पाप का समाधान - उद्धार - 12
हमने उद्धार से संबंधित
तीसरे और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न कि “इसके लिए यह इतना
आवश्यक क्यों हुआ कि स्वयं परमेश्वर प्रभु यीशु को स्वर्ग छोड़कर सँसार में बलिदान
होने के लिए आना पड़ा?” पर विचार आरंभ किया है। आदम और हव्वा के
पापा के कारण उत्पन्न हुई इस विडंबना के लिए कि पाप को दण्डित भी किया जाए,
किन्तु मनुष्य मृत्यु में, अर्थात, परमेश्वर की संगति से अनन्तकाल
के लिए अलग भी न हो, परमेश्वर ने जो समाधान दिया, उसके लिए सभी मनुष्यों के लिए उनके पापों को अपने ऊपर उठा लेने और उन
पापों के दण्ड को उनके स्थान पर सहन कर लेने वाले ऐसे मनुष्य की आवश्यकता थी,
जो पृथ्वी पर ही जन्मा हो, जिसने अपने गर्भ
में आने से लेकर अपनी मृत्यु तक अन्य मनुष्यों के समान ही हर परिस्थिति को सहन
किया हो, और फिर भी उसने कभी कोई पाप नहीं किया हो। साथ ही
इस मनुष्य में कुछ और विशेष गुण भी होने चाहिए थे; परमेश्वर
को कोई ऐसा मनुष्य चाहिए था जिसका जीवन माता के गर्भ में आने के समय से ही पूर्णतः
निष्पाप और निष्कलंक हो, इतना सामर्थी हो कि मृत्यु उसे वश
में न रख सके, और इतना कृपालु हो कि मनुष्यों के पापों को
स्वेच्छा से अपने ऊपर लेकर, उनके दण्ड को मनुष्यों के स्थान
पर सह ले, और फिर प्रतिफल को मनुष्यों में सेंत-मेंत बाँट
दे। केवल ऐसा मनुष्य ही पाप के दण्ड को सभी के लिए चुका सकता था, और मनुष्य को मृत्यु से स्वतंत्र कर के, उनका
मेल-मिलाप परमेश्वर से करवा सकता था, अदन की वाटिका में खोई
गई स्थिति को मनुष्यों के लिए वापस बहाल कर सकता था। अन्यथा, यदि उस मनुष्य में अपना स्वयं का कोई भी पाप होता, तो
फिर वह जो भी बलिदान देता, जो भी कार्य करता, वह उसके अपने पाप के लिए ही होता; वह औरों के पाप के
लिए अपना बलिदान नहीं दे सकता था।
किन्तु ऐसा पूर्णतः सिद्ध मनुष्य, पाप में
पतित मनुष्यों में से आ पाना संभव नहीं था, क्योंकि आदम और हव्वा के पाप के बाद से प्रत्येक मनुष्य
पाप के स्वभाव के साथ ही अपनी माता के गर्भ में आता है और शिशु अवस्था से ही पाप
की प्रवृत्ति को प्रकट करता रहता है। इसलिए मनुष्यों की प्रणाली के अनुसार माता के
गर्भ में पड़ने और जन्म लेने वाला कोई भी मनुष्य पूर्णतः निष्पाप, पवित्र, और निष्कलंक, इस
बलिदान के लिए सिद्ध नहीं ठहर सकता। इसीलिए, उत्पत्ति 3:15
में परमेश्वर ने जब इस उद्धारकर्ता की भविष्यवाणी की, तो उसे “स्त्री के वंश” का
बताया; अर्थात, वह मनुष्यों के प्रणाली
के अनुसार, किसी पुरुष के कारण माता के गर्भ में नहीं आएगा,
वरन केवल स्त्री से ही होगा। इसी लिए यह करने के लिए परमेश्वर ने एक
कुँवारी, मरियम को चुना, और उसे बताया
गया कि पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा परमेश्वर उसकी कोख में एक आश्चर्यकर्म
करेगा; उसमें से सारे जगत का उद्धारकर्ता जन्म लेगा, और मरियम ने अपने आप को प्रभु परमेश्वर के कार्य के लिए समर्पित कर दिया
(लूका 1:26-38)। मरियम की स्वीकृति के बाद, परमेश्वर ने इस महान कार्य के लिए तैयार की गई एक विशेष देह (इब्रानियों 10:5)
को मरियम की कोख में डाला। वहाँ से मरियम की कोख में किसी भी अन्य
मनुष्य के समान विकसित होकर, समय के अनुसार प्रभु यीशु मसीह
ने एक शिशु के रूप में जन्म लिया। उनके गर्भ में आने के समय से लेकर के उनके
पृथ्वी के जीवन पर्यंत वे निष्पाप, निष्कलंक, पवित्र, और सिद्ध रहे; उनकी
देह में मनुष्य के किए गए पाप का प्रभाव नहीं था।
न केवल प्रभु यीशु के मनुष्य
बनने की प्रक्रिया पाप के प्रभाव से अछूती थी, वरन उनका जीवन
