हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं में बहकाए भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरितों और प्रभु के लोगों का भेस धारण कर के प्रस्तुत करते हैं। ये लोग और उनकी शिक्षाएं आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डाली हुई होती हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है।
पिछले लेखों में हमने इन लोगों के
द्वारा प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं के बाद, परमेश्वर पवित्र
आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता
को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे
मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही
परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है,
और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं
जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना भी कहते हैं। वचन
स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास
करना ही है। इन गलत शिक्षकों द्वारा इसी बात को एक और रूप में “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” पाने की
आवश्यकता के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है। उनकी शिक्षा है कि प्रभावी और
उपयोगी मसीही जीवन के लिए “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा”
पाना अनिवार्य है, तब ही व्यक्ति प्रभु के लिए
कार्य कर सकता है। यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार
नहीं है। आज हम इसी के विषय परमेश्वर के वचन बाइबल से देखेंगे।
प्रेरितों 1:4 के विचार, कि
प्रभु यीशु के शिष्य पवित्र आत्मा
प्राप्त होने तक (पद 8) यरूशलेम में प्रतीक्षा करते रहें, को
आगे बढ़ाते हुए, प्रभु यीशु ने इस पद में अपने शिष्यों कहा कि
थोड़े ही दिनों में वे पवित्र आत्मा से (‘का’
नहीं; not ‘of’, but ‘with’) बपतिस्मा
पाएंगे। पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाने को लेकर बहुत सी ऐसी शिक्षाएं और
विचार मसीही समाज और विश्वासियों में फैली हुई हैं और फैलाई भी जा रही हैं, जो बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार नहीं
हैं। ये शिक्षाएं चीनी में लिपटे हुए कड़वे और घातक ज़हर के समान हैं, जो विश्वासियों के विश्वास और सेवकाई
की बहुत हानि करते हैं, उन्हें सत्य के मार्ग से भटका कर,
गलत धारणाओं और निष्फल कार्यों की ओर ले जाते हैं।
वास्तविकता में, पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना, शिष्यों के सेवकाई पर निकलने से पहले पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त
करने की प्रभु की बात का पूरा होना है। यहाँ पर दो छोटे शब्दों, “से” और “का” में हेरा-फेरी करने के द्वारा एक बिलकुल ही गलत अर्थ, जिसका कोई अभिप्राय था ही नहीं, इन गलत शिक्षकों के
द्वारा डाल दिया गया है। शब्द “से” एक
माध्यम को, जिसमें या जिससे बपतिस्मा दिया जाता है दिखाता है;
जबकि शब्द “का” किसी
के अधिकार या स्वामित्व को दिखाता है। इसे 1 कुरिन्थियों
1:11-12 से समझिए - ‘का’ कहने का अर्थ है अन्य से हटकर उस जन का हो जाना। पवित्र आत्मा का
बपतिस्मा पाना कहने अर्थात हो जाता है कि एक बपतिस्मा वह है जिसे प्रभु ने कहा है,
और अब पवित्र आत्मा प्रभु द्वारा कहे गए उस बपतिस्मे से एक भिन्न
बपतिस्मा भी देता है; एक छोटे से शब्द का अनुचित उपयोग,
सारे अर्थ को बदल देता है।
यह बहुत ध्यान देने और विचार करने की बात है कि पूरे नए नियम में कहीं पर भी वाक्यांश
“पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” प्रयोग नहीं किया
गया है। जहाँ भी प्रयोग हुआ है, “पवित्र आत्मा से बपतिस्मा”
प्रयोग हुआ है। “से” का अर्थ होता है वह माध्यम जो बपतिस्मा देने
के लिए प्रयोग होगा; “का” से अर्थ बनता है बपतिस्मा किसके अधिकार या आज्ञा के अनुसार होगा। “प्रभु यीशु का बपतिस्मा” कहने का अर्थ है वह
बपतिस्मा जो प्रभु यीशु के कहे के अनुसार या उसकी आज्ञाकारिता के अनुसार दिया गया;
और इसी अभिप्राय के अनुसार “पवित्र आत्मा का
बपतिस्मा” का अर्थ है वह बपतिस्मा जो पवित्र आत्मा के कहे के
