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बुधवार, 20 मार्च 2019

विश्राम



      मेरा ध्यान उस प्रमुख समाचार की ओर गया: “धावकों के लिए विश्राम दिन भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।” अमेरिका के पहाड़ों पर दौड़ने वाले दल के भूतपूर्व सदस्य, टॉमी मैन्निंग द्वारा लिखे गए उस लेख में लेखक ने एक ऐसे सिद्धान्त पर बल दिया था, समर्पित खिलाड़ी जिसकी कभी-कभी उपेक्षा करते हैं – व्यायाम के पश्चात शरीर को फिर से बल प्राप्ति के लिए विश्राम की आवश्यकता होती है। मैन्निंग ने लिखा, “शरीर की रचना और संचालन के दृष्टिकोण से, प्रशिक्षण में सीखे और अर्जित किए गए परिवर्तन विश्राम के समय में ही शरीर में उन उपयोगी परिवर्तनों को लाने पाते हैं। इसका अर्थ है कि विश्राम भी परिश्रम के समान ही उपयोगी है।”

      यही सिद्धान्त हमारे मसीही विश्वास के जीवन में भी उतना ही सत्य है। हतोत्साहित होने और थक कर शिथिल पड़ जाने से बच कर रहने के लिए विश्राम के नियमित समय आवश्यक हैं, परिश्रम और विश्राम में एक संतुलन बनाए रखना चाहिए। पृथ्वी पर अपनी सेवकाई के समय में प्रभु यीशु ने इस आत्मिक संतुलन को बनाए रखने के अवसरों का उपयोग किया, उसके समय पर होने वाली अत्याधिक मांगों के बावजूद।

      जब प्रभु के शिष्य प्रचार और चंगाई के थका देने वाले कठिन कार्य को कर के लौटे तो प्रभु ने उनसे कहा कि “तुम आप अलग किसी जंगली स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो; क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था” (मरकुस 6:31)। परन्तु एक बड़ी भीड़ उनके पीछे आ गई, और वे विश्राम न कर सके, तो प्रभु यीशु ने उस भीड़ को परमेश्वर के राज्य के विषय सिखाया और पाँच रोटी तथा दो मछली से उस भीड़ को भोजन करवाया (पद 32-44)। जब भीड़ चली गई, तो यीशु “उन्हें विदा कर के पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया” (पद 46)।

      यदि हमारे जीवन केवल हमारे कार्य तथा सेवकाई ही से व्यस्त रहते हैं, तो शीघ्र ही हम अपने कार्यों में कम प्रभावी होते चले जाएँगे। प्रभु यीशु हमें आमंत्रित करता है कि हम नियमित कुछ समय उसके साथ प्रार्थना और विश्राम में बिताने के लिए निकाला करें, जिससे थक कर शिथिल और निष्क्रीय होने से बचे रह सकें। - डेविड मैक्कैस्लैंड


मसीही विश्वास और सेवकाई के हमारे जीवनों में विश्राम भी सेवकाई के कार्य जितना महत्वपूर्ण है।

और भोर को दिन निकलने से बहुत पहिले, वह उठ कर निकला, और एक जंगली स्थान में गया और वहां प्रार्थना करने लगा। - मरकुस 1:35

बाइबल पाठ: मरकुस 6:30-46
Mark 6:30 प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे हो कर, जो कुछ उन्होंने किया, और सिखाया था, सब उसको बता दिया।
Mark 6:31 उसने उन से कहा; तुम आप अलग किसी जंगली स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो; क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था।
Mark 6:32 इसलिये वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए।
Mark 6:33 और बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहिचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे हो कर वहां पैदल दौड़े और उन से पहिले जा पहुंचे।
Mark 6:34 उसने निकलकर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा।
Mark 6:35 जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे; यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है।
Mark 6:36 उन्हें विदा कर, कि चारों ओर के गांवों और बस्‍तियों में जा कर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें।
Mark 6:37 उसने उन्हें उत्तर दिया; कि तुम ही उन्हें खाने को दो: उन्हों ने उस से कहा; क्या हम सौ दीनार की रोटियां मोल लें, और उन्हें खिलाएं?
Mark 6:38 उसने उन से कहा; जा कर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियां हैं? उन्होंने मालूम कर के कहा; पांच और दो मछली भी।
Mark 6:39 तब उसने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर पांति पांति से बैठा दो।
Mark 6:40 वे सौ सौ और पचास पचास कर के पांति पांति बैठ गए।
Mark 6:41 और उसने उन पांच रोटियों को और दो मछिलयों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियां तोड़ तोड़ कर चेलों को देता गया, कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछिलयां भी उन सब में बांट दीं।
Mark 6:42 और सब खाकर तृप्‍त हो गए।
Mark 6:43 और उन्होंने टुकडों से बारह टोकिरयां भर कर उठाई, और कुछ मछिलयों से भी।
Mark 6:44 जिन्हों ने रोटियां खाईं, वे पांच हजार पुरूष थे।
Mark 6:45 तब उसने तुरन्त अपने चेलों को बरबस नाव पर चढाया, कि वे उस से पहिले उस पार बैतसैदा को चले जांए, जब तक कि वह लोगों को विदा करे।
Mark 6:46 और उन्हें विदा कर के पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया।

एक साल में बाइबल:  
  • यहोशू 4-6
  • लूका 1:1-20