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मंगलवार, 10 जून 2014

अनुत्तरित


   मेरे सबसे बड़े संघर्षों में से एक है अनुत्तरित प्रार्थना; संभवतः आप समझ सकते हैं कि मैं क्या कह रही हूँ। हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमारे मित्र को नशे की आदत से छुड़ा ले, या किसी प्रीय जन को उद्धार दे, या किसी बीमार बच्चे को स्वस्थ कर दे, या फिर कोई बिगड़े हुए संबंध को सुधार दे। हम यह मानते हैं कि ये सब तथा इनके जैसी अन्य कई बातें परमेश्वर को पसन्द होंगी, उसकी इच्छा के अनुसार होंगी। वर्षों तक हम इन विषयों के लिए प्रार्थना करते रहते हैं, लेकिन ना तो परमेश्वर से कोई उत्तर आता है और ना ही प्रार्थना के अनुरूप कोई प्रभाव दिखाई देता है।

   हम परमेश्वर को स्मर्ण दिलाते हैं कि वह सर्वसामर्थी परमेश्वर है, कुछ भी कर सकता है और हमारी प्रार्थना एक भली प्रार्थना है; हम उससे विननती करते हैं, गिड़गिड़ाते हैं। हमारे अन्दर सन्देह भी आते हैं - शायद वह हमारी सुनने को तैयार नहीं है, या शायद वह इतना सामर्थी नहीं है जितना हम उसे समझ रहे थे। हम प्रार्थना में वह बात माँगना छोड़ देते हैं - कई दिन या महीनों तक। हम फिर अपने सन्देह के कारण दोषी भी अनुभव करते हैं। हम स्मरण करते हैं कि परमेश्वर चाहता है कि हम अपनी आवश्यकताएं उसके पास लेकर जाएं, और हम फिर से अपनी प्रार्थनाओं में उन बातों को माँगने लग जाते हैं।

   कभी कभी हमें लगता है कि हम प्रभु यीशु द्वारा लूका 18 में दिए गए दृष्टान्त की विधवा के समान हैं, जो न्यायी के आगे गुहार लगाती रही, उससे अपना न्याय माँगती रही, जब तक कि उसने उस विधवा की सुन नहीं ली। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि हमारा परमेश्वर उस कठोर न्यायी के समान नहीं है, वह दयालु है, सामर्थी है। हमें अपने परमेश्वर पर विश्वास है क्योंकि वह भला है, बुद्धिमान है, और सर्वप्रभुतासंपन्न है। हम समरण करते हैं कि हमारे प्रभु यीशु ने हमें सिखाया है कि हमें, "...नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए..." (लूका 18:1)।

   इसलिए हम परमेश्वर से माँगते हैं, प्रार्थना करते हैं और उसके उत्तर की प्रतीक्षा करते हैं। - ऐनी सेटास


विलंब इनकार नहीं है; इसलिए प्रार्थना करते रहिए।

इसलिये जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आने वाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के साम्हने खड़े होने के योग्य बनो। - लूका 21:36

बाइबल पाठ: लूका 18:1-8
Luke 18:1 फिर उसने इस के विषय में कि नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए उन से यह दृष्‍टान्‍त कहा। 
Luke 18:2 कि किसी नगर में एक न्यायी रहता था; जो न परमेश्वर से डरता था और न किसी मनुष्य की परवाह करता था। 
Luke 18:3 और उसी नगर में एक विधवा भी रहती थी: जो उसके पास आ आकर कहा करती थी, कि मेरा न्याय चुकाकर मुझे मुद्दई से बचा। 
Luke 18:4 उसने कितने समय तक तो न माना परन्तु अन्‍त में मन में विचारकर कहा, यद्यपि मैं न परमेश्वर से डरता, और न मनुष्यों की कुछ परवाह करता हूं। 
Luke 18:5 तौभी यह विधवा मुझे सताती रहती है, इसलिये मैं उसका न्याय चुकाऊंगा कहीं ऐसा न हो कि घड़ी घड़ी आकर अन्‍त को मेरा नाक में दम करे। 
Luke 18:6 प्रभु ने कहा, सुनो, कि यह अधर्मी न्यायी क्या कहता है? 
Luke 18:7 सो क्या परमेश्वर अपने चुने हुओं का न्याय न चुकाएगा, जो रात-दिन उस की दुहाई देते रहते; और क्या वह उन के विषय में देर करेगा? 
Luke 18:8 मैं तुम से कहता हूं; वह तुरन्त उन का न्याय चुकाएगा; तौभी मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 49-51