अनुसार या उसके अधिकार से दिया गया। मसीही विश्वासी के जीवन में परमेश्वर पवित्र
आत्मा की भूमिका के बारे में प्रभु यीशु ने सिखाया है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा
केवल वही बताता, स्मरण करवाता, और
सिखाता है जो प्रभु यीशु बता और सिखा चुका है (यूहन्ना 14:26; 16:13); वह अपनी ओर से कुछ नहीं कहता या करता है। इसलिए
एक अन्य “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” पाने की बात करना, पवित्र आत्मा के विषय प्रभु यीशु
द्वारा वर्णित की गई, और उनकी निर्धारित सेवकाई में विरोधाभास (contradiction)
लाना और परमेश्वर के वचन में अपनी ओर से जोड़ना होगा, जो स्वीकार्य नहीं है, वरन दण्डनीय है
(प्रकाशितवाक्य 22:18-19)।
इस से संबंधित वचनों के द्वारा “से” और
“का” के अर्थ की भिन्नता को समझते हैं:
- मत्ती 3:11 मैं तो पानी से तुम्हें मन फिराव का बपतिस्मा देता हूं,
परन्तु जो मेरे बाद आने वाला है, वह मुझ
से शक्तिशाली है; मैं उस की जूती उठाने के योग्य नहीं,
वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा।
- मरकुस 1:8 मैं ने तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा दिया है पर वह तुम्हें पवित्र
आत्मा से बपतिस्मा देगा।
- लूका 3:16 तो यूहन्ना ने उन सब से उत्तर में कहा: कि मैं तो तुम्हें पानी से
बपतिस्मा देता हूं, परन्तु वह आने वाला है, जो मुझ से शक्तिमान है; मैं तो इस योग्य भी
नहीं, कि उसके जूतों का बन्ध खोल सकूं, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा।
- यूहन्ना 1:33 और मैं तो
उसे पहचानता नहीं था, परन्तु जिसने मुझे जल से
बपतिस्मा देने को भेजा, उसी ने मुझ से कहा, कि जिस पर तू आत्मा को उतरते और ठहरते देखे; वही
पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देनेवाला है।
- प्रेरितों
के काम 11:16 तब मुझे प्रभु का वह वचन स्मरण आया; जो उसने कहा; कि यूहन्ना ने तो पानी से
बपतिस्मा दिया, परन्तु तुम पवित्र आत्मा से
बपतिस्मा पाओगे।
- प्रेरितों
के काम 18:25 उसने प्रभु के मार्ग की शिक्षा पाई थी, और मन लगाकर यीशु के विषय में ठीक ठीक सुनाता, और
सिखाता था, परन्तु वह केवल यूहन्ना के बपतिस्मा की
बात जानता था। - यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के
अनुसार या उसके अधिकार से, जल से दिया गया बपतिस्मा।
- 1 कुरिन्थियों 1:12 मेरा कहना यह है, कि तुम में से कोई तो अपने आप को पौलुस का, कोई अपुल्लोस का, कोई कैफा का, कोई मसीह का कहता है। कुरिन्थुस के विश्वासियों ने अपने आप को व्यक्तियों के अधिकार
के आधार पर विभाजित करना आरंभ कर दिया था, कलीसिया में विभाजन आने लग गए
थे।
- 1 कुरिन्थियों 10:2 और सब
ने बादल में, और समुद्र में, मूसा
का बपतिस्मा लिया। मूसा के अधिकार के अंतर्गत इस्राएलियों के लिए बपतिस्मे का अभिप्राय।
- रोमियों 6:3 क्या तुम नहीं जानते, कि हम जितनों ने मसीह यीशु
का बपतिस्मा लिया तो उस की मृत्यु का बपतिस्मा लिया। प्रभु
यीशु के कहे के अनुसार और अधिकार के अंतर्गत प्रभु यीशु के अनुयायियों का बपतिस्मा।
हर स्थान पर “पवित्र आत्मा से” प्रयोग किया गया है,
अर्थात, पानी के समान ही पवित्र आत्मा वह
माध्यम होगा जिसके द्वारा या जिसमें बपतिस्मा मिलेगा; “पवित्र
आत्मा का” कहीं पर भी प्रयोग नहीं हुआ है, अर्थात, परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी ओर से या अपने
अधिकार से कुछ भी नया नहीं करेगा, नहीं सिखाएगा, नहीं बताएगा ।
बहुधा, इस बपतिस्मे के विषय लोगों
में यह धारणा दी जाती है कि यह बपतिस्मा पाना पवित्र आत्मा पाने से पृथक, एक अतिरिक्त (extra) अनुभव है, जो मसीही विश्वासी को सामान्य से और अधिक सक्षम करता है, उसे परमेश्वर के लिए और अधिक उपयोगी और सामर्थी बनाता है। इसलिए जो प्रभु
के लिए उपयोगी होना चाहता है, या सामर्थ्य के कार्य करना
चाहता है, उसे प्रभु से यह अनुभव प्राप्त करना चाहिए,
इसके लिए प्रयास और प्रार्थना करनी चाहिए। जबकि सत्य यह है कि बाइबल
में ऐसी कोई शिक्षा कहीं पर भी नहीं दी गई है। ध्यान करें, न
