एक प्रयोग के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ लोगों को विशेष ऐनकें पहिना दीं जिनके शीशे विशेष प्रकार से बनाए गए थे। इन ऐनकों को पहिनने से चीज़ें उलटी दिखने लगती थीं, सीधी रेखाएं गोलाकार प्रतीत होती थीं और किसी आकार की सीमारेखाएं धुंधली और रंगीन प्रतीत होती थीं। कुछ दिन इन ऐनकों को पहिने रहने के बाद पहनने वालों ने शोधकर्ताओं को बताया कि आरंभ में अस्वभाविक दिखने वाले आकार, उलटी दिखने वाली चीज़ें और टेढ़ी रेखाएं धीरे धीरे समाप्त हो गईं और उनके स्थान पर संसार कि चीज़ें पहले के समान ही अपने स्वाभाविक रूप में दिखने लगीं। उनके मस्तिष्क ने उन ऐनकों से होकर आने वाले गलत जानकारी को पहिचान लिया था और उस जानकारी को स्वतः ही सुधार कर स्वाभाविक रूप में फिर से उसका सही आँकलन करना आरंभ कर दिया था। हमारे मस्तिष्क की यह कार्यकुशलता हमें परमेश्वर की ओर से मिला एक वर्दान है जिसके लिए हमें परमेश्वर का धन्यवादी होना चाहिए।
परमेश्वर के वचन बाइबल की पुस्तक नीतिवचन सिखाती है कि हमारा मन और मस्तिष्क आत्मिक बातों के लिए इसी कुशलता से काम नहीं करता। हमारा मन और मस्तिष्क हमें पाप के मायाजल में से निकाल पाने में असमर्थ है। हम अपने आप को निर्दोष और सही ही देखते रहते हैं यद्यपि हमारे मन की भावनाएं स्वार्थी, बुरी और पापी बनी रहती हैं तथा परमेश्वर के सामने हम पापी होते हैं। अपने आप को न्यायसंगत और सही ठहराने के लिए लोग अपने गलत व्यवहार का दोष अपने वातावरण पर या अपनी परिस्थितयों पर या अपने गलत पालन-पोषण पर लगाते हैं। वे अपने स्वार्थ, विद्रोह और नियमों के उल्लंघन को नहीं देखते, वरन अपने आप को मासूम और परिस्थितियों का पीड़ित बताते हैं। इस के द्वारा वे अपने अनैतिक और पापी विचार तथा व्यवहार को जायज़ ठहराते हैं। उनकी नज़र में उन में कोई दोष नहीं है और उनका मार्ग सही है।
लेकिन परमेश्वर कहता है "मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है? मैं यहोवा मन की खोजता और हृदय को जांचता हूँ ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात उसके कामों का फल दूं" (यर्मियाह १७:९)। हम अपने आप को धोखे में रख सकते हैं परमेश्वर को नहीं; और एक न एक दिन प्रत्येक को अपना हिसाब उसे देना ही होगा। परमेश्वर का वचन बाइबल ही वह सही दृष्टिकोण हमें प्रदान करता है जिससे हर बात को परमेश्वर के दृष्टिकोण से देख पाने की सामर्थ हमें प्राप्त होती है, पाप का सही बोध मिलता है और परमेश्वर का आत्मा जो उसके प्रत्येक विश्वासी में निवास करता है, हमें हमारे गलत व्यवहार से पश्चाताप द्वारा ठीक होने के लिए मार्गदर्शन भी करता है।
अनुचित दृष्टिकोण से हटकर सही दृष्टिकोण अपनाना ही आते न्याय से बचने का मार्ग है। - मार्ट डी हॉन
मनुष्य का सारा चालचलन अपनी दृष्टि में तो ठीक होता है, परन्तु यहोवा मन को जांचता है - नीतिवचन २१:२
बाइबल पाठ: नीतिवचन ३०:५-१३
Pro 30:5 ईश्वर का एक एक वचन ताया हुआ है; वह अपने शरणागतों की ढाल ठहरा है।
Pro 30:6 उसके वचनों में कुछ मत बढ़ा, ऐसा न हो कि वह तुझे डांटे और तू झूठा ठहरे।
Pro 30:7 मैं ने तुझ से दो वर मांगे हैं, इसलिये मेरे मरने से पहिले उन्हें मुझे देने से मुंह न मोड़:
Pro 30:8 अर्थात व्यर्थ और झूठी बात मुझ से दूर रख; मुझे न तो निर्धन कर और न धनी बना, प्रतिदिन की रोटी मुझे खिलाया कर।
Pro 30:9 ऐसा न हो, कि जब मेरा पेट भर जाए, तब मैं इन्कार करके कहूं कि यहोवा कौन है? वा अपना भाग खोकर चोरी करूं, और अपने परमेश्वर का नाम अनुचित रीति से लूं।
