भ्रामक शिक्षाओं के
स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (8) - पवित्र आत्मा की
निन्दा करने का पाप (2)
हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि
बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता
से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक
शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और
ज्योतिर्मय स्वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि
भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु
साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं।
जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2
कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि
कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे,
जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले;
जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार
जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”,
इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः
तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई
को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है,
कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने,
जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने
के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है।
पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा
देने वाले लोगों के द्वारा, प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को
देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः
बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना
आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या
उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही
परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है,
और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं
जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से
बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे
बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन
उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है।
इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात है
“अन्य-भाषाओं” में बोलना, और उन लोगों के द्वारा “अन्य-भाषाओं” को अलौकिक भाषाएं बताना, और परमेश्वर के वचन के
दुरुपयोग के द्वारा इससे संबंधित कई और गलत शिक्षाओं को सिखाना। इसके बारे में भी
हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार
नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं,
वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई
अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन
नहीं है कि “अन्य-भाषाएं” प्रार्थना की
भाषाएं हैं। इस गलत शिक्षा के साथ जुड़ी हुई इन लोगों की एक और गलत शिक्षा है कि
“अन्य-भाषाएं” बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त
करने का प्रमाण है, जिसके भी झूठ होने और परमेश्वर के वचन के
दुरुपयोग पर आधारित होने को हमने पिछले लेख में देखा है। पिछले लेख में हमने यह भी
देखा था कि उन लोगों के सभी दावों के विपरीत, न तो प्रेरितों
2:3-11 का प्रभु के शिष्यों द्वारा अन्य-भाषाओं में बोलना
कोई “सुनने” का आश्चर्यकर्म था,
न ही अन्य भाषाएं प्रार्थना करने की गुप्त भाषाएँ हैं, और न ही ये किसी को भी यूं ही दे दी जाती हैं, जब तक
कि व्यक्ति की उस स्थान पर सेवकाई न हो, जहाँ की भाषा बोलने
की सामर्थ्य उसे प्रदान की गई है। एक और दावा जो ये पवित्र आत्मा और अन्य-भाषाएँ
बोलने से संबंधित गलत शिक्षाएं देने वाले करते हैं, है कि
व्यक्ति अन्य-भाषा बोलने के द्वारा सीधे परमेश्वर से बात करता है। इसके तथा कुछ
संबंधित और बहुत महत्वपूर्ण बातों के बारे में हम पिछले दो लेखों में देख चुके हैं
कि उनका यह दावा भी वचन की कसौटी पर बिलकुल गलत है, अस्वीकार्य
है।
इन गलत शिक्षा फैलाने वालों की एक और
प्रमुख शिक्षा, जिसे वे अपने बचाव के लिए प्रयोग करते हैं,
है “पवित्र आत्मा की निन्दा कभी क्षमा न होने
वाला पाप है।” यह समझने के लिए कि यह “निरादर”
या “निन्दा” वास्तव में है क्या, और यह क्यों केवल
परमेश्वर पवित्र आत्मा ही के विरुद्ध ही क्षमा नहीं हो सकता है, हमने पिछले लेख से परमेश्वर के वचन में से कुछ तथ्यों एवं शिक्षाओं को
देखना आरंभ किया है, और त्रिएक परमेश्वर के तीनों स्वरूपों, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के बारे में अपने इस विषय के संदर्भ से देखा है। आज
हम देखेंगे कि लूसिफर का पाप क्यों क्षमा नहीं हो सकता था; और
यह भी समझेंगे कि वचन के अनुसार निन्दा (blasphemy) शब्द का
वास्तव में क्या अर्थ और अभिप्राय होता है।
लूसिफर का पाप क्यों कभी क्षमा नहीं हो
सकता, और
हमारे लिए उसके क्या अभिप्राय हैं?
