जैसे जैसे मैं प्रभु यीशु के जीवन का अध्ययन करता हूँ, मुझे विस्मय होता है कि जिन लोगों से वह सबसे अधिक क्रुद्ध हुआ, वे बाहरी रूप से उस से मेल खाने वाले लोग थे। प्रभु यीशु ने मूसा की व्यवस्था का पूरी रीति से पालन किया, कुछ फरीसियों की शिक्षाओं को भी उद्ध्वत किया (मरकुस ९:११, १२; १२:२८-३४)। फिर भी उसने फरीसियों को ही सबसे अधिक डांटा। उसने उन्हें ’सांपों’, ’करैत के बच्चों’, ’मूर्खों’ और ’कपटी’ कहा।
उन में ऐसा क्या था जिसने प्रभु यीशु को उन्हें ऐसा कहने को उकसाया?
फरीसी परमेश्वर के लिये जीवन जीने को समर्पित होते थे; वे, व्यवस्था के अनुसार, अपनी आमदनी का दसवां भाग पूरी खराई से मन्दिर में देते थे (मती २३:२३); व्यवस्था की हर बात का पालन वैधानिक रीति से करते थे; अन्य लोगों में प्रचार करने के लिये सेवकों को भेजते थे कि उन्हें अपने साथ मिला सकें (मती २३:१५); वे अपने समय के ’खुली’ विचारधारा वाले लोगों और नास्तिकों की अपेक्षा, पारंपरिक सिद्धांतों का पालन करते थे।
किंतु फिर भी प्रभु यीशु का उन पर किया गया भीषण दोषारोपण दिखाता है कि वह उनके वैधानिक विधिवादिता - अर्थात सच्चे और खरे मन से नहीं वरन केवल बाहरी रूप से आज्ञा पालन करना, के विषैले प्रभाव को कितनी गंभीरता से लेता था। उसे पता था कि इस वैधानिक विधिवादिता के खतरे अप्रत्यक्ष लेकिन बहुत खतरनाक होते हैं, उन्हें परोक्ष में देखना सदा संभव नहीं होता। मेरा मानना है कि यही खतरे आज हमारे लिये भी गंभीर समस्या हैं।
प्रभु यीशु ने भीतरी के बजाए बाहरी पर उनके द्वारा दिये गए ज़ोर की निन्दा की - "हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय, तुम कटोरे और थाली को ऊपर ऊपर से तो मांजते हो परन्तु वे भीतर अन्धेर असंयम से भरे हुए हैं" (मती२३:२५)। पाखण्ड उन के जीवनों में भरा था, और उन्होंने परमेश्वर के प्रेम को प्रगट करने वाली उसकी व्यवस्था को अपनी स्वार्थसिद्धी का आधार, निज कमाई का साधन और लोगों को प्रभावित करने का ज़रिया बना लिया था - सब कुछ धर्म और परमेश्वर ही के नाम पर। यही प्रभु यीशु को नागवार गुज़रता था, और वह नहीं चाहता था कि ऐसी कोई बात उसके चेलों में कभी पाई जाए।
आपकी आत्मिक परिपक्वता का प्रमाण इसमें नहीं है कि आप संसार के समक्ष अपने आप को कितना "पवित्र और शुद्ध" दिखाते हैं, वरन इसमें है कि आप स्वयं अपनी खामियों को कितना पहचानते हैं, मानते हैं और उनके लिये कितने पश्चातापी हैं। आपका यही बोध और उन खामियों का अंगीकार, परमेश्वर की कृपा और अनुग्रह के द्वार आपके लिये खोल देता है। - फिलिप यैन्सी
हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय... तुम ने व्यवस्था की गम्भीर बातों, अर्थात न्याय और दया और विश्वास को छोड़ दिया है। - मती २३:२३
बाइबल पाठ: मत्ती २३:१-१५
तब यीशु ने भीड़ से और अपने चेलों से कहा।
शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं।
इसलिये वे तुम से जो कुछ कहें वह करना, और मानना परन्तु उन के से काम मत करना क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं।
वे एक ऐसे भारी बोझ को जिस को उठाना कठिन है, बान्धकर उन्हें मनुष्यों के कन्धों पर रखते हैं, परन्तु आप उन्हें अपनी उंगली से भी सरकाना नहीं चाहते ।
वे अपने सब काम लोगों को दिखाने के लिये करते हैं: वे अपने तावीजों को चौड़े करते, और अपने वस्त्रों की कोरें बढ़ाते हैं।
जेवनारों में मुख्य मुख्य जगहें, और सभा में मुख्य मुख्य आसन।
और बाजारों में नमस्कार और मनुष्य में रब्बी [गुरू] कहलाना उन्हें भाता है।
परन्तु, तुम रब्बी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरू है: और तुम सब भाई हो।
और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, कयोंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है।
और स्वामी भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात मसीह।
जो तुम में बड़ा हो, वह तुम्हारा सेवक बने।
जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा: और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।
हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय!
