पवित्र आत्मा से भरना
या परिपूर्ण होना क्या है? – भाग 2 समझना
पिछले लेख में हमने वचन के उदाहरणों से
तथा इफिसियों 5:18 की
व्याख्या द्वारा देखा था कि “पवित्र आत्मा से भरना” कोई पृथक या किसी-किसी को ही प्राप्त होने वाला विलक्षण अनुभव नहीं है;
और न ही यह “पवित्र आत्मा से बपतिस्मा”
के साथ संबंधित है, या उसके समान है। क्योंकि
“पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” कहकर गलत
शिक्षाओं के फैलाने वालों ने “पवित्र आत्मा से भरना” के संबंध में भी बहुत सी गलत शिक्षाएं फैला रखी हैं, इसलिए आज के लेख में कुछ सामान्य जीवन की बातों और उदाहरणों के द्वारा इसे
विस्तार से और ठीक से समझेंगे।
यदि मसीही विश्वासी पवित्र आत्मा के
निर्देशानुसार (गलातियों 5:16, 25) नहीं चलता है, उसकी
आज्ञाकारिता के द्वारा उसकी सामर्थ्य को प्रयोग नहीं करता है, तो पवित्र आत्मा उसके जीवन में शोकित, अप्रभावी,
तथा निष्फल रहता है (इफिसियों 4:30; 1 थिस्सलुनीकियों
5:19)। इसे इस उदाहरण द्वारा समझिए - आपके घर में बिजली का
कनेक्शन और तार लगे हैं और उन तारों में बिजली प्रवाहित भी होती रहती है। किन्तु
जब तक आप कोई कार्यशील, एवं बिजली से चलने वाला उपयुक्त
उपकरण उसके साथ जोड़कर बिजली को अपना कार्य नहीं करने देते हैं, तब तक उस बिजली की आपके घर में उपस्थिति निष्क्रिय, निष्फल,
एवं प्रभाव रहित है। आप जैसा और जितना शक्तिवान उपकरण जोड़ेंगे और
बिजली को उस में से प्रवाहित होकर कार्यकारी होने देंगे, उतना
ही आप उस विद्यमान बिजली की सामर्थ्य को प्रत्यक्ष देखेंगे, और
उसका सदुपयोग करेंगे। उपकरण चाहे छोटा एवं कम शक्ति का हो, अथवा
बड़ा एवं अधिक शक्ति का, उसमें प्रवाहित होने वाली बिजली एक
ही और समान गुणवत्ता की होगी। उस बिजली की सामर्थ्य का प्रदर्शन तथा उपयोग उस
उपकरण द्वारा बिजली का प्रयोग करने की क्षमता पर निर्भर होगा, क्योंकि प्रवाहित होने वाली बिजली तो सारे घर के सभी तारों और उपकरणों में
एक ही है।
इसी प्रकार से आप जितना अधिक परमेश्वर के
प्रति आज्ञाकारी और समर्पित रहेंगे, जितना उसके वचन के अनुसार चलेंगे, जितना
परमेश्वर को और उसके वचन को अपने जीवन में उच्च स्थान और आदर देंगे, उतना अधिक पवित्र आत्मा की सामर्थ्य आप में होकर कार्य करेगी, प्रकट होगी। यदि आपका आत्मिक जीवन कमज़ोर रहेगा, तो
आपको अपने जीवन में पवित्र आत्मा की सामर्थ्य भी उतनी ही कम अनुभव होगी तथा दिखाई
देगी। यदि आप मात्र औपचारिकता पूरी करने के लिए बाइबल का एक छोटा खंड पढ़ना,
और कुछ औपचारिक प्रार्थना दोहराना भर ही कर सकते हैं – और बहुतेरे
तो यह भी नहीं करते हैं, तो फिर आप कैसे आशा रख सकते हैं कि
आप वचन की अच्छे समझ रखेंगे और के जीवन में पवित्र आत्मा की जीवन्त, प्रभावी, तथा सामर्थी उपस्थिति दिखाई देगी?