परमेश्वर की पवित्रता, वैभव, और महानता के विरुद्ध मनुष्यों द्वारा किए गए निरादर के पाप को यदि हमारे
लिए क्षमा योग्य बना दिया जाता, तो फिर परमेश्वर के उच्च तथा
निष्पक्ष न्याय की मांग होगी कि प्रधान स्वर्गदूत, लूसिफर
द्वारा परमेश्वर की पवित्रता, वैभव, और
महानता के विरुद्ध किए गए निरादर के पाप को भी क्षमा मिलनी चाहिए – और यह परमेश्वर
की पवित्रता, वैभव, महानता, और पूर्ण सार्वभौमिकता का उपहास हो जाएगा। लूसिफर का पाप न केवल अत्यंत
जघन्य था, वरन क्योंकि उसके पतन के समय, किसी ने भी किसी के पाप की कोई कीमत नहीं चुकाई थी, जैसे
कि मसीह यीशु ने हमारे लिए चुका दी है, इसलिए पाप के लिए कोई
प्रायश्चित का समाधान उपलब्ध भी नहीं था; इसका निवारण दंड के
द्वारा ही संभव था।
साथ ही, हम वचन से यह भी देखते हैं कि न तो लूसिफर
ने और न ही उसके दूतों ने कभी अपने पापों के लिए कोई पश्चाताप किया, उनके लिए सच्चे मन से क्षमा माँगी। वे तो आरंभ से ही परमेश्वर के कार्यों
में बाधा और बिगाड़ उत्पन्न करते आ रहे हैं, परमेश्वर के वचन
और शिक्षाओं को भ्रष्ट करके उनका दुरुपयोग ही करते चले आ रहे हैं। ऐसी परिस्थिति
में, मात्र क्षमा की प्रार्थना कर लेने की औपचारिकता को
स्वीकार किए जाने का अर्थ होता स्वर्गीय स्थानों में अनियंत्रित अव्यवस्था एवं
अराजकता को निमंत्रण देना। क्योंकि तब, कोई भी सृजा गया
प्राणी अपनी इच्छानुसार कुछ भी कर लेता और, बस क्षमा मांग कर
उसके परिणामों से बच निकालता – और यह कदापि स्वीकार
नहीं की जा सकने वाली स्थिति हो जाती।
इसलिए पृथ्वी पर भी पापों की क्षमा के
लिए सच्चे और वास्तविक पश्चाताप और समर्पण को ही आधार बनाया गया है, पश्चाताप के बाद ही
पाप-क्षमा है (मरकुस 1:15; प्रेरितों 2:38); औपचारिकता में पापों की क्षमा माँग लेना न पर्याप्त है और न स्वीकार्य।
इसलिए यह अनिवार्य था कि लूसिफर से उसके द्वारा किए गए परमेश्वर के निरादर के पाप
का हिसाब लिया जाए और उसे पाप का उचित एवं उपयुक्त दण्ड भोगने का उदाहरण बना कर
प्रस्तुत किया जाए। लूसिफर को उचित दण्ड दिया ही जाना था; ऐसा
दण्ड जो उसके पाप के घोर और जघन्य होने के अनुपात में कम से कम उतना ही घोर और
जघन्य तो हो। यदि परमेश्वर के निरादर का पाप एक के लिए क्षमा होने योग्य नहीं है,
तो फिर परमेश्वर के निष्पक्ष न्याय के अनुसार, यह औरों के लिए भी क्षमा नहीं किया जा सकता है। इसीलिए, पवित्र आत्मा के विरूद्ध निरादर या निन्दा के पाप को भी कभी क्षमा नहीं
किया जा सकता है।
बाइबल के अनुसार परमेश्वर पवित्र आत्मा
की निन्दा क्या है?
अब हम देखते हैं की शब्द ‘निंदा या निरादर’
का, उसके क्षमा न हो सकने वाले पाप के सन्दर्भ
में, परमेश्वर के वचन में अभिप्राय क्या है। हम मिकल्संस
एन्हांस्ड डिक्शनरी ऑफ़ द ग्रीक एंड हीब्र्यु टेस्टामेंट्स (Mickelson’s
Enhanced Dictionary of the Greek and Hebrew Testaments) से देखते
हैं कि यह शब्द “निन्दा”, यूनानी शब्द
“ब्लास्फेमियो” (स्ट्रौंग्स/Strongs
G987) से आया है, जिसका अर्थ है:
1. धिक्कारना, अपशब्द के साथ विरोध में
बोलना, हानि पहुंचाना।
2. कलंकित करना, किसी की प्रतिष्ठा को
हानि पहुंचाना, बदनाम करना।
3. (विशेषतः) किसी के प्रति निरादर पूर्वक बोलना।
इस शब्द की उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट
है कि, यह
निरादर का पाप एक ऐच्छिक, जानबूझकर योजनानुसार किया गया
कार्य है; जो तथ्यों पर आधारित हो सकता है अथवा नहीं भी हो
सकता है, वरन जो तथ्यों का दुरुपयोग करके उन तथ्यों के
यथार्थ से बिलकुल भिन्न अभिप्राय देने के द्वारा किया गया भी हो सकता है। और साथ
ही यह केवल व्यक्ति को नीचा दिखाने और बदनाम करने के उद्देश्य से किया गया होगा –
जो करना चाहे सही हो या गलत। सीधे शब्दों में में अर्थ
यह है कि, किसी
का निरादर या निन्दा करना, उस व्यक्ति को दुष्ट कहना और इस
बात का प्रचार करना है, यह भली-भांति जानते हुए भी कि वह
व्यक्ति बुरा नहीं है; और उसके बुरा न होने के प्रमाण होते
और जानते हुए भी, केवल उसे बदनाम करने के उद्देश्य से,
जानबूझकर ऐसा करना।
इस विषय के संदर्भ में, यह बहुत ध्यान देने और
