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रविवार, 13 अप्रैल 2014

परिवर्तन


   कहा जाता है कि लोग परिवर्तन को नापस्न्द करते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि हम उस ही परिवर्तन को नापसन्द करते हैं जिस के बारे में हम सोचते हैं कि उससे कोई कष्ट या हानि होगी। उदाहरणस्वरूप, यदि बेहतर पगार और अधिक प्रभाव रखने वाली नौकरी हमें मिल रही हो तो हम सहर्ष उसे स्वीकार कर लेंगे, और संबंधित परिवर्तनों से होने वाली असुविधा को झेलने में कोई आनाकानी नहीं करेंगे; यदि हमें और बेहतर पड़ौस तथा बड़ा मकान आसान शर्तों पर रहने को मिल रहा हो तो हमें घर बदलने में कोई आपत्ति नहीं होती। कहने का तात्पर्य है कि हम परवर्तन से नहीं परिवर्तन से होने वाले संभावित हानि से डरते हैं, चाहे वह हानि शारीरिक हो, मनोवैज्ञानिक हो अथवा भावनात्मक हो।

   लेकिन परिवर्तन जीवन में अवश्यंभावी भी है और आवश्यक भी। यदि सब कुछ सदा वैसे का वैसा ही रहे तो इसका अर्थ है कि कुछ उन्नति नहीं हो रही है। लेकिन हम मसीही विश्वासियों के पास एक चरवाहा है - प्रभु यीशु, जो हमें हर परिवर्तन में मार्गदर्शन देता है और सदा ही बेहतर स्थानों पर लेकर चलता है। जैसे इस्त्राएलियों के साथ हुआ था, वाचा किए हुए उस नए और बेहतर स्थान तक पहुँचना, अविश्वास और ढिठाई के कारण कठिन भी हो सकता है। मिस्त्र की गुलामी से निकालकर जब परमेश्वर इस्त्राएलियों को वाचा किए हुए कनान देश को लेकर चला तो वे परिस्थितियों को देखकर परमेश्वर के विरुद्ध कुड़कुड़ाए (निर्गमन 15:24; गिनती 14:2) और उन्हें अपनी यात्रा में अनेक कठिनाईयों और दुखों का सामना करना पड़ा।

   इसके विपरीत प्रभु यीशु का उदाहरण है जो एक ही सप्ताह के अन्दर लोगों का अगुवा होने से, सब के द्वारा तिरिस्कृत होने वाला हो गया। वह अच्छा चरवाहा फसह के बलिदान का मेमना बन गया। लेकिन क्योंकि प्रभु यीशु ने परमेश्वर की आज्ञाकारिता में स्वेच्छा से सब दुख सह लिया, परमेश्वर ने भी उसे सब से शिरोमणि कर दिया (यूहन्ना 10:11; फिलिप्पियों 2:8-9)।

   हर परिवर्तन सुखद हो यह आनिवार्य नहीं, लेकिन उस परिवर्तन के लिए जब हमारा मार्गदर्शक वह हो जो हमसे बेहद प्रेम रखता है और सदा हमारा भला ही चाहता है, तो फिर हमें परिवर्तन से डरने की आवश्यकता नहीं है। अपने आप को विश्वास के साथ अपने अच्छे चरवाहे के हाथों में छोड़ दें, वह जो भी करेगा आपकी भलाई के लिए ही करेगा। - जूली ऐकैरमैन लिंक


प्रभु यीशु मसीह में विश्वास परिवर्तन के तूफानी समुद्र में भी हमें स्थिर रखेगा।

और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली। इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है। कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। - फिलिप्पियों 2:8-10

बाइबल पाठ: यूहन्ना 10:7-18
John 10:7 तब यीशु ने उन से फिर कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि भेड़ों का द्वार मैं हूं। 
John 10:8 जितने मुझ से पहिले आए; वे सब चोर और डाकू हैं परन्तु भेड़ों ने उन की न सुनी। 
John 10:9 द्वार मैं हूं: यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा और भीतर बाहर आया जाया करेगा और चारा पाएगा। 
John 10:10 चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और घात करने और नष्‍ट करने को आता है। मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं। 
John 10:11 अच्छा चरवाहा मैं हूं; अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है। 
John 10:12 मजदूर जो न चरवाहा है, और न भेड़ों का मालिक है, भेड़िए को आते हुए देख, भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है, और भेड़िय़ा उन्हें पकड़ता और तित्तर बित्तर कर देता है। 
John 10:13 वह इसलिये भाग जाता है कि वह मजदूर है, और उसको भेड़ों की चिन्‍ता नहीं। 
John 10:14 अच्छा चरवाहा मैं हूं; जिस तरह पिता मुझे जानता है, और मैं पिता को जानता हूं। 
John 10:15 इसी तरह मैं अपनी भेड़ों को जानता हूं, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं, और मैं भेड़ों के लिये अपना प्राण देता हूं। 
John 10:16 और मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं; मुझे उन का भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा। 
John 10:17 पिता इसलिये मुझ से प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूं, कि उसे फिर ले लूं। 
John 10:18 कोई उसे मुझ से छीनता नहीं, वरन मैं उसे आप ही देता हूं: मुझे उसके देने का अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है: यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 राजा 23-25