मैं एक सम्मेलन में भाग ले रहा था। सम्मेलन के एक मनन और प्रार्थना के समय में उस सत्र के हमारे अगुवे ने कहा कि हम सब मिलकर ऊँची आवाज़ में १ कुरिन्थियों १३:४-८ से पढ़ेंगे और इस खण्ड में जहाँ ’प्रेम’ आया है, उसके स्थान पर ’यीशु’ बोलेंगे। यह करना और बोलना हमें बहुत ही स्वाभाविक लगा, और हम सब ने बड़ी सहजता से वह खण्ड यीशु के नाम को डालकर पढ़ा: "यीशु धीरजवन्त है और कृपालु है; यीशु डाह नहीं करता; यीशु अपनी बड़ाई नहीं करता और फूलता नहीं। यीशु अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता...यीशु कभी टलता नहीं।"
इसके बाद उस अगुवे ने कहा, "अब एक बार फिर से यही खण्ड ऊँची आवाज़ में पढ़ेंगे, किंतु इस बार प्रेम के स्थान पर सब यीशु का नहीं वरन अपना अपना नाम बोलेंगे।" हम सब को यह सुनकर घबराहट और संकोच हुआ। हमारा मन परमेश्वर के वचन के समक्ष हमारी वास्तविकता को बता रहा था, हम अपनी असली हालत जानते थे; बड़ी ठहरी और हिचकिचाती हुई दबी सी आवाज़ में मैंने पढ़ना आरंभ किया: "डेविड धीरजवन्त है और कृपालु है; डेविड डाह नहीं करता; डेविड अपनी बड़ाई नहीं करता और फूलता नहीं। डेविड अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता...डेविड कभी टलता नहीं।"
इस अभ्यास ने मुझे अपने आप से पूछने पर मजबूर किया, "परमेश्वर के प्रेम को अपने में होकर प्रकट होने में मैं किस किस प्रकार से बाधा बन रहा हूँ?" क्या मैं अपने विश्वास की अभिव्यक्ति को किसी अन्य रीति से करने को अधिक महत्वपूर्ण मानता हूँ? प्रेरित पौलुस ने समझाया है कि परमेश्वर के दृष्टिकोण से वाकपटुता, आत्मिक बातों की गहरी समझ, आत्म-बलिदान की बातें इत्यादि सब व्यर्थ हैं यदि वे प्रेम के साथ नहीं हो (१ कुरिन्थियों १३:१-३)।
परमेश्वर अपने प्रेम से भरे हृदय को हम मसीही विश्वासियों में होकर संसार पर प्रगट करने की लालसा रखता है। हम उसकी यह लालसा के पूरे होने में कितने सहायक हैं और कितनी बाधा - यह हम सब के लिए व्यक्तिगत रीति से जांचने की बात है? - डेविड मैक्कैसलैंड
मसीह के समान जीवन जीने का अर्थ है परमेश्वर के समान प्रेम करना।
प्रेम कभी टलता नहीं... - १ कुरिन्थियों १३:८
बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों १३
1Co 13:1 यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।
1Co 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
1Co 13:3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
1Co 13:4 प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाल नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
1Co 13:5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
1Co 13:6 कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
1Co 13:7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
1Co 13:8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
1Co 13:9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
1Co 13:10 परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा।
1Co 13:11 जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दीं।
1Co 13:12 अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है, परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।
1Co 13:13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।
एक साल में बाइबल:
- अमोस ७-९
- प्रकाशितवाक्य ८