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गुरुवार, 4 अगस्त 2016

आवश्यक बातें


   गायक फर्नैन्डो ओर्टेगा द्वारा गाए गए सुप्रसिद्ध मसीही भजन "Just As I am" (जैसा मैं हूँ) की रिकॉर्डिंग में विश्व-विख्यात मसीही प्रचारक डॉ० बिली ग्राहम की आवाज़ पृष्ठभूमि में हलकी सी सुनाई देती है। डॉ० ग्राहम उस समय को स्मरण कर रहे हैं जब वे बीमार थे और उन्हें लग रहा था कि वे मृत्यु के समीप हैं। अपने जीवन पर विचार करते हुए उन्हें यह एहसास हुआ कि वे कितने बड़े पापी हैं और प्रतिदिन उन्हें परमेश्वर के अनुग्रह और क्षमा की कितनी अधिक आवश्यकता बनी रहती है।

   बिली ग्राहम इस धारणा का अन्त करने का प्रयास कर रहे थे कि परमेश्वर के बिना भी हम ठीक-ठाक रह सकते हैं। हम अपने बारे में भला तो सोच और अनुभव कर सकते हैं, परन्तु यह भावना केवल इस तथ्य पर आधारित होनी चाहिए कि हम केवल परमेश्वर के अनुग्रह के कारण ही उसकी सनतान और उसके प्रेम के भागी हैं (यूहन्ना 3:16), ना कि इस बात पर कि हम अपने कर्मों या प्रयासों से अच्छे हैं (रोमियों 7:18)।

   मसीह यीशु का अनुयायी होने के बाद, परमेश्वर की नज़रों में तथा वास्तव में अच्छा बनने के लिए पहला कदम होता है इस पाखण्ड का अन्त करना कि हम अपने कर्मों और प्रयासों से अच्छे बने हैं या बन सकते हैं, और परमेश्वर पिता से माँगना कि वह ही हमें जितना संभव है उतना अच्छा और भला बनाए। ऐसा करने के लिए परमेश्वर हम से कुछ बातों को करने, कुछ को छोड़ने, अपनी प्राथमिकताओं तथा इच्छाओं को बदलने आदि जैसी कई बातों के लिए कहेगा, और उन्हें पूरा करने में हम अनेकों बार असफल भी रहेंगे; लेकिन जब तक हम परमेश्वर को समर्पित रहकर उसके आज्ञाकारी बने रहेंगे, उसकी इच्छापूर्ति के लिए प्रयासरत रहेंगे, वह हमें अपनी समानता में अंश अंश करके बदलता और बढ़ाता रहेगा (2 कुरिन्थियों 3:18)। परमेश्वर विश्वासयोग्य है और वह अपने समय तथा अपनी योजना के अनुसार हम में बदलाव लाता रहेगा (फिलिप्पियों 1:6)।

   अपने जीवन के अन्तिम दिनों में, "Amazing Grace" (फज़ल अजीब क्या खुशइल्हान) नामक सुप्रसिद्ध मसीही भजन के लेखक जौन न्युटन की स्मरण शक्ति क्षीण होने लगी और बातों को स्मरण ना रख पाने को लेकर वे दुःखी होते थे। लेकिन ऐसे में भी, उन्होंने अंगीकार किया, "मुझे दो बातें स्मरण रहती हैं: पहली, मैं एक बहुत बड़ा पापी हूँ; दूसरी, मसीह यीशु बहुत ही बड़ा उद्धारकर्ता है।" जब मसीही विश्वास की बात आती है, तो केवल यही दो बातें हैं जिनको जानना और मानना हमारे लिए आवश्यक है। इन आवश्यक बातों को हमें कभी नज़रन्दाज़ नहीं करना चाहिए, कभी नहीं भुलाना चाहिए। - डेविड रोपर


परमेश्वर के अनुग्रह को स्वीकार करने से ही परमेश्वर की संगति और शांति का अनुभव मिलता है।

हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते की नाईं मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु की नाईं उड़ा दिया है। - यशायाह 64:6

बाइबल पाठ: रोमियों 7:18-8:2
Romans 7:18 क्योंकि मैं जानता हूं, कि मुझ में अर्थात मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते। 
Romans 7:19 क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता वही किया करता हूं। 
Romans 7:20 परन्तु यदि मैं वही करता हूं, जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करने वाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है। 
Romans 7:21 सो मैं यह व्यवस्था पाता हूं, कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूं, तो बुराई मेरे पास आती है। 
Romans 7:22 क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं। 
Romans 7:23 परन्तु मुझे अपने अंगो में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है। 
Romans 7:24 मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? 
Romans 7:25 मैं अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं: निदान मैं आप बुद्धि से तो परमेश्वर की व्यवस्था का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूं।
Romans 8:1 सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं: क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं। 
Romans 8:2 क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 66-67
  • रोमियों 7