Pro 30:10 किसी दास की, उसके स्वामी से चुगली न करना, ऐसा न हो कि वह तुझे शाप दे, और तू दोषी ठहराया जाए।
Pro 30:11 ऐसे लोग हैं, जो अपने पिता को शाप देते और अपनी माता को धन्य नहीं कहते।
Pro 30:12 ऐसे लोग हैं जो अपनी दृष्टि में शुद्ध हैं, तौभी उनका मैल धोया नहीं गया।
Pro 30:13 एक पीढ़ी के लोग ऐसे हैं उनकी दृष्टि क्या ही घमण्ड से भरी रहती है, और उनकी आंखें कैसी चढ़ी हुई रहती हैं।
एक साल में बाइबल:
परमेश्वर के वचन बाइबल की पुस्तक नीतिवचन सिखाती है कि हमारा मन और मस्तिष्क आत्मिक बातों के लिए इसी कुशलता से काम नहीं करता। हमारा मन और मस्तिष्क हमें पाप के मायाजल में से निकाल पाने में असमर्थ है। हम अपने आप को निर्दोष और सही ही देखते रहते हैं यद्यपि हमारे मन की भावनाएं स्वार्थी, बुरी और पापी बनी रहती हैं तथा परमेश्वर के सामने हम पापी होते हैं। अपने आप को न्यायसंगत और सही ठहराने के लिए लोग अपने गलत व्यवहार का दोष अपने वातावरण पर या अपनी परिस्थितयों पर या अपने गलत पालन-पोषण पर लगाते हैं। वे अपने स्वार्थ, विद्रोह और नियमों के उल्लंघन को नहीं देखते, वरन अपने आप को मासूम और परिस्थितियों का पीड़ित बताते हैं। इस के द्वारा वे अपने अनैतिक और पापी विचार तथा व्यवहार को जायज़ ठहराते हैं। उनकी नज़र में उन में कोई दोष नहीं है और उनका मार्ग सही है।
लेकिन परमेश्वर कहता है "मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है? मैं यहोवा मन की खोजता और हृदय को जांचता हूँ ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात उसके कामों का फल दूं" (यर्मियाह १७:९)। हम अपने आप को धोखे में रख सकते हैं परमेश्वर को नहीं; और एक न एक दिन प्रत्येक को अपना हिसाब उसे देना ही होगा। परमेश्वर का वचन बाइबल ही वह सही दृष्टिकोण हमें प्रदान करता है जिससे हर बात को परमेश्वर के दृष्टिकोण से देख पाने की सामर्थ हमें प्राप्त होती है, पाप का सही बोध मिलता है और परमेश्वर का आत्मा जो उसके प्रत्येक विश्वासी में निवास करता है, हमें हमारे गलत व्यवहार से पश्चाताप द्वारा ठीक होने के लिए मार्गदर्शन भी करता है।
अनुचित दृष्टिकोण से हटकर सही दृष्टिकोण अपनाना ही आते न्याय से बचने का मार्ग है। - मार्ट डी हॉन
पाप से अन्धी आँखों को ठीक करने के लिए बाइबल ही सही ऐनक है।
मनुष्य का सारा चालचलन अपनी दृष्टि में तो ठीक होता है, परन्तु यहोवा मन को जांचता है - नीतिवचन २१:२
बाइबल पाठ: नीतिवचन ३०:५-१३
Pro 30:5 ईश्वर का एक एक वचन ताया हुआ है; वह अपने शरणागतों की ढाल ठहरा है।
Pro 30:6 उसके वचनों में कुछ मत बढ़ा, ऐसा न हो कि वह तुझे डांटे और तू झूठा ठहरे।
Pro 30:7 मैं ने तुझ से दो वर मांगे हैं, इसलिये मेरे मरने से पहिले उन्हें मुझे देने से मुंह न मोड़:
Pro 30:8 अर्थात व्यर्थ और झूठी बात मुझ से दूर रख; मुझे न तो निर्धन कर और न धनी बना, प्रतिदिन की रोटी मुझे खिलाया कर।
Pro 30:9 ऐसा न हो, कि जब मेरा पेट भर जाए, तब मैं इन्कार करके कहूं कि यहोवा कौन है? वा अपना भाग खोकर चोरी करूं, और अपने परमेश्वर का नाम अनुचित रीति से लूं।
Pro 30:10 किसी दास की, उसके स्वामी से चुगली न करना, ऐसा न हो कि वह तुझे शाप दे, और तू दोषी ठहराया जाए।
Pro 30:11 ऐसे लोग हैं, जो अपने पिता को शाप देते और अपनी माता को धन्य नहीं कहते।
Pro 30:12 ऐसे लोग हैं जो अपनी दृष्टि में शुद्ध हैं, तौभी उनका मैल धोया नहीं गया।
Pro 30:13 एक पीढ़ी के लोग ऐसे हैं उनकी दृष्टि क्या ही घमण्ड से भरी रहती है, और उनकी आंखें कैसी चढ़ी हुई रहती हैं।
एक साल में बाइबल:
- भजन ५७-५९
- रोमियों ४