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रविवार, 24 अप्रैल 2022

परमेश्वर का वचन – बाइबल / Bible – The Word of God – 6




वैज्ञानिक आविष्कारों के लिए प्रेरणा एवं मार्गदर्शन देने में अनुपम 



    यह एक सामान्य, किन्तु सर्वथा गलत एवं अनुचित धारणा है कि बाइबल विज्ञान के साथ तालमेल नहीं रखती है, और विज्ञान बाइबल का समर्थन नहीं करता है। इस धारणा के विपरीत, न तो बाइबल और विज्ञान में परस्पर कोई विरोधाभास है, और न ही बाइबल विज्ञान की बातों और उन्नति में बाधक है। वास्तविकता तो यह है कि बाइबल के द्वारा मनुष्यों को लाभ पहुँचने वाले कई खोज और आविष्कार हुए हैं, तथा पश्चिमी देशों के प्रमुख वैज्ञानिक बहुधा बाइबल तथा बाइबल के परमेश्वर पर विश्वास रखने वाले लोग थे। 


    बाइबल में प्रयुक्त ऐसे शब्दों और वाक्यांशों का प्रयोग, जिनके आधार पर वैज्ञानिक खोज की गईं, समकालीन साहित्य तथा गैर-मसीहियों के द्वारा भी होता रहा है, किन्तु उन्होंने तथा उनके पाठकों ने बाइबल के शब्दों और बातों को केवल आलंकारिक भाषा समझा, अथवा उन्हें विश्वास करने योग्य मानकर गंभीरता से नहीं लिया; इसलिए उनके आधार पर कोई कार्यवाही नहीं की। लेकिन कुछ लोगों ने, जो बाइबल और बाइबल के परमेश्वर पर विश्वास रखते थे और रखते हैं, उन शब्दों और बातों को गंभीरता से लिया, उन बातों पर विश्वास किया, और इस विचारधारा के साथ उनके विषय कार्यवाही की, कि यदि बाइबल यह कहती है, तो यह सच ही है, और इसकी आगे जाँच करके, इसके आधार पर कार्यवाही करना लाभप्रद होगा। 


    पृथ्वी का गोलाकार होने, जल का चक्र, संक्रमण की बीमारियों की रोक-थाम के लिए संक्रमित रोगियों को पृथक करना, स्वच्छता और हाथ-पैर धोने के महत्व, आदि बातों के महत्व को वैज्ञानिकों द्वारा पहचानने और मानने से सदियों पहले, बाइबल में लिख दिया गया था, और परमेश्वर के लोगों से उनका पालन करने के लिए कहा गया था। 


    बाइबल की सबसे प्राचीन पुस्तक, पुराने नियम में अय्यूब की पुस्तक में, जो लगभग 2000 ईस्वी पूर्व में लिखी गई थी, परमेश्वर ने अय्यूब से "समुद्र के सोतों" के विषय में पूछा, "क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुंचा है, वा गहिरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है?" (अय्यूब 38:16)। इन "समुद्र के सोतों" को सबसे पहले सन 1973 में गहरे समुद्र के तल में मिड-एटलांटिक रिज में देखा गया जिन में से पानी निकल कर समुद्र में मिल रहा था; और 1977 में गहरे सागर के तल में गरम पानी के अद्भुत सोते देखे गए, और उनके चित्र लिए गए। सुविख्यात पत्रिका नैशनल जियोग्राफिक ने अपने नवंबर 1979 के अंक में इन गहरे सागर-तल में विद्यमान "समुद्र के सोतों" पर एक लेख प्रकाशित किया।


    अमेरिका की नौ सेना के एक मसीही विश्वासी अफसर, मैथ्यू फ़ौनटेन मौरे का ध्यान बाइबल की सभोपदेशक नामक पुस्तक में लिखी बात, "वायु दक्खिन की ओर बहती है, और उत्तर की ओर घूमती जाती है; वह घूमती और बहती रहती है, और अपने चक्करों में लौट आती है" (सभोपदेशक 1:6), तथा "आकाश के पक्षी और समुद्र की मछलियां, और जितने जीव-जन्तु समुद्रों में चलते फिरते हैं" (भजन 8:8) पर गया, और उसने निर्णय लिया कि वह बाइबल में उल्लेखित वायु बहने और समुद्र के जलचरों के जल-मार्गों का पता लगाएगा। उसके अथक प्रयासों और वायु तथा समुद्र-जल के प्रवाहित होने की धाराओं के अध्ययन और प्रकाशन के द्वारा नाविकों के लिए समुद्र में यात्रा तथा कार्य करने में बहुत सहायता हुई। मैथ्यू फ़ौनटेन मौरे की मृत्यु-उपरांत, उनकी स्मृति में एक स्मारक बनाया गया जिसमें एक पत्थर की तख्ती पर तराश कर ये शब्द लिखकर लगाए गए: “Mathew Fontaine Maury, Pathfinder of the Seas, the genius who first snatched from the oceans and atmosphere the secret of their laws. His inspiration, Holy Writ, Psalm 8:8; Ecclesiastes 1:6”.  ("मैथ्यू फ़ौनटेन मौरे, समुद्र के जल-मार्गों का खोजने वाला, वह अद्भुत प्रतिभाशाली व्यक्ति जिन्होंने सबसे पहले सागर और वायुमंडल से उनके मार्ग और रहस्य छीन लिए। यह करने की उनके प्रेरणा, पवित्र शास्त्र, भजन 8:8; सभोपदेशक 1:6") - उनकी अद्भुत प्रतिभा का रहस्य – वे बाइबल में विश्वास रखने वाले एक सामान्य मसीही विश्वासी थे, जिन्हें परमेश्वर के वचन के सत्य और कभी गलत न होने पर अटूट विश्वास था।


