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सोमवार, 22 अगस्त 2011

धीरे होईये, गति पाईये

अंत्रिक्ष यात्री माइकल कोलिन्स ने अंत्रिक्ष में उड़ रहे दो अंत्रिक्ष यानो के आपस में जोड़े जाने की विधि को बताया। उन्होंने समझाया कि जब दो वायुयान हवा में पृथ्वी के ऊपर, एक से दूसरे में ईंधन भरने के लिए आपस में जुड़ते हैएं तो जुड़ने के लिए ईंधन लेने वाला पीछे आ रहा वायुयान आगे चल रहे ईंधन देने वाले यान के निकट आने के लिए अपनी गति धीरे धीरे बढ़ाता है जब तक कि वह आगे वाले यान से लटक रहे ईंधन पहुँचाने वाले पाइप के निकट नहीं आ जाता और उस से जुड़ नहीं जाता। लेकिन अंत्रिक्ष में स्थिति बिलकुल विपरीत होती है। यदि पीछे चल रहा अंत्रिक्ष यान अपनी गति बढ़ाता है तो वह और अधिक ऊंची अंत्रिक्ष कक्षा में पहुँच जाता है और दोनो यानो के बीच की दूरी और बढ़ जाती है। इसलिए पीछे वाले अंत्रिक्ष यान के नियंत्रक को अपनी स्वाभाविक प्रतिक्रिया को बरबस रोकना होता है और अपने यान की गति और धीमी करनी होती है तभी वह आगे चल अंत्रिक्ष यान की अंत्रिक्ष कक्षा में आकर उसके समीप आ पाता है और उससे जुड़ने पाता है। अर्थात अंत्रिक्ष यान के नियंत्रक को, आगे बढ़ने के लिए धीमे होना पड़ता है।

कुछ ऐसा ही आत्मिक पिछड़ेपन को दूर करने पर भी लागु होता है। ऐसे में स्वाभाविक प्रतिक्रिया और लोगों की सलाह होती है कि और अधिक मेहनत करो, अपनी आत्मिक कार्यशीलता की गति को और बढ़ाओ, दूसरों के समान होने के प्रयास में लगे रहो; प्रयासों में ढीले पड़े तो जो कुछ हासिल किया है वह भी जाता रहेगा। लेकिन परमेश्वर के वचन बाइबल की शिक्षा कुछ भिन्न ही है, जो सिखाती है कि प्रभु के लिए प्रभावी होने के लिए अपनी कार्य गतिशीलता को धीमा करो, एवं शांत होकर प्रभु पर निर्भर होना, उसकी संगति में रहना सीखो; तभी आत्मिक जीवन में उन्नति पाओगे।

प्रभु के जो जन अपनी व्यसतता की गति को बढ़ाते रहते हैं वे अंत्रिक्ष यानों की तरह प्रभु से भी अपनी दूरी बढ़ाते रहते हैं क्योंकि उनके लिए उनका कार्य प्रभु के साथ और संगति से अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। फिर वे अपनी समझ-बूझ द्वारा निर्णय लेकर प्रभु के नाम से तो बहुत कुछ करने लगते हैं किंतु प्रभु की इच्छानुसार कुछ नहीं करते क्योंकि प्रभु की इच्छा जानने का समय ही उनके पास नहीं होता। इसीलिए कुछ समय पश्चात उनका कार्य थकाने वाला और बोझिल लगने लगता है और उस में कोई आत्मिक आशीष नहीं होती। यह अनिवार्य है कि ऐसे समयों में हमें शांत होकर प्रार्थना और प्रभु के वचन के अध्ययन में समय बिताना चाहिए और प्रभु के निर्देषों की प्रतीक्षा करनी चाहिए और फिर उन निर्देषों के अनुसार अपनी प्राथमिकताएं पुनः निर्धारित करनी चाहिएं।

जब हम आत्मिक रूप से पिछड़ जाते हैं तो आगे बढ़ने का एकमात्र कारगर उपाय है धीरे होकर प्