परमेश्वर पवित्र आत्मा से परमेश्वर के
वचन को सीखने के लिए एक और उदाहरण पर विचार कीजिए। किसी भी स्तर की शिक्षा प्राप्त
करने के लिए बच्चों को नियमित स्कूल में जाना होता है, बैठ कर, और
ध्यान देकर पढ़ना होता है, ठीक से अपना गृह कार्य करना होता
है, परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना पड़ता है, तभी वे ज्ञान और समझ में बढ़ने पाते हैं, और जीवन में
कुछ कर पाने के योग्य होने पाते हैं। यह उनके प्रतिदिन कुछ मिनिट तक स्कूल के
विभिन्न गलियारों में हो कर घूमने-फिरने और निकलने, और
फिर वापस घर भाग आने तथा फिर शेष दिन को अन्य बातों में व्यतीत करने के द्वारा
नहीं हो सकता है। इसी प्रकार से आत्मिक पाठशाला में भी उचित समय के लिए एकाग्र मन
के साथ सीखने के उद्देश्य और तैयारी के साथ बैठना, वहां पर्याप्त समय बिताना, तथा ध्यान दे कर पवित्र आत्मा की बात को सुनना तथा उनसे सीखना, और जीवन के अनुभवों की परीक्षाओं से हो कर निकलना होता है। तब ही परमेश्वर
का वचन सीखा जा सकता है, तथा प्रभु का जीवन और सामर्थ्य
व्यक्ति के जीवन में दिखाई देती है।
प्रत्येक वास्तविक नया जन्म पाया हुआ
मसीही विश्वासी पवित्र आत्मा का मंदिर है और पवित्र आत्मा मसीही विश्वासी में सदा
विद्यमान है, बसा
हुआ है (2 तीमुथियुस 1:14)। मसीही
विश्वासी जब अपने आत्मिक स्तर एवं परिपक्वता के अनुसार, पवित्र
आत्मा की सामर्थ्य और आज्ञाकारिता में होकर परमेश्वर की महिमा एवं कार्य के लिए
कुछ ऐसा करने पाता है, जो उसके लिए अपने आप से, या किसी मानवीय सामर्थ्य, अथवा ज्ञान, या अपनी किसी योग्यता से कर पाना संभव नहीं था, तो
यही पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करना होता है, जैसा कि हम
पहले पतरस, यूहन्ना और पौलुस के जीवनों के उदाहरणों से देख
चुके हैं।
क्योंकि सामान्यतः सभी मसीही विश्वासी
परमेश्वर और उसके वचन के प्रति अपने विश्वास, समर्पण, और आज्ञाकारिता में न तो एक
समान स्तर के होते हैं, और न ही सभी उस उच्च-स्तर के होते
हैं जितने कुछ विशिष्ट लोग अपने मसीही समर्पण, आज्ञाकारिता,
और परिपक्वता के कारण हो जाते हैं, इसलिए ऐसा
लगता है कि पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करना, अर्थात पवित्र
आत्मा की सामर्थ्य से कुछ अद्भुत या विलक्षण काम करना, केवल
कुछ विशिष्ट लोगों के लिए ही संभव है। किन्तु यह लोगों को बहकाए रखने और मसीही
सेवकाई में अनुपयोगी एवं निष्फल करने के लिए शैतान द्वारा फैलाई जाने वाले
भ्रान्ति है; और इस भ्रान्ति का दुरुपयोग ‘पवित्र आत्मा से भरने’ की आवश्यकता की गलत शिक्षा को
सिखाने और प्रचार करने के लिए किया जाता है। मसीही विश्वास, आत्मिकता,
और परमेश्वर की आज्ञाकारिता में बढ़िए, और आप
भी पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से भरकर कार्य करने वाले हो जाएंगे।
बड़ा ही सामान्य और स्वाभाविक सा उदाहरण
है, आप किसी भी दुर्बल और
रोगी मनुष्य से वैसा और उतना ही शारीरिक परिश्रम करने की आशा नहीं रखेंगे जो एक
स्वस्थ और बलवंत मनुष्य सहजता से कर सकता है। जब तक संसार और सांसारिकता के साथ
समझौते का रोग हम मसीही विश्वासियों को आत्मिक रीति से दुर्बल और आत्मिक रीति से
अस्वस्थ बनाए रखेगा; जब तक हम संसार के लोगों, मतों और समुदायों या डिनोमेनेशंस की आज्ञाएँ मानने और उन लोगों के लिए काम
करते रहने को प्राथमिकता तथा इसके कारण परमेश्वर और उस के वचन की आज्ञाकारिता को
अपने जीवनों में उन की बातों से निचले दर्जे का स्थान देते रहेंगे, तथा हम जब तक प्रभु की संगति और उसके वचन के अध्ययन एवं आज्ञाकारिता को एक
सर्वोपरि अनिवार्यता के स्थान नहीं देंगे; बल्कि इसे
सांसारिकता के कार्यों के पश्चात उपलब्ध समय और सुविधा के अनुसार किया गया कार्य
बना कर करते रहेंगे, तब तक हम अपनी आत्माओं को दुर्बल बनाए रखेंगे, तब तक हम भी वह सब कदापि
नहीं करने पाएंगे जो एक आत्मिक जीवन में स्वस्थ और सबल व्यक्ति के लिए कर पाना
संभव है। और हम भी इस प्रकार की गलत शिक्षाओं को गढ़ने और प्रचार करने वालों के
भ्रम द्वारा ठगे जाते रहेंगे, इधर-उधर उछाले जाते रहेंगे
(इफिसियों 4:14)।
परमेश्वर ने हम मसीही विश्वासियों को
अपनी पवित्र आत्मा के द्वारा, हमारे उद्धार पाने के साथ ही मसीही जीवन एवं सेवकाई के लिए
आवश्यक सामर्थ्य तथा अपने वचन के द्वारा उपयुक्त मार्गदर्शन दे रखा है; अब यह हम पर है कि हम उसका सदुपयोग करें और प्रभु के योग्य गवाह बनें।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यहेजकेल
35-36
- 2 पतरस 1