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शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2021

मसीही विश्वास एवं शिष्यता - 1 - कुछ मूल तथ्य


मसीही विश्वास से संबंधित कुछ मूल तथ्य 

 

  पिछले लेखों में हम दो महत्वपूर्ण विषयों को देख चुके हैं कि (i) बाइबल को क्यों परमेश्वर का वचन कहा जाता है, तथा (ii) बाइबल के अनुसार पाप और उद्धार तथा इनमें निहित अभिप्राय क्या हैं, और इनसे जुड़ी हुई महत्वपूर्ण बातें क्या हैं। आज से हम इससे आगे का विषयमसीही विश्वास एवं शिष्यताको देखना आरंभ करेंगे, जो इन पिछले विषयों पर आधारित होगा तथा उनसे और आगे की बातों को प्रकट करेगा। इस शृंखला में विचार के लिए हम आज बाइबल के अनुसार उद्धार और नया जन्म पाने के लिए मसीही विश्वास से संबंधित कुछ मूल बातों को देखेंगे। 

  जैसा हम पहले के लेखों में देख चुके हैं, न तो परमेश्वर का कोई धर्म है, न परमेश्वर ने कभी कोई धर्म बनाया, और न ही प्रभु यीशु मसीह ने कभी अपने शिष्यों से उनके नाम पर कोई धर्म प्रतिपादित एवं स्थापित करने, किसी धर्म का प्रचार करने, या लोगों का धर्म परिवर्तन करवाने की कभी कोई शिक्षा अथवा निर्देश दिया। प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को संसार में इसी निर्देश के साथ भेजा कि वे सारे संसार में जाकर लोगों को इस उद्धार के सुसमाचार के बारे में बताएं, और उन्हें प्रभु यीशु मसीह के शिष्य बनाएंयीशु ने उन के पास आकर कहा, कि स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है। इसलिये तुम जा कर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रआत्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं” (मत्ती 28:18-20)। साथ ही हम यह भी देख चुके हैं कि परमेश्वर ने संसार के सभी मनुष्यों के लिए जो पापों की क्षमा, उद्धार, और नया जन्म प्राप्त करने का प्रावधान किया है, वह न तो किसी धर्म के अंतर्गत किया, न उसे किसी धर्म विशेष से जोड़ा, और न ही उस समाधान में किसी धार्मिक रीति-रिवाज़ अथवा अनुष्ठान के निर्वाह की कोई भी भूमिका अथवा महत्व है, और न ही यह किन्हीं कार्यों अथवा कर्मों के द्वारा संपन्न अथवा लागू होता है। परमेश्वर द्वारा उपलब्ध करवाया गया यह निवारण पूर्णतः परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह पर स्वेच्छा तथा पूरे मन से किए गए विश्वास ही पर आधारित है, और बिना किसी भी अन्य मनुष्य के इसमें सम्मिलित हुए अथवा मध्यस्थ हुए, केवल अपने पापों से पश्चाताप करने वाले मनुष्य और प्रभु यीशु मसीह के मध्य संबंध से है। यह सभी के लिए समान रीति से मुफ़्त में उपलब्ध है, वे चाहे किसी भी देश, धर्म, जाति, सामाजिक स्थान और स्तर, समृद्धि, शिक्षा, रंग, लिंग, आदि के क्यों न हो। साथ ही, परमेश्वर का यह प्रावधान वंशागत नहीं है; प्रत्येक मनुष्य को समझ-बूझकर अपने जीवन में इसे कार्यान्वित करने के लिए आप ही इसके विषय निर्णय लेना होता है, तब ही यह उसके जीवन में लागू हो सकता है। इस प्रावधान को उपलब्ध परमेश्वर ने करवाया है, स्वीकार करना अथवा अस्वीकार करना, यह प्रत्येक मनुष्य का अपना निर्णय है।

इसीलिए, परमेश्वर के वचन बाइबल के अनुसार, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करना, और उसके साथ संबंध स्थापित कर के उस संबंध का निर्वाह करना, मसीही विश्वास कहलाता है, कोई धर्म नहीं। इस मसीही विश्वास को बिगाड़ कर इसेईसाई धर्मका नाम और रूप देना न तो परमेश्वर की ओर से है, न परमेश्वर ने करवाया, और न परमेश्वर को स्वीकार्य है। बाइबल के अनुसार व्यक्ति चाहे ईसाई धर्म को माने, या किसी अन्य धर्म को, किन्तु जब तक वह नया जन्म लेकर मसीही विश्वासी नहीं बन जाता है, प्रभु यीशु के साथ एक व्यक्तिगत संबंध स्थापित करके प्रभु यीशु का शिष्य नहीं हो जाता है, तब तक वह अपने पापों में ही रहता है; और जो बिना पापों की क्षमा प्राप्त किए मरेगा, उसे फिर उन पापों के दण्ड को भोगना होगा, परमेश्वर से दूर नरक में जाना होगा, चाहे वह ईसाई धर्म का मानने वाला और ईसाई धर्म के रीति-रिवाजों, त्यौहारों, अनुष्ठानों का कितनी भी निष्ठा के साथ पालन क्यों न करता रहा हो।  

हम कल बाइबल में प्रथम चर्च या कलीसिया, अर्थात आरंभिक मसीही विश्वासियों के समूह या मंडली की गतिविधियों के लेख - नए नियम में प्रेरितों के काम नामक पुस्तक में से मसीही विश्वास को कुछ और विस्तार से देखेंगे और समझेंगे। आप यदि अभी भी अपने धर्म, धार्मिकता, भले कार्यों और नेक कर्मों, आदि के द्वारा परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह से उद्धार और पापों की क्षमा के भ्रम में पड़े हुए हैं, तो मेरा आप से विनम्र निवेदन है कि परमेश्वर के वचन से इन बातों से संबंधित तथ्यों का अध्ययन कीजिए, और सही निर्णय कर लीजिए। आप पाप और उद्धार से संबंधित पहले के लेखों का अवलोकन करने के द्वारा भी इस विषय का अध्ययन कर सकते हैं। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपनी ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

बाइबल पाठ: इफिसियों 2:1-9 

इफिसियों 2:1 और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे।

इफिसियों 2:2 जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है।

इफिसियों 2:3 इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे।

इफिसियों 2:4 परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उसने हम से प्रेम किया।

इफिसियों 2:5 जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।)

इफिसियों 2:6 और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया।

इफिसियों 2:7 कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए।

इफिसियों 2:8 क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है।

इफिसियों 2:9 और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

·        यशायाह 11-13 

·        इफिसियों