    चार्ल्स व्हिटशोल्ट भी एक बाइबल में विश्वास रखने वाले मसीही विश्वासी थे; वे अमेरिका की स्टैंडर्ड ऑइल कंपनी के एक निर्देशक भी थे। उन्हें उनकी कंपनी ने मिस्र में तेल खोजने के लिए भेज था - तब जब किसी को यह पता नहीं था कि मिस्र या मध्य-पूर्व खाड़ी देशों की भूमि में तेल का भण्डार विद्यमान है; और उन्होंने मिस्र में तेल की खोज कर के भी दी। मिस्र में तेल होने के प्रति चार्ल्स व्हिटशोल्ट का विश्वास, बाइबल के एक पद पर आधारित था "और जब वह उसे और छिपा न सकी तब उसके लिये सरकंड़ों की एक टोकरी ले कर, उस पर चिकनी मिट्टी और राल लगाकर, उस में बालक को रखकर नील नदी के तीर पर कांसों के बीच छोड़ आई" (निर्गमन 2:3)। चार्ल्स व्हिटशोल्ट का विश्वास था कि यदि एक गुलाम स्त्री को मिस्र में 'राल' मिल सकती है, जो कि धरती के नीचे तेल से आती है, तो इसका अर्थ है कि मिस्र में तेल है। उनके मसीही चरित्र और विश्वास के कारण उनकी कंपनी उन पर पूरा भरोसा रखती थी, और कंपनी ने उन्हें, उनके विश्वास के आधार पर, मिस्र में तेल की खोज करने के लिए भेज दिया; और उन्होंने बाइबल में लिखी बात के आधार पर मिस्र तथा मध्य-पूर्व में तेल खोज कर दिखा दिया।


    सर विलियम रैमसे एक बहुत माने हुए बाइबल पुरातत्व वैज्ञानिक हुए, जिनके द्वारा किए गए खोज और बातें आज भी, उनके 100 से भी अधिक वर्ष बाद भी, बाइबल संबंधी पुरातत्व खोजों के लिए पढ़ी और पढ़ाई जाती हैं, और उनके इस कार्य के लिए उन्हें "सर" की उपाधि से सम्मानित किया गया था। अपने समय के अन्य अनेकों पढ़े-लिखे और ज्ञानवान लोगों के समान, उनकी भी धारणा थी कि बाइबल विश्वास योग्य नहीं है, और इसे वह आदर-मान नहीं दिया जाना चाहिए जो दिया जाता है। अपनी धारणा प्रमाणित करने के लिए वे बाइबल संबंधी क्षेत्रों में प्रमाण एकत्रित करने के लिए गए जिससे यह प्रमाणित कर सकें कि बाइबल विश्वासयोग्य नहीं है। उन्होंने जा कर पुरातत्व महत्व के स्थानों  पर खुदाई करनी तथा प्रमाण एकत्रित करने आरंभ किए। शीघ्र ही उन्हें एहसास हो गया कि बाइबल में लिखी बातें, छोटे से छोटे विवरण में भी बिल्कुल सटीक और सही हैं, और बाइबल संबंधी उनके पुरातत्व खोज और ज्ञान ने बाइबल के पक्ष में अनेकों प्रमाण उजागर कर दिए। विलियम रैमसे स्वयं इन प्रमाणों से इतने प्रभावित हुए कि वे भी एक मसीही विश्वासी बन गए, उन्होंने बाइबल कॉलेज में दाखिल लिया, मसीही सेवकाई में सम्मिलित हुए, और अपनी खोज के कार्यों से कई पुस्तकें और लेख लिखे, जिन्हें आज भी बहुत सम्मान के साथ देखा और पढ़ा जाता है। बाइबल को झूठ प्रमाणित करने का प्रयास करने वाला व्यक्ति बाइबल के सत्य को प्रमाणित करने वाला मसीही विश्वासी बन गया। 


    वास्तविकता में, ऐसी कोई भी पुरातत्व खोज नहीं है जो बाइबल की किसी भी बात को असत्य प्रमाणित करती हो। परमेश्वर की सृष्टि और रचना, परमेश्वर के वचन के विरुद्ध कभी हो ही नहीं सकती है। सही भावना और दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है, और परमेश्वर के वचन के तथ्य, उसकी सृष्टि में प्रमाण प्रत्यक्ष कर देंगे। 


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


एक साल में बाइबल:

  • 2 शमूएल 19-20
  • लूका 18:1-23
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English Translation


Unique in Inspiring & Guiding Scientific Discoveries


It is a common, but an absolutely wrong and unsubstantiated allegation that the Bible and science do not go with each other, and that science does not support the Bible. Contrary to this wrong belief, the fact is that there is no contradiction between the Bible and science, nor is the Bible a hindrance to the advancement of science, as we will see in the coming articles. In fact, there have been many discoveries and inventions that have benefited mankind, and have come through what had been written in the Bible. The leading scientists of Western countries were often believers in the Bible and in the God of the Bible.


