मुझे अपने बचपन का एक खेल स्मरण है - सेब पकड़ना; इसके लिए खेलने वाले के हाथ पीछे करके बाँध दिए जाते थे और उसे अपने मुँह तथा दाँतों से एक धागे से बंधे और झूलते हुए सेब को पकड़ना होता था। झूलते हुए सेब को ऐसे पकड़ना बड़ा कठिन और खिसियाने वाला होता था। यह मुझे स्मरण दिलाता है कि हाथ हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं - हम उनकी सहायता से ही खाने पाते हैं, किसी का अभिनंदन करने पाते हैं, कुछ थामने पाते हैं, अपनी सुरक्षा करने पाते हैं। कहने का तातपर्य यह है कि जीवन के लिए जो भी आवश्यक है, वह करने के लिए हाथों की बहुत महत्वपूर्ण तथा आवश्यक भूमिका होती है।
जब परमेश्वर के वचन बाइबल में मैं भजन 46:10 पढ़ता हूँ, तो इसे रोचक पाता हूँ कि यहाँ परमेश्वर कहता है कि "चुप हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं"। मूल इब्रानी भाषा में प्रयुक्त जिस शब्द का अनुवाद यहाँ ’चुप’ हुआ है उसका अर्थ है ’संघर्ष बन्द करना’, या, यदि बिलकुल शब्दार्थ को लें तो ’हाथ बगल में रख लेना’। पहली नज़र में यह परामर्श बड़ा जोखिम भरा लगता है, क्योंकि किसी भी कठिन परिस्थिति में हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है उस परिस्थिति में अपना हाथ डालकर उसे अपने लाभ के लिए मोड़ देने का प्रयास करना। लेकिन यहाँ परमेश्वर हम से कह रहा है, "अपने हाथ हटा लो और केवल मुझे ही इस समस्या का निवारण कर लेने दो; और विश्वास रखो कि निवारण मैं ही दूँगा।"
लेकिन सामान्यतः अपने हाथ पूर्णतया हटा कर परमेश्वर को पूरी स्वतंत्रता के साथ कार्य करने देने में हम अपने अन्दर असुरक्षित अनुभव करते हैं। किंतु यदि हम वास्तव में इस बात पर विश्वास रखते हैं कि, जैसा भजनकार इस भजन में लिखता है, "परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलने वाला सहायक" (भजन 46:1) और यह कि, "सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है" (भजन 46:7), तो हम हर परिस्थिति, परेशानी, समस्या में शांत होकर, अपने हाथ हटा कर परमेश्वर की देखभाल में विश्राम कर सकते हैं; सभी निवारण को उसके हाथों में छोड़ सकते हैं। - जो स्टोवैल
जब हम अपनी समस्याएं परमेश्वर के हाथों में सौंप देते हैं,
तब वह अपनी शांति हमारे हृदयों में भर देता है।
प्रभु यहोवा, इस्राएल का पवित्र यों कहता है, लौट आने और शान्त रहने में तुम्हारा उद्धार है; शान्त रहते और भरोसा रखने में तुम्हारी वीरता है। परन्तु तुम ने ऐसा नहीं किया - यशायाह 30:15
बाइबल पाठ: भजन 46
Psalms 46:1 परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलने वाला सहायक।
Psalms 46:2 इस कारण हम को कोई भय नहीं चाहे पृथ्वी उलट जाए, और पहाड़ समुद्र के बीच में डाल दिए जाएं;
Psalms 46:3 चाहे समुद्र गरजे और फेन उठाए, और पहाड़ उसकी बाढ़ से कांप उठें।
Psalms 46:4 एक नदी है जिसकी नहरों से परमेश्वर के नगर में अर्थात परमप्रधान के पवित्र निवास भवन में आनन्द होता है।
Psalms 46:5 परमेश्वर उस नगर के बीच में है, वह कभी टलने का नहीं; पौ फटते ही परमेश्वर उसकी सहायता करता है।
Psalms 46:6 जाति जाति के लोग झल्ला उठे, राज्य राज्य के लोग डगमगाने लगे; वह बोल उठा, और पृथ्वी पिघल गई।
Psalms 46:7 सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।
Psalms 46:8 आओ, यहोवा के महाकर्म देखो, कि उसने पृथ्वी पर कैसा कैसा उजाड़ किया है।
Psalms 46:9 वह पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है; वह धनुष को तोड़ता, और भाले को दो टुकड़े कर डालता है, और रथों को आग में झोंक देता है!
Psalms 46:10 चुप हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियों में महान हूं, मैं पृथ्वी भर में महान हूं!
Psalms 46:11 सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।
एक साल में बाइबल:
- यिर्मयाह 27-29
- तीतुस 3