भली-भांति समझने की बात है कि पवित्र आत्मा के विरुद्ध निरादर या निन्दा का पाप,
पवित्र आत्मा या उसकी सामर्थ्य अथवा कार्यों के प्रति असमंजस में होना या अनिश्चित होना, या उस पर संदेह करना,
या उसके विषय कोई स्पष्टीकरण की अपेक्षा करना, या कुछ और अधिक खुलासा अथवा विवरण माँगना, आदि नहीं है। यह इस बात से भली-भांति
प्रकट होता है कि यद्यपि प्रभु के कार्य पवित्र आत्मा के अभिषेक और सामर्थ्य के
साथ किए गए थे (प्रेरितों 10:38), किन्तु फिर भी अनेकों को, जिन
में नए नियम के कुछ बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति भी सम्मिलित हैं, प्रभु पर, तथा पवित्र आत्मा की अगुवाई और सामर्थ्य
द्वारा की गई उसकी सेवकाई के प्रति न केवल संदेह था, यहाँ तक
कि अविश्वास भी था:
- यूहन्ना
बपतिस्मा देने वाले को संदेह हुआ की क्या प्रभु वह प्रतिज्ञा किया हुआ मसीहा
था भी की नहीं (मत्ती 11:2-3);
- प्रभु
के शिष्यों को ही उस पर संदेह था की वह वास्तव में है कौन (मरकुस 4:38-41);
- प्रभु
यीशु के अपने भाई, जिनमें याकूब
और यहूदा भी थे जिनकी पत्रियां नए नियम में विद्यमान हैं, आरंभ में वे भी उस पर विश्वास नहीं रखते थे (यूहन्ना 7:5);
- दुष्टात्मा
के वश में लड़के के पिता को संदेह था कि वह उसके पुत्र को ठीक कर सकता है कि
नहीं (मरकुस 9:24);
- मृतक
लाज़रस की बहिन मारथा को संदेह था, कि प्रभु लाज़रस को मृतकों में से जिलाने पाएगा (यूहन्ना 11:21-28);
- थोमा
को प्रभु के पुनरुत्थान पर संदेह था (यूहन्ना 20:25) इत्यादि।
किन्तु इन में से किसी को भी प्रभु ने
उनके प्रश्नों, संदेहों,
और अविश्वास के कारण कभी भी ‘क्षमा न हो पाने
वाले पाप’ का दोषी न तो कहा और न इसके लिए उन्हें दण्डित
किया।
इसके अतिरिक्त:
- वचन
में यह भी उदाहरण है कि पवित्र आत्मा का प्रतिरोध करने और उसके अनाज्ञाकारी
होने की निंदा अवश्य की गई है (प्रेरितों 7:51-53), परन्तु इस भी “कभी
क्षमा न होने वाला पाप” नहीं कहा गया है।
- यहाँ
तक कि प्रभु के विरोध में भद्दी या अपमानजनक भाषा के उपयोग को (पतरस द्वारा
प्रभु का तीन बार असभ्य भाषा के प्रयोग के साथ किया गया इनकार – मत्ती 26:69-74), भी बाइबल में अनादर या
क्षमा न होने वाला पाप नहीं कहा गया है।
- हमें
यह स्मरण करना और ध्यान करना आवश्यक है कि केवल फरीसी, सदूकी, और
शास्त्री ही नहीं थे जिन्होंने प्रभु यीशु में दुष्टात्मा होने का दोषारोपण
किया था, आम लोगों में से भी कई लोगों ने यही कहा था
(मत्ती 10:25; मरकुस 3:21; यूहन्ना
7:20; 8:48, 52; 10:20); परन्तु इन में से किसी भी अवसर
पर प्रभु यीशु ने न तो उन्हें क्षमा न होने वाले पाप का दोषी कहा और न ही
उन्हें इसके विषय सचेत किया।
उपरोक्त वचन के सभी उदाहरणों के आधार
पर, यह बिलकुल स्पष्ट है
कि वचन के अनुसार, जन-साधारण द्वारा प्रभु या पवित्र आत्मा
पर संदेह करना, किसी असमंजस के लिए स्पष्टीकरण की लालसा रखना
या मांगना, अविश्वास रखना, उनके विषय
अनुचित या अभद्र भाषा अथवा व्यवहार का प्रयोग करना, आदि
“कभी न क्षमा होने वाला पाप” नहीं हैं,
क्योंकि उन लोगों ने ये सभी बातें की हैं, और
प्रभु ने कभी उसे उनके द्वारा “कभी न क्षमा होने वाला पाप”
किया जाना नहीं कहा है।
अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे निरादर या
निन्दा को “कभी
न क्षमा होने वाला पाप,” प्रभु ने केवल वचन के ज्ञानियों और
शिक्षकों, फरीसियों से ही क्यों कहा है (मरकुस 3:28-30 और लूका 12:10)?
इसे हम अगले लेख में देखेंगे।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना
और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं
में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न
ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और
लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत
शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को
जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के
पालन को अपना लें।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- गिनती
26-27
- मरकुस 8:1-21