Words and phrases used in the Bible, on the basis of which scientific discoveries have been made, have also been used in contemporary literature and by non-Christians too. Therefore, the opponents of the Bible considered the words and things stated in the Bible to be only the use of figurative language. Hence, they did not take Biblical facts seriously, nor considered them as credible so, no one thought of taking any action on the basis of what was written in the Bible. But some people, who believed in the Bible and the God of the Bible, took those words and things seriously, believed in the things stated in God’s Word, and acted on them with the belief that if the Bible says it, then it is true, and therefore, it would be worthwhile and beneficial to take action on its basis.


Centuries before scientists recognized and accepted the importance of Earth's being round, of the water cycle, of isolating infected patients to prevent transmission of infectious diseases, of the importance of hygiene and hand-washing, etc., they had already been written in the Bible, and the people of God were instructed to obey them.


In the oldest book of the Bible, the Book of Job in the Old Testament, which was written around 2000 BC, God asked Job about the "springs of the sea", "Have you entered the springs of the sea? Or have you walked in search of the depths?” (Job 38:16). These "springs of the ocean" were first observed in 1973 at the Mid-Atlantic Ridge in the deep ocean floor, with water escaping into the ocean; And in 1977 amazing springs of warm water were seen at the bottom of the deep ocean, and their pictures were taken. The well-known journal National Geographic published an article in its November 1979 issue on the "springs of the ocean" existing in these deep ocean floors.


Matthew Fontaine Maury, a Christian officer in the US Navy, noticed written in the Bible, "The wind goes toward the south, And turns around to the north; The wind whirls about continually, And comes again on its circuit" (Ecclesiastes 1:6), and "The birds of the air, And the fish of the sea That pass through the paths of the seas" (Psalm 8:8), and decided that he will trace the pathways mentioned in the Bible, of the wind, the water, and of the creatures of air and water. His tireless efforts and study, and his publication of the currents of air and sea-water flow tremendously helped the sailors to travel and work at sea. After the death of Matthew Fontaine Maury, a monument was erected in his memory, in which the words were carved on a stone plaque: “Mathew Fontaine Maury, Pathfinder of the Seas, the genius who first snatched from the oceans and atmosphere the secret of their laws. His inspiration, Holy Writ, Psalm 8:8; Ecclesiastes 1:6” - the secret of his amazing genius - his being a Bible believer; a simple person who had an unwavering belief in the truth and veracity of God's word.


Charles Whitsholt was also a Bible believing Christian; he was also a Director of Standard Oil Company of America. He was sent by his company to Egypt to find oil - when no one knew that there were oil reserves in Egypt or in the lands of the Middle East Gulf countries; And he did discover oil in Egypt. Charles Whitsholt's belief in the existence of oil in Egypt was based on a Bible verse "But when she could no longer hide him, she took an ark of bulrushes for him, daubed it with asphalt and pitch, put the child in it, and laid it in the reeds by the river's bank" (Exodus 2:3). Charles Whitsholt believed that if a slave woman could find ‘pitch' in Egypt, which came from oil under the earth, it meant that Egypt had oil. His company had full confidence in him because of his Christian character and faith, and the company sent him, based on his faith, to search for oil in Egypt. And on the basis of what was written in the Bible, he discovered and demonstrated the presence of oil in Egypt and the Middle East.


Sir William Ramsey was a highly regarded Bible archaeologist, whose discoveries and sayings are still read and studied today, more than 100 years after him, for Biblical archaeological discoveries he made. For his work, he was awarded the title of "Sir". Like many other well-educated and knowledgeable people of his time, he held the belief that the Bible was unworthy of being believed, and that it should not be given the respect it was being given. To substantiate his belief, he went to the Biblical lands to collect evidence so that he could prove his contention of the Bible being unreliable. He went and started digging at places of archaeological importance and collecting evidence. He soon realized that what was written in the Bible was accurate and correct even in the smallest detail, and his archaeological discoveries and knowledge uncovered numerous pieces of evidence in favor of the Bible. William Ramsey himself was so impressed by the evidence that he became a Christian Believer, enrolled in Bible College, joined the Christian ministry, and wrote many books and articles from his research work, which are seen, read and held with great respect even today. The man who tried to prove the Bible to be false became a Christian and a person who proved the truth of the Bible instead.


In fact, there is no archaeological discovery that proves anything in the Bible to be false. The creation and handiwork of God can never be a witness against the Word of God. It only needs to be viewed in the right spirit and considered with a correct point of view, and the facts stated in God's Word, will reveal the evidence for God present in His creation.


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.



Through the Bible in a Year: 

  • 2 Samuel 19-20

  • Luke 18:1-23