मसीही विश्वासी के गुण
पिछले लेखों
में हमने परमेश्वर के वचन बाइबल की प्रेरितों के काम पुस्तक, जो प्रथम चर्च या मण्डली के आरंभ तथा गतिविधियों का संक्षिप्त इतिहास है,
में से उस मण्डली के लोगों से संबंधित पाँच बातों को देखा, जिनमें वे “लौलीन” रहते थे।
साथ ही हमने यह भी देखा कि जो मसीही विश्वासियों के लिए “लौलीन”
रहने वाली बातें है, उन्हीं को मसीही या ईसाई
धर्म का पालन करने वालों ने एक रीति या रस्म बना लिया है, और
उन्हें उस गणित के समीकरण के समान देखते, सिखाते, और निभाते हैं, कि मसीही विश्वासी इन बातों का पालन
करते हैं इसलिए इन बातों का पालन करने वाले भी स्वतः ही मसीही विश्वासी होंगे। इन
धर्म-कर्म-रस्म का पालन करने में भरोसा रखने वालों ने उन बातों के निर्वाह के
संबंध में अपने ही नियम और विधियाँ, जिनका बाइबल में कोई
उल्लेख नहीं है, स्थापित कर के, इन
बातों के निर्वाह करने को धर्म के निर्वाह के लिए एक अपेक्षित तथा वांछनीय
औपचारिकता बना दिया है। किन्तु जैसे प्रभु यीशु मसीह ने अपने समय के धर्म के
अगुवों से, उनके द्वारा मनुष्यों की बनाई हुई विधियों को
परमेश्वर की बातें कहकर सिखाने को व्यर्थ उपासना करना कहा था, “और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि
मनुष्यों की विधियों को धर्मोपदेश कर के सिखाते हैं” (मत्ती
15:9), वैसे ही आज भी प्रभु की यही बात वर्तमान में भी मनुष्यों
के गढ़े हुए विधि-विधानों पर उतनी ही लागू है, उनके विषय उतनी
ही सत्य है जितनी तब थी। प्रभु ने उन बातों और उनके औपचारिक निर्वाह की शिक्षा
देने वालों के लिए एक और बात भी कही थी, और वो भी आज के लिए
उतनी ही महत्वपूर्ण है, “उसने उत्तर दिया, हर पौधा जो मेरे स्वर्गीय पिता ने नहीं लगाया, उखाड़ा
जाएगा। उन को जाने दो; वे अन्धे मार्ग दिखाने वाले हैं: और
अन्धा यदि अन्धे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड़हे में गिर
पड़ेंगे” (मत्ती 15:13-14)।
प्रेरितों 2
अध्याय में, परमेश्वर पवित्र आत्मा के
सामर्थ्य प्राप्त करने के तुरंत बाद यरूशलेम में संसार के विभिन्न भागों से पर्व
मनाने के लिए एकत्रित “भक्त यहूदियों” को प्रेरित पतरस द्वारा किया गया प्रथम सुसमाचार प्रचार दर्ज है। पतरस
द्वारा किए गए इस सुसमाचार प्रचार की प्रतिक्रिया में, लिखा
है, “तब सुनने वालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और शेष प्रेरितों से पूछने लगे, कि हे
भाइयो, हम क्या करें?” (प्रेरितों 2:37)। उनके इस प्रश्न का पतरस द्वारा दिया गया उत्तर था “पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम
से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे।
क्योंकि यह प्रतिज्ञा तुम, और तुम्हारी सन्तानों, और उन सब दूर दूर के लोगों के लिये भी है जिन को प्रभु हमारा परमेश्वर
अपने पास बुलाएगा। उसने बहुत और बातों में भी गवाही दे देकर समझाया कि अपने आप
को इस टेढ़ी जाति से बचाओ” (प्रेरितों 2:38-40)। यहाँ हम पवित्र आत्मा की अगुवाई में पतरस द्वारा उन मसीही विश्वासियों के
करने के लिए कही गई तीन बातों को देखते हैं: “मन फिराओ”,
“बपतिस्मा लो”, और “अपने आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ”। दिए गए क्रम
के अनुसार, मसीही विश्वासी, या प्रभु
यीशु मसीह का अनुयायी हो जाने के लिए उठाया जाने वाला पहला कदम है व्यक्ति के
द्वारा मन-फिराव, अर्थात पापों से पश्चाताप करके,
पापी जीवन से मुँह मोड़ लेना, और उन बातों को
छोड़ देना। फिर दूसरा कदम है अपने मन-फिराव के निर्णय को लोगों पर बपतिस्मा लेने
के द्वारा प्रकट करना, और तब तीसरा कदम है अपने इस बदले हुए
मन और जीवन के अनुसार अपनी संगति को सुधारना और उन लोगों से पृथक हो जाना जो वापस
उन्हीं बुराइयों और सांसारिकता की बातों में ले जा सकते हैं - अपने आप को इस
टेढ़ी जाति से बचाओ।
जो मसीही
विश्वासी बन जाते हैं, फिर वे प्रेरितों 2:42 की चारों बातों में, जिन्हें हम देख चुके हैं,
लौलीन रहते हैं। अर्थात, हमें यहाँ पर
परमेश्वर पवित्र आत्मा ने पतरस के द्वारा मसीही विश्वासी हो जाने के सात चिह्न
प्रदान किए हैं:
- स्वेच्छा
से मन-फिराव का निर्णय ले लेना
- अपने
बदले हुए जीवन की गवाही के लिए बपतिस्मा लेना
- बदले
हुए जीवन की सुरक्षा और अपनी आत्मिक उन्नति के लिए बुरी संगति और बातों से
अपने आप को पृथक कर लेना
प्रभु परमेश्वर और व्यावहारिक मसीही जीवन को जानने, उसमें बढ़ने, और उसे जीने के लिए:
4.
बाइबल की शिक्षा लेते रहना
5.
अन्य मसीही विश्वासियों की संगति में बने रहना
6.
प्रभु-भोज में नियमित भाग लेते रहना
7.
प्रार्थना में लगे रहना
उपरोक्त सभी बातों से स्पष्ट है कि बाइबल के अनुसार मसीही विश्वास का जीवन किसी धर्म के निर्वाह का जीवन नहीं है, वरन प्रभु यीशु की शिष्यता और आज्ञाकारिता का जीवन है। साथ ही मसीही विश्वासी या प्रभु यीशु के अनुयायी होने के लिए किसी धर्म परिवर्तन की नहीं, वरन मन परिवर्तन की, और परिवर्तित जीवन का निर्वाह करने की आवश्यकता है। इसलिए यदि आपने अभी तक अपने आप को प्रभु यीशु मसीह की शिष्यता में समर्पित नहीं किया है, और आप अभी भी अपने एक परिवार विशेष में जन्म अथवा उस परिवार और अपने जन्म से संबंधित धर्म तथा उसकी रीतियों के पालन के आधार पर अपने आप को प्रभु का जन समझ रहे हैं, तो आपको भी अपनी इस गलतफहमी से बाहर निकलकर परमेश्वर के वचन बाइबल की सच्चाई को स्वीकार करने और उसका पालन करने की आवश्यकता है।
आज और अभी आपके पास अपनी अनन्तकाल की स्थिति को
सुधारने का अवसर है; प्रभु
यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा
सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय
जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से
केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे
पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते
हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे
पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े
गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें।
मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और
समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए
स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल
पढ़ें:
- यशायाह
37-38
- कुलुस्सियों 3