पाप का समाधान - उद्धार - 31 - कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (4)
पिछले लेख में हमने देखा था
कि उद्धार कभी खोया या गँवाया नहीं जा सकता है, वह
अनन्तकालीन ही है; किन्तु उद्धार पाया हुआ व्यक्ति यदि पाप
में बना रहे, तो उसे न केवल पृथ्वी पर ताड़ना सहनी पड़ती है,
वरन उसके स्वर्गीय प्रतिफलों पर भी उसके पापों का प्रतिकूल प्रभाव
पड़ता है; और कुछ ऐसे लोग भी होंगे जो अपनी इस लापरवाही के
व्यवहार के कारण स्वर्ग में छूछे हाथ प्रवेश करेंगे - वे अपने उद्धार को तो नहीं
गँवाएंगे, किन्तु अपनी आशीषों और प्रतिफलों को गँवा देंगे,
और फिर अपना स्वर्गीय अनन्तकाल खाली हाथ ही बिताएंगे। पाप और उद्धार
से संबंधित सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्नों की शृंखला में आज हम इसी विषय से
संबंधित एक और प्रश्न पर विचार करते हैं।
प्रश्न: क्या उद्धार पाया हुआ
व्यक्ति पाप कर सकता है? यदि वह करे तो उसका क्या परिणाम और समाधान है?
उत्तर: जैसा हमने उद्धार या नया जन्म पाने के विषय में देखा
था, उद्धार या नया जन्म पाना
एक आरंभ है। उद्धार पाते ही व्यक्ति सिद्ध नहीं हो जाता है, वरन
प्रभु यीशु मसीह का उसके वचन की आज्ञाकारिता में अनुसरण करते जाने के द्वारा वह
मसीही विश्वास और प्रभु की शिष्यता के जीवन में परिपक्व होता चला जाता है, प्रभु यीशु की समानता में अधिकाधिक ढलता चला जाता है। परमेश्वर का वचन
हमें एक अद्भुत, अनपेक्षित, किन्तु
बहुत सांत्वना देने वाले तथ्य से भी अवगत करवाता है - प्रभु यीशु के साथ रहने और
चलने वाले शिष्य भी सिद्ध नहीं थे; उनसे भी पाप हो जाता था;
उन्हें भी अपने पापों के लिए प्रभु से क्षमा और बहाली माँगनी पड़ती
थी! बाइबल के कुछ पदों को देखिए:
- प्रेरित
यूहन्ना ने लिखा: “यदि हम
कहें, कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं: और हम में सत्य नहीं”
(1 यूहन्ना 1:8); “यदि कहें कि हम
ने पाप नहीं किया, तो उसे झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं है” (1 यूहन्ना
1:10)। इन पदों में यूहन्ना द्वारा प्रयुक्त “हम” पर ध्यान करें - प्रेरित अपने आप को भी उन
लोगों के साथ सम्मिलित कर लेता है, जिनके लिए वह यह
पत्री लिख रहा है। साथ ही वह यह स्पष्ट कर देता है कि यदि कोई यह दावा करता
है कि उसने पाप नहीं किया है, तो न केवल वह झूठा है,
वरन परमेश्वर को भी झूठा ठहरा देता है। लेकिन साथ ही यूहन्ना
समाधान भी लिखता है: “...और उसके पुत्र यीशु का लहू
हमें सब पापों से शुद्ध करता है” (1 यूहन्ना 1:7);
“यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह
हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध
करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9)।
- प्रेरित
पौलुस ने लिखा, “क्योंकि
मैं जानता हूं, कि मुझ में अर्थात मेरे शरीर में कोई
अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है,
परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते। क्योंकि जिस अच्छे काम की
मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता वही किया करता हूं। परन्तु यदि
मैं वही करता हूं, जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करने वाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो
मुझ में बसा हुआ है” (रोमियों 7:18-20)। अपने शरीर के पाप करने की इस प्रवृत्ति से दुखी और कुंठित होकर पौलुस
प्रश्न उठाता है, “मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे
इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?” (रोमियों 7:24);
और फिर तुरंत ही पवित्र आत्मा की अगुवाई में स्वयं ही उत्तर भी
दे देता है, “सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं: क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा
के अनुसार चलते हैं। क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में
मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर
दिया” (रोमियों 8:1-2)।
तो फिर उद्धार पाने का क्या लाभ? उद्धार पाए हुए और न पाए
हुए व्यक्ति में क्या अंतर? बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण अंतर है
- उद्धार पाया हुआ व्यक्ति हर परिस्थिति में सुरक्षित है; इस
पृथ्वी पर भी, और स्वर्ग में भी। कुछ पदों को देखिए:
- नीतिवचन
24:16 क्योंकि
धर्मी चाहे सात बार गिरे तौभी उठ खड़ा होता है; परन्तु
दुष्ट लोग विपत्ति में गिर कर पड़े ही रहते हैं।
- अय्यूब
