हम
में से अनेकों प्रसिद्धि से आसक्त हैं – या तो स्वयं प्रसिद्ध होने के लिए या फिर
प्रसिद्ध लोगों के जीवनों के ब्यौरे की प्रत्येक जानकारी, जैसे कि उन लोगों के अंतर्राष्ट्रीय
फिल्म या पुस्तक दौरे, उनके द्वारा रेडियो अथवा टेलिविज़न कार्यक्रमों में उपस्थिति
और कथन, सोशल मीडिया जैसे कि ट्विटर, फेसबुक आदि पर उनके लेख और उनके प्रशंसकों की
संख्या आदि की जानकारी रखना, आदि।
हाल
ही में अमेरिका में किए गए एक शोध में शोधकर्ताओं ने इंटरनेट के माध्यम से विशेष रीति
से बनाए गए कार्यक्रम द्वारा संसार के लोगों द्वारा इंटरनेट के माध्यम से प्रसिद्ध
लोगों की खोज को सूचीबद्ध किया। उनके इस शोध में इतिहास में सबसे अधिक प्रसिद्ध
हस्ती प्रभु यीशु मसीह थे।
परन्तु
फिर भी तथ्य यही है कि प्रभु यीशु मसीह ने कभी अपनी प्रसिद्धि नहीं चाही। जब वे
पृथ्वी पर थे, तब भी उन्होंने प्रसिद्धि नहीं चाही (मत्ती 9:30; यूहन्ना 6:15);
परन्तु फिर भी प्रसिद्धि उनके पीछे-पीछे आती थी, और उनके विषय जानकारी उनके इलाके
में तुरंत फैल गई (मरकुस 1:28; लूका 4:37)।
प्रभु
यीशु जहाँ भी जाते थे, भीड़ उनके पीछे हो लेती थी; जो आश्चर्यकर्म वे करते थे, उससे
लोग उनकी ओर आकर्षित होते थे। परन्तु जब उन लोगों ने उन्हें जबरन अपना राजा बनाना
चाहा, तो तब प्रभु यीशु चुपचाप उनके मध्य में से निकल गए (यूहन्ना 6:15)। अपने पृथ्वी
पर आने के उद्देश्य के विषय वे स्वर्गीय पिता से एक मन रहकर, सदा हर बात को पिता
ही की इच्छा और समय पर छोड़ देते थे (यूहन्ना 4:34; 8:29; 12:23)। और पिता की इसी
इच्छा के अन्तर्गत उन्होंने “मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन
किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की
मृत्यु भी सह ली” (फिलिप्पियों 2:8)।
प्रसिद्धि
पाना कभी भी प्रभु यीशु का उद्देश्य नहीं था; उनका तो सीधा सा उद्देश्य था:
परमेश्वर का पुत्र होने के नाते उन्होंने नम्रता और समर्पण के साथ अपने आप को परमेश्वर
पिता का आज्ञाकारी बनाए रखा और सँसार के सभी लोगों के उद्धार एवँ पापों की क्षमा
के लिए अपने आप को बलिदान कर दिया। वे सँसार के पापों के लिए मारे गए, गाड़े गए और
तीसरे दिन मृतकों में से जी भी उठे। प्रभु यीशु का उद्देश्य प्रसिद्धि नहीं,
पापियों का उद्धार तथा पापों की क्षमा प्रदान करना था। - सिंडी हैस कैस्पर
प्रभु यीशु मसीह प्रसिद्ध होने के लिए नहीं,
वरन सँसार के पापों के लिए बलिदान होने के लिए आए थे।
इसी कारण वह जगत में आते समय कहता है,
कि बलिदान और भेंट तू ने न चाही, पर मेरे लिये
एक देह तैयार किया। होम-बलियों और पाप-बलियों से तू प्रसन्न नहीं हुआ। तब मैं ने
कहा, देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी
इच्छा पूरी करूं। - इब्रानियों 10:5-7
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 2:1-11
Philippians 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्ति
और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और
दया है।
Philippians 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो
कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
Philippians 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के
लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
Philippians 2:4 हर एक अपनी ही हित की नहीं,
वरन दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।
Philippians 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव
था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।
Philippians 2:6 जिसने परमेश्वर के स्वरूप
में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।
Philippians 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य
कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
Philippians 2:8 और मनुष्य के रूप में
प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा,
कि मृत्यु, हां, क्रूस
की मृत्यु भी सह ली।
Philippians 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको
अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में
श्रेष्ठ है।
Philippians 2:10 कि जो स्वर्ग में और
पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर
घुटना टेकें।
Philippians 2:11 और परमेश्वर पिता की
महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
एक साल में बाइबल:
- यहेजकेल 24-26
- 1 पतरस 2