तो उन 3000 प्रथम विश्वासियों से, जिन्होंने
पतरस के प्रचार पर विश्वास के द्वारा उद्धार पाया यह, या ऐसी
कोई भी बात कही गई, और न ही पौलुस, या
पतरस, या अन्य किसी प्रेरित अथवा प्रचारक के द्वारा कभी भी
कहीं भी उनकी अपनी सेवकाई के विषय में कहा गया कि उसने एक अतिरिक्त “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” पाया था, जिसके फलस्वरूप वह और अधिक सामर्थी होकर प्रभु के लिए उपयोगी हो सका। क्या
उन आरंभिक प्रेरितों और प्रभु के शिष्यों से अधिक सामर्थी सेवकाई किसी की हो सकती
है, जिन्होंने सारे संसार में सुसमाचार फैला दिया और संसार
को उलट-पुलट कर दिया (प्रेरितों 17:6)? किन्तु उन्हें कभी
कोई अतिरिक्त “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” पाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। उन्होंने अपने विषय यह “पवित्र
आत्मा का बपतिस्मा” पाने की कभी कोई बात नहीं की;
साथ ही पौलुस ने कहा कि मसीही विश्वासी उस के समान प्रभु यीशु का
अनुसरण करें (1 कुरिन्थियों 4:16-17; 11:1; 1 थिस्सलुनीकियों 4:1); अर्थात जो उसके समान प्रभु
यीशु का अनुसरण करेगा, वह उसके समान प्रभु के लिए प्रभावी और
उपयोगी भी होगा। यही एक तथ्य अपने आप में इस “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” पाने की आवश्यकता
एवं औचित्य से संबंधित गलत शिक्षा के व्यर्थ एवं अनुचित होने को स्पष्ट दिखा देता
है।
प्रेरितों 1:5 का वाक्य, प्रभु
द्वारा पद 4 में कही जा रही बात का ही ज़ारी रखा जाना है,
और प्रभु की बात में कोई चकराने वाली बात (confusion) नहीं है। प्रभु ने सीधे और साफ शब्दों में पद 4 की
प्रतिज्ञा - उन शिष्यों के द्वारा पवित्र आत्मा को प्राप्त करना, को ही पद 5 में पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाना कहा
है, जिसकी पुष्टि एक बार फिर से पद 8 में
प्रभु की बात से हो जाती है।
न ही प्रभु ने यहाँ
पर या अन्य किसी स्थान पर किसी से भी यह कहा कि “पवित्र
आत्मा प्राप्त कर लेने के बाद, प्रयास और प्रार्थना करना कि
तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा भी मिल जाए; उसके लिए यत्न
करते रहना, जिससे तुम और भी अधिक सामर्थी होकर सेवकाई कर
सको।” अर्थात, उन शिष्यों को यह विशेष
बपतिस्मा पाने के लिए अपनी ओर से और कुछ नहीं करना था; कोई
लालसा नहीं, कोई प्रतीक्षा नहीं, कोई
प्रयास नहीं, कोई प्रार्थना नहीं। जो होना था वह प्रभु के
द्वारा स्वतः ही किया जाना था; यह उनके किसी कार्य के परिणाम
स्वरूप नहीं होना था। इस पद में ऐसा कोई संकेत भी नहीं है जिससे यह आभास हो कि
पवित्र आत्मा प्राप्त करना और पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना कोई दो पृथक कार्य
अथवा अनुभव हैं। यह बिलकुल स्पष्ट है कि
प्रेरितों 1:4 और 5 में एक ही बात को दो विभिन्न
प्रकार से व्यक्त किया गया है।
जैसे हम पहले भी देख
चुके हैं, पवित्र आत्मा कोई वस्तु नहीं है जिसे विभाजित करके
टुकड़ों में या अंश-अंश करके दिया जा सके। वह ईश्वरीय व्यक्तित्व है, और जब भी, जिसे भी दिया जाता है, उसमें वह अपनी संपूर्णता में ही वास करता है, टुकड़ों
में नहीं (यूहन्ना 3:34)। तो यदि प्रेरितों 1:4 की प्रतिज्ञा के अनुसार शिष्यों को जब पवित्र आत्मा एक बार मिल जाएगा,
तो फिर पद 5 में यदि पवित्र आत्मा का बपतिस्मा
यदि कोई अलग अनुभव, अलग सामर्थ्य पाना है, तो फिर उस संपूर्णता में मिले हुए पवित्र आत्मा के विश्वासी के अंदर
विद्यमान होने के बाद, अब और क्या सामर्थ्य दिया जाना शेष है?
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और
समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में
न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही
आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और
लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत
शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को
जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के
पालन को अपना लें।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- गिनती
5-6
- मरकुस 4:1-20