5:19 वह
[परमेश्वर] तुझे छ: विपत्तियों से छुड़ाएगा; वरन सात से भी तेरी कुछ हानि न होने पाएगी।
- भजन
संहिता 37:24 चाहे
वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका
हाथ थामे रहता है।
- भजन
संहिता 34:19 धर्मी
पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा
उसको उन सब से मुक्त करता है।
- नीतिवचन
14:32 दुष्ट
मनुष्य बुराई करता हुआ नाश हो जाता है, परन्तु धर्मी
को मृत्यु के समय भी शरण मिलती है।
एक बार फिर ध्यान करें,
यह उद्धार पाए हुए व्यक्ति के लिए पाप करते रहने की छूट नहीं है;
जैसा कि हम इससे पहले वाले प्रश्न के उत्तर में देख चुके हैं। वरन
इसे ऐसे समझिए, जब एक शिशु खड़ा होना और चलना आरंभ करता है,
तो बहुत बार लड़खड़ाता है, अस्थिर कदमों से चलता
है, गिरता है, कभी-कभी चोट भी खाता है,
किन्तु माता-पिता हर बार उसकी सहायता करते हैं, उसे प्रोत्साहित करते हैं, गिर जाने पर उसे उठा कर
खड़ा भी करते हैं और गोदी में लेकर दुलारते और पुचकारते भी हैं। इसी प्रकार परमेश्वर
पिता भी अपने आत्मिक बच्चों की सहायता करता है, उन्हें
उभारता है, मार्गदर्शन करता है। किन्तु जैसे जब बच्चे उद्दंड
होते हैं, बारंबार जान-बूझकर अनाज्ञाकारिता करते हैं,
बुराई में पड़ते ही रहते हैं, तो फिर केवल
चेतावनी देने भर से ही काम नहीं चलता है, और माता-पिता को उस
उद्दंड बच्चे की ताड़ना भी करनी पड़ती है; उसी प्रकार परमेश्वर
भी उद्दंडता करने वाली अपनी सन्तान की उपयुक्त ताड़ना भी करता है (इब्रानियों 12:5-11)।
जब हम मसीही विश्वासियों के
प्रति पिता परमेश्वर के इस प्रेम और देखभाल, उन्हें सुरक्षित
रखने, उभारने, सिखाने, और परिपक्व करने के प्रावधानों को देखते हैं, तो फिर
आश्चर्य होता है कि क्यों लोग फिर भी परमेश्वर के इस अद्भुत प्रयोजन को स्वीकार
नहीं करते हैं, और क्यों सच्चे मन से प्रभु यीशु को समर्पित
होकर उसकी शरण में नहीं आ जाते हैं, स्वेच्छा से उसके शिष्य
नहीं बन जाते हैं? परमेश्वर कोई कठोर दण्ड-अधिकारी नहीं है
जो हमें दण्ड या ताड़ना देने के अवसर ढूँढता रहता है; वरन वह
तो हमें अपने प्रेम, अनुग्रह, और कृपा
का भागी बनाने के अवसरों की तलाश में रहता है। तो फिर क्यों उससे दूरी रखनी?
क्यों उसके इस प्रेम भरे आह्वान को ठुकराना? प्रभु
के आपके प्रति प्रमाणित किए गए प्रेम, कृपा, और अनुग्रह, तथा उसके द्वारा आपको प्रदान किए जा रहे
पाप-क्षमा प्राप्त करने के अवसर के मूल्य को समझिए, और अभी
इस अवसर का लाभ उठा लीजिए। आपके द्वारा स्वेच्छा से, सच्चे
और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे
पश्चाताप के साथ आपके द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे
प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार
और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं
मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड
को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी
कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना
शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें” आपका
सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को
आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु
का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए।
बाइबल पाठ: भजन 25:7-15
भजन संहिता 25:7 हे यहोवा अपनी भलाई
के कारण मेरी जवानी के पापों और मेरे अपराधों को स्मरण न कर; अपनी करुणा ही के अनुसार तू मुझे स्मरण कर।
भजन संहिता 25:8 यहोवा भला और सीधा है;
इसलिये वह पापियों को अपना मार्ग दिखलाएगा।
भजन संहिता 25:9 वह नम्र लोगों को
न्याय की शिक्षा देगा, हां वह नम्र लोगों को अपना मार्ग
दिखलाएगा।
भजन संहिता 25:10 जो यहोवा की वाचा और
चितौनियों को मानते हैं, उनके लिये उसके सब मार्ग करुणा और
सच्चाई हैं।
भजन संहिता 25:11 हे यहोवा अपने नाम
के निमित्त मेरे अधर्म को जो बहुत हैं क्षमा कर।
भजन संहिता 25:12 वह कौन है जो यहोवा
का भय मानता है? यहोवा उसको उसी मार्ग पर जिस से वह प्रसन्न
होता है चलाएगा।
भजन संहिता 25:13 वह कुशल से टिका
रहेगा, और उसका वंश पृथ्वी पर अधिकारी होगा।
भजन संहिता 25:14 यहोवा के भेद को वही
जानते हैं जो उस से डरते हैं, और वह अपनी वाचा उन पर प्रगट
करेगा।
भजन संहिता 25:15 मेरी आंखें सदैव यहोवा
पर टकटकी लगाए रहती हैं, क्योंकि वही मेरे पांवों को जाल में
से छुड़ाएगा।
एक साल में बाइबल:
· यशायाह
7-8
· इफिसियों 2