भी पूर्णतः पाप से अछूता था “और तुम जानते हो, कि वह इसलिये प्रगट हुआ, कि पापों को हर ले जाए;
और उसके स्वभाव में पाप नहीं” (1 यूहन्ना 3:5);
“न तो उसने पाप किया, और न उसके मुंह से छल
की कोई बात निकली” (1 पतरस 2:22)।
प्रभु यीशु ने अपनी आलोचना करने वालों को खुली चुनौती दी, “तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है? और यदि मैं सच
बोलता हूं, तो तुम मेरी प्रतीति क्यों नहीं करते?”
(यूहन्ना 8:46)। वह हमेशा, सभी का भला करता और परमेश्वर के राज्य की शिक्षा देता हुआ स्थान-स्थान पर
जाता रहा, लोगों से मिलता रहा, “कि
परमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ्य से अभिषेक किया:
वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा; क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था”
(प्रेरितों 10:38)।
उस समय के धर्म के अगुवे – फरीसी,
शास्त्री, सदूकी, व्यवस्थापक,
आदि, उसे पसंद नहीं करते थे, क्योंकि वह सत्यवादी एवं स्पष्टवादी था, और उनके
दोगलेपन को तथा परमेश्वर के वचन के अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग को खुलकर प्रकट
कर देता था। किन्तु फिर भी वे उसके विषय जानते और समझते थे कि परमेश्वर उसके साथ
है, और वह परमेश्वर की ओर से बोलता तथा कार्य करता है,
और उसकी इस बात को स्वीकार करते थे: “फरीसियों
में से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार
था। उसने रात को यीशु के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी,
हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से गुरु
हो कर आया है; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है,
यदि परमेश्वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा
सकता” (यूहन्ना 3:1-2); “सो
उन्होंने अपने चेलों को हेरोदियों के साथ उसके पास यह कहने को भेजा, कि हे गुरु; हम जानते हैं, कि
तू सच्चा है; और परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है;
और किसी की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू
मनुष्यों का मुंह देखकर बातें नहीं करता” (मत्ती 22:16)। किन्तु साथ ही, प्रभु यीशु के विषय यह जानते-मानते हुए भी वे उससे
शत्रुता रखते थे, उसे पत्थरवाह करना चाहते थे “यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, कि भले काम के लिये हम
तुझे पत्थरवाह नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण
और इसलिये कि तू मनुष्य हो कर अपने आप को परमेश्वर बनाता है” (यूहन्ना 10:33)।
उसकी सच्चाई को जानते हुए भी उन्होंने उसे मार डालने का षड्यंत्र
बनाया, क्योंकि
उसकी ख्याति के कारण उन्हें अपनी कुर्सी हिलती हुए दिखने लगी थी “इस पर महायाजकों और फरीसियों ने मुख्य सभा के लोगों को इकट्ठा कर के कहा,
हम करते क्या हैं? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह
दिखाता है। यदि हम उसे यों ही छोड़ दे, तो सब उस पर विश्वास
ले आएंगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे। तब उन में से
काइफा नाम एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महायाजक था, उन से
कहा, तुम कुछ नहीं जानते। और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिये यह भला है, कि हमारे लोगों के लिये
एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति
नाश हो” (यूहन्ना 11:47-50)।
प्रभु यीशु का जन्म और जीवन, निष्पाप, निष्कलंक, पवित्र, और सिद्ध था;
और वह अपने अनुयायियों को भी अपने इसी स्वरूप में ढालता चला जाता है
“...तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम
उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं” (2 कुरिन्थियों
3:18); परमेश्वर पिता प्रभु यीशु के सभी शिष्यों, मसीही विश्वासियों को, अपने पुत्र, प्रभु यीशु के स्वरूप में देखना चाहता है, “क्योंकि
जिन्हें उसने पहिले से जान लिया है उन्हें पहिले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के
स्वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहलौठा ठहरे” (रोमियों
8:29)। प्रभु यीशु न तो कोई धर्म देने आया, न अपने शिष्यों से चाहा कि वे उसके नाम में कोई धर्म आरंभ करें, या लोगों का धर्म परिवर्तन करें। वह पापी मनुष्यों के मन और जीवन को बदलने,
उन्हें अपने स्वर्गीय स्वरूप और स्वभाव में ढालने, और परमेश्वर के साथ रहने वाले बनाने के लिए आया। और यह किसी धार्मिक
प्रक्रिया अथवा कर्म-कांड के द्वारा नहीं, प्रभु यीशु में विश्वास,
पापों के लिए पश्चाताप, और प्रभु के प्रति
समर्पण करने के द्वारा संभव है।
यदि आप ने अभी भी नया जन्म, उद्धार नहीं पाया है,
अपने पापों के लिए प्रभु यीशु से क्षमा नहीं मांगी है, तो अभी आपके पास अवसर है। स्वेच्छा से, सच्चे और
पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप
के साथ एक छोटे प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ
कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में
आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि
आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर
पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए
चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को
अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें,
अपने साथ कर लें।” आपका सच्चे मन से लिया गया
मन परिवर्तन का यह निर्णय आपको जगत के न्याय से बचाकर स्वर्ग की आशीषों का वारिस
बना देगा। क्या आप आज, अभी यह निर्णय लेंगे?
बाइबल पाठ: यूहन्ना 10:9-18
यूहन्ना 10:9 द्वार मैं हूं: यदि
कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा और भीतर बाहर आया जाया करेगा और
चारा पाएगा।
यूहन्ना 10:10 चोर किसी और काम के
लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिये
आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।
यूहन्ना 10:11 अच्छा चरवाहा मैं
हूं; अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है।
यूहन्ना 10:12 मजदूर जो न चरवाहा
है, और न भेड़ों का मालिक है, भेड़िए को
आते हुए देख, भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है, और भेड़िया उन्हें पकड़ता और तित्तर-बित्तर कर देता है।
यूहन्ना 10:13 वह इसलिये भाग जाता
है कि वह मजदूर है, और उसको भेड़ों की चिन्ता नहीं।
यूहन्ना 10:14 अच्छा चरवाहा मैं
हूं; जिस तरह पिता मुझे जानता है, और
मैं पिता को जानता हूं।
यूहन्ना 10:15 इसी तरह मैं अपनी
भेड़ों को जानता हूं, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं,
और मैं भेड़ों के लिये अपना प्राण देता हूं।
यूहन्ना 10:16 और मेरी और भी
भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं; मुझे
उन का भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा।
यूहन्ना 10:17 पिता इसलिये मुझ से
प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूं, कि उसे फिर ले लूं।
यूहन्ना 10:18 कोई उसे मुझ से
छीनता नहीं, वरन मैं उसे आप ही देता हूं: मुझे उसके देने का
अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है: यह आज्ञा मेरे
पिता से मुझे मिली है।
एक साल में बाइबल:
· नीतिवचन 8-9
· 2 कुरिन्थियों 3