तुम मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो आप ही उस में प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करने वालों को प्रवेश करने देते हो।
हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है, तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो।
एक साल में बाइबल:
उन में ऐसा क्या था जिसने प्रभु यीशु को उन्हें ऐसा कहने को उकसाया?
फरीसी परमेश्वर के लिये जीवन जीने को समर्पित होते थे; वे, व्यवस्था के अनुसार, अपनी आमदनी का दसवां भाग पूरी खराई से मन्दिर में देते थे (मती २३:२३); व्यवस्था की हर बात का पालन वैधानिक रीति से करते थे; अन्य लोगों में प्रचार करने के लिये सेवकों को भेजते थे कि उन्हें अपने साथ मिला सकें (मती २३:१५); वे अपने समय के ’खुली’ विचारधारा वाले लोगों और नास्तिकों की अपेक्षा, पारंपरिक सिद्धांतों का पालन करते थे।
किंतु फिर भी प्रभु यीशु का उन पर किया गया भीषण दोषारोपण दिखाता है कि वह उनके वैधानिक विधिवादिता - अर्थात सच्चे और खरे मन से नहीं वरन केवल बाहरी रूप से आज्ञा पालन करना, के विषैले प्रभाव को कितनी गंभीरता से लेता था। उसे पता था कि इस वैधानिक विधिवादिता के खतरे अप्रत्यक्ष लेकिन बहुत खतरनाक होते हैं, उन्हें परोक्ष में देखना सदा संभव नहीं होता। मेरा मानना है कि यही खतरे आज हमारे लिये भी गंभीर समस्या हैं।
प्रभु यीशु ने भीतरी के बजाए बाहरी पर उनके द्वारा दिये गए ज़ोर की निन्दा की - "हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय, तुम कटोरे और थाली को ऊपर ऊपर से तो मांजते हो परन्तु वे भीतर अन्धेर असंयम से भरे हुए हैं" (मती२३:२५)। पाखण्ड उन के जीवनों में भरा था, और उन्होंने परमेश्वर के प्रेम को प्रगट करने वाली उसकी व्यवस्था को अपनी स्वार्थसिद्धी का आधार, निज कमाई का साधन और लोगों को प्रभावित करने का ज़रिया बना लिया था - सब कुछ धर्म और परमेश्वर ही के नाम पर। यही प्रभु यीशु को नागवार गुज़रता था, और वह नहीं चाहता था कि ऐसी कोई बात उसके चेलों में कभी पाई जाए।
आपकी आत्मिक परिपक्वता का प्रमाण इसमें नहीं है कि आप संसार के समक्ष अपने आप को कितना "पवित्र और शुद्ध" दिखाते हैं, वरन इसमें है कि आप स्वयं अपनी खामियों को कितना पहचानते हैं, मानते हैं और उनके लिये कितने पश्चातापी हैं। आपका यही बोध और उन खामियों का अंगीकार, परमेश्वर की कृपा और अनुग्रह के द्वार आपके लिये खोल देता है। - फिलिप यैन्सी
पाखण्ड परमेश्वर से हमारे प्रेममय सबंध को नाश कर देता है।
हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय... तुम ने व्यवस्था की गम्भीर बातों, अर्थात न्याय और दया और विश्वास को छोड़ दिया है। - मती २३:२३
बाइबल पाठ: मत्ती २३:१-१५
तब यीशु ने भीड़ से और अपने चेलों से कहा।
शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं।
इसलिये वे तुम से जो कुछ कहें वह करना, और मानना परन्तु उन के से काम मत करना क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं।
वे एक ऐसे भारी बोझ को जिस को उठाना कठिन है, बान्धकर उन्हें मनुष्यों के कन्धों पर रखते हैं, परन्तु आप उन्हें अपनी उंगली से भी सरकाना नहीं चाहते ।
वे अपने सब काम लोगों को दिखाने के लिये करते हैं: वे अपने तावीजों को चौड़े करते, और अपने वस्त्रों की कोरें बढ़ाते हैं।
जेवनारों में मुख्य मुख्य जगहें, और सभा में मुख्य मुख्य आसन।
और बाजारों में नमस्कार और मनुष्य में रब्बी [गुरू] कहलाना उन्हें भाता है।
परन्तु, तुम रब्बी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरू है: और तुम सब भाई हो।
और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, कयोंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है।
और स्वामी भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात मसीह।
जो तुम में बड़ा हो, वह तुम्हारा सेवक बने।
जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा: और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।
हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय!
तुम मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो आप ही उस में प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करने वालों को प्रवेश करने देते हो।
हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है, तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो।
एक साल में बाइबल:
- सभोपदेशक ७-९
- २ कुरिन्थियों १३