दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान में हुई आर्थिक प्रगति और विकास के प्रभाव का अध्ययन करने के बाद रिचर्ड ईस्टरलिन का निष्कर्ष था कि हमेशा ही आर्थिक समृद्धि से आनन्द और संतुष्टि नहीं मिलती। परन्तु हाल ही में अर्थशास्त्री बेट्से स्टीवनसन और जस्टिन वुल्फर्स ने १०० से भी अधिक देशों में सर्वेक्षण के बाद निष्कर्ष दिया कि जीवन से संतुष्टि उन देशों में सबसे अधिक थी जहां आर्थिक समृद्धि थी।
तो अब इन दोनो में से कौन सही है? आईए, परमेश्वर के वचन बाइबल में सभोपदेशक के लेखक की बात देखते हैं, क्योंकि उसे सत्य का पता होना चाहिए। वह लेखक बहुत धनी था (सभोपदेशक २:८) तथा उसके पास संसार की हर बात को जांचने-परखने के साधन थे और उसने जांचा-परखा भी! उसने अपने आप को शारीरिक आनन्द में लिप्त किया (२:१-३); बड़ी बड़ी योजनाएं कार्यान्वित करीं, बहुत भोग-विलास और मनोरंजन में समय बिताया (२:४-८) तथा कठिन परिश्रम भी किया (२:१०-११)। अपने धन का यथासंभव उपयोग करने और सब कुछ करने के बाद, उसका निष्कर्ष था: "तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्रम को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं" (सभोपदेशक २:११)।
स्थिर, सदा बना रहने वाला और सच्चा आनन्द एवं संतुष्टि भौतिक उपायों, बैंक में जमा मोटी पूँजी या सांसारिक वस्तुओं की भरमार से नहीं मिलती। संसार में हाल ही में हुई घटनाएं दिखाती हैं कि संसार की हर वस्तु अचानक ही व्यर्थ हो सकती हैं, उसका मूल्य अनायास ही समाप्त हो सकता है। यदि हमें स्थाई और सदा बनी रहने वाली अविनाशी संतुष्टि और आननद चाहिए तो वह अविनाशी स्त्रोत से ही मिलेगा, किसी नाशमान से नहीं; और वह स्त्रोत है हमारा सृष्टिकर्ता और उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह।
स्तुति गीत के लेखक फ्लौएड हौकिन्स ने अपने एक गीत में लिखा: "मैंने आनन्द का मार्ग पा लिया; मैंने प्रसन्नता प्राप्त कर ली; मुझे उदासी से निकलने की राह मिल गई;...जब मुझे यीशु, मेरा प्रभु मिल गया।"
केवल यीशु ही वह अविनाशी संतुष्टि और आनन्द दे सकता है, क्योंकि वह स्वयं अविनाशी है, और वह अपने लोगों को अपना आनन्द देता है: "मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए" (यूहन्ना १५:११)। - सी. पी. हिया
सच्चा आनन्द जानना है तो प्रभु यीशु को जान लीजिए।
बाइबल पाठ: सभोपदेशक २:१-११
Ecc 2:1 मैं ने अपने मन से कहा, चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जांचूंगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो। परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है।
Ecc 2:2 मैं ने हंसी के विषय में कहा, यह तो बावलापन है, और आनन्द के विषय में, उस से क्या प्राप्त होता है?
Ecc 2:3 मैं ने मन में सोचा कि किस प्रकार से मेरी बुद्धि बनी रहे और मैं अपने प्राण को दाखमधु पीने से क्योंकर बहलाऊं और क्योंकर मूर्खता को थामे रहूं, जब तक मालूम न करूं कि वह अच्छा काम कौन सा है जिसे मनुष्य जीवन भर करता रहे।
Ecc 2:4 मैं ने बड़े बड़े काम किए; मैं ने अपने लिये घर बनवा लिए और अपने लिये दाख की बारियां लगवाईं;
Ecc 2:5 मैं ने अपने लिये बारियां और बाग लगावा लिए, और उन में भांति भांति के फलदाई वृझ लगाए।
Ecc 2:6 मैं ने अपने लिये कुण्ड खुदवा लिए कि उन से वह वन सींचा जाए जिस में पौधे लगाए जाते थे।
Ecc 2:7 मैं ने दास और दासियां मोल लीं, और मेरे घर में दास भी उत्पन्न हुए, और जितने मुझ से पहिले यरूशलेम में थे उन से कहीं अधिक गाय-बैल और भेड़-बकरियों का मैं स्वामी था।
Ecc 2:8 मैं ने चान्दी और सोना और राजाओं और प्रान्तों के बहुमूल्य पदार्थों का भी संग्रह किया; मैं ने अपने लिये गवैयों और गाने वालियों को रखा, और बहुत सी कामिनियां भी, जिन से मनुष्य सुख पाते हैं, अपनी कर लीं।
Ecc 2:9 इस प्रकार मैं अपने से पहिले के सब यरूशलेमवासियों से अधिक महान और धनाढय हो गया, तौभी मेरी बुद्धि ठिकाने रही।
Ecc 2:10 और जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रुका, मैं ने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्रम के कारण आनन्दित हुआ, और मेरे सब परिश्रम से मुझे यही भाग मिला।
Ecc 2:11 तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को, और अपने सब परिश्रम को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं।
एक साल में बाइबल:
- गिनती ३१-३३
- मरकुस ९:१-२९