कृपया उत्पत्ति 1 और 2 अध्याय से देखिए। परमेश्वर ने पहले पृथ्वी को बनाया, उसे मनुष्य के रहने योग्य तैयार किया, समस्त वनस्पति और जीव-जंतुओं की रचना की, और फिर जब मनुष्य के जीवन और रहने के लिए सब कुछ तैयार हो गया, तब परमेश्वर ने अपने हाथों से मनुष्य की रचना की। फिर, परमेश्वर ने मनुष्य के लिए एक विशेष वाटिका – अदन की वाटिका को लगाया, और मनुष्य को उसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी सौंपी। और, भले और बुरे के ज्ञान तथा जीवन के वृक्ष के फलों को छोड़ मनुष्य को अन्य प्रत्येक वृक्ष का फल खाने के लिए दे दिया। उसके बाद, मनुष्य का साथ देने के लिए, परमेश्वर ने हव्वा को उसका सहायक बनाकर, उसके साथ रहने के लिए दिया। उनके लिए किसी बात की कोई कमी नहीं थी; परमेश्वर उन दोनों के साथ संगति करता था; पृथ्वी पर सिद्ध शान्ति थी, पाप का अस्तित्व नहीं था, कोई समस्या नहीं थी, आदम और हव्वा को जो कुछ भी चाहिए था, वह सब बहुतायत और सरलता से उपलब्ध था।
इस शान्ति पूर्ण जीवन और परमेश्वर के साथ उनकी संगति को छिन-भिन्न करने के लिए शैतान ने एक बहुत साधारण और सीधी कार्यविधि का प्रयोग किया। बजाए इसके कि उन्हें विचार करने देता कि परमेश्वर ने उन्हें तैयार करके मुफ्त में क्या कुछ दे दिया है, बजाए इसके कि मनुष्य को परमेश्वर के प्रति उस सब के लिए जो उसने तैयार करके उपलब्ध करवा दिया है धन्यवादी और कृतज्ञ होने दे, उस सब की देखभाल करे जैसा परमेश्वर ने उससे कहा, और उसे परमेश्वर की महिमा के लिए इस्तेमाल करे, शैतान ने उन दोनों के मनों में उस बात को डाला कि परमेश्वर ने उन्हें क्या नहीं दिया है; और उनके ध्यान को उस पर लगाए रखने की बजाए जो मिला है, उस ओर मोड़ दिया, जो उन्हें नहीं मिला है। एक बार शैतान ने आदम और हव्वा के ध्यान को परमेश्वर के प्रावधानों से मोड़ दिया, उसके बाद उन्होंने परमेश्वर से यह पूछने और जानने का भी प्रयास नहीं किया कि जो उन्हें नहीं दिया गया है, क्या वह आवश्यक भी है, क्या उसकी कोई उपयोगिता भी है? जब संसार में कुछ बुरा था ही नहीं, सब कुछ बहुत अच्छा था (उत्पत्ति 1:31), तो भले और बुरे के ज्ञान को प्राप्त करने के द्वारा आदम और हव्वा को क्या अतिरिक्त लाभ मिल सकता था? शैतान ने इस कार्यविधि, कि परमेश्वर ने उन्हें क्या नहीं दिया है, के द्वारा हव्वा को बहकाया, और उसमें परमेश्वर के समान भले और बुरे के ज्ञान को रखने की लालसा उत्पन्न की। इसके बाद शैतान ने उसके मन में यह डाला कि यदि वह उसकी सलाह का पालन करे तो उसे अभी भी वह सब मिल सकता है, और वह अपने स्तर को बढ़ा कर परमेश्वर के समान कर सकती है। एक बार शैतान ने यह बीज उसके मन में बो दिया, तो उसके बाद उसे फिर अकेला नहीं छोड़ा, उसे बातों में लगाए रखा, उसे विचार करने, आदम से उसके बारे में चर्चा करने, या परमेश्वर के आने और फिर उससे पूछने की प्रतीक्षा करने का समय ही नहीं दिया। और आज भी शैतान इसी कार्यविधि के द्वारा मनुष्य को बहकाता और गिराता है, मनुष्य के मन में डालता है कि उसके पास यह नहीं है, वह नहीं है, और उन्हें उकसाता है कि जो उसके पास नहीं है वह सब उसके लिए कितना आवश्यक है, और उन्हें तब तक नहीं छोड़ता है जब तक कि वे उन बातों को पाने की लालसा करने की उसकी चाल में फँस नहीं जाते हैं।
थोड़ा रुक कर उपभोक्ता वस्तुओं और सौन्दर्य प्रसाधनों से संबंधित विज्ञापनों और उत्पादन के बारे में विचार कीजिए – क्या यह इसी कार्यविधि पर आधारित नहीं है? आप को निरन्तर यह एहसास करवाया जाता है कि उन वस्तुओं, उन बातों के बारे में सोचें जो आपके पास होनी चाहिए थीं किन्तु आपको नहीं दी गई हैं, जो आपके पड़ौसियों, या सहकर्मियों, या रिश्तेदारों के पास हैं, लेकिन आप के पास नहीं हैं। वह सब जो आप पाना चाहते हैं किन्तु आप को पता नहीं है कि कैसे प्राप्त करें, और जिन्हें पा लेने के बाद आप यदि उन से बेहतर नहीं तो कम से कम उनके समान तो हो ही जाएँगे। क्या संपूर्ण विज्ञापन उद्योग और उपभोक्ता वस्तुओं का उद्योग क्या इसी एक कार्यविधि पर आधारित और चलाया जाने वाला नहीं है? एक बार ज़ोर देकर निरन्तर दिखाए जा रहे विज्ञापनों के द्वारा जब शैतान इन नाशमान और भौतिक वस्तुओं की लालसा के बीज हम में बो देता है, उसके बाद फिर वह हम में उसके कहे के अनुसार कर के उन्हें प्राप्त करने की लालसा और प्रयासों में भी डाल देता है। और यह परमेश्वर के साथ हमारे समय और संगति, और फिर अन्ततः हमारे अनन्तकाल की कीमत पर होता है।
यदि हम समय रहते सच को नहीं पहचानते हैं, अपने पापों से पश्चाताप नहीं करते हैं और इन बातों के लिए प्रभु से क्षमा, तथा परमेश्वर से मेल-मिलाप और उसकी संतान होने का दर्जा नहीं माँगते हैं, तो इन भौतिक और नाशमान बातों को पाने की लालसा में हम अपने अनन्तकाल के लाभ और जीवन की हानि उठाते हैं। एक बार यदि हम शैतान की इस कार्यविधि, इस युक्ति को समझ लें, तो फिर यह देखना और समझना कठिन नहीं है कि किस प्रकार से शैतान ने इसी युक्ति का प्रयोग महिलाओं में पुल्पिट का प्रयोग करने और पास्टर होने जिम्मेदारियों को निभाने की लालसा रखने के लिए किया है – उन बातों के लिए जिनकी अनुमति परमेश्वर ने अपने वचन में उन्हें प्रदान नहीं की है। किन्तु शैतान उन स्त्रियों के मन में यही डालता है कि उन्हें सर्वोत्तम और सबसे महत्वपूर्ण वरदान से वंचित रखा गया है, और उन्हें कभी उन विशिष्ट वरदानों और योग्यताओं के बारे में सोचने नहीं देता है जो परमेश्वर ने उन्हें उसके राज्य और महिमा के लिए दीं हैं, जो पुरुषों को कभी मिल नहीं सकती हैं और न पुरुष कभी उन्हें उपयोग कर सकते हैं। हम इसके बारे में और अधिक अपने अगले लेख में देखेंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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Please see from Genesis chapters 1 and 2. God had first created the earth, made it inhabitable for man, brought all the vegetation and animal life into existence, once everything required for man’s existence was in place, it was then that God created man with His own hands. God then planted the special Garden of Eden for man, gave man charge of it, and except for the Tree of Good and Evil, and the Tree of Life, man could eat the fruit of every tree. Then, to give Adam company, God made Eve to be his helper and stay with him. Nothing was lacking for them; God used to fellowship with both of them; there was perfect peace on earth, there was no sin, there were no problems. All that Adam and Eve ever needed was easily and abundantly made available to them.
Satan’s Strategy to disrupt this peaceful existence and fellowship with God was simple and straightforward. Instead of allowing man to think about all that God had prepared for him and freely given it to him, instead of letting man be thankful to God for all that He had provided, take care of it as God had asked him to do, utilize it for his own benefit and God’s glory, Satan put into their mind what God had not given them; and diverted their attention from what had been given into thinking about what God has not given. Once Satan turned their attention away from God’s provisions, Adam and Eve did not bother to think or learn from God about what had not been given, was it at all necessary; did it have any utility? When there was no evil on earth at that time, and everything was very good (Genesis 1:31), what additional gain or advantage would Adam and Eve have by knowing about good and evil? Satan misled Eve through this strategy; putting into her heart, what God has not given, enticed her to desire to be like God and learn about knowing about good and evil. Satan then put into her heart that she can still have it all by following his advice, and thereby raise her status to be like God. Once Satan had planted this seed in her mind, he did not leave her alone, he kept her engaged in conversation with him, did not allow her time to think it over, or confer with Adam about it, or wait till God came to meet them and ask Him about it. And even today Satan beguiles man through this same strategy, puts into their heart and draws their attention to what they have not been given, gets them into pondering about all that they are missing, makes them feel how necessary for them are the things that have not been given to them, and does not leave them till they fall for his devious devices.
Think over all the advertising for the various consumer and cosmetic products – is it not based on this very strategy? Keep making you think of all that you should be having, all that has not been given to you, all that you neighbor or colleague or family member has, but you don’t. All that you can acquire but don’t know how, and how by acquiring it you will become equal, if not better than them. The whole Advertising and Consumer Products business is built and operated on this very strategy. Once, through forceful and relentless advertising, these seeds are sown in us, then Satan gets us working to acquire these temporal and perishing worldly things and achievements through his advice, at the cost of our time and fellowship with God, and eventually our eternity.
If we don’t realize the truth in time repent of our sins, ask for the Lord Jesus to forgive us, and reconcile us with God, to be His child for eternity, for the sake of temporal gains, we end up losing our eternal life and benefits. Once we understand Satan’s this strategy, it is not difficult to see how he also uses the same strategy to beguile women into desiring the pulpit and pastoral responsibilities – things that God has not permitted for them in His Word. But Satan makes them feel as if they have been deprived and cheated of the most important and the best gift, never letting them think about all the unique gifts that God has exclusively given to them instead, to be used for His glory and Kingdom; gifts and abilities that no man can ever have – they are the unique privilege of women only. We will see more about this in our next article.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
- To Be Continued