे मेरा भय मानते हुए मेरी सब आज्ञाओं पर चलते रहें, जिस से उनकी और उनके वंश की सदैव भलाई होती रहे!
Deuteronomy 5:30 इसलिये तू जा कर उन से कह दे, कि अपने अपने डेरों को लौट जाओ।
Deuteronomy 5:31 परन्तु तू यहीं मेरे पास खड़ा रह, और मैं वे सारी आज्ञाएं और विधियां और नियम जिन्हें तुझे उन को सिखाना होगा तुझ से कहूंगा, जिस से वे उन्हें उस देश में जिसका अधिकार मैं उन्हें देने पर हूं मानें।
Deuteronomy 5:32 इसलिये तुम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार करने में चौकसी करना; न तो दाहिने मुड़ना और न बांए।
Deuteronomy 5:33 जिस मार्ग में चलने की आज्ञा तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को दी है उस सारे मार्ग पर चलते रहो, कि तुम जीवित रहो, और तुम्हारा भला हो, और जिस देश के तुम अधिकारी होगे उस में तुम बहुत दिनों के लिये बने रहो।


एक साल में बाइबल: 
  • भजन 143-145
  • 1 कुरिन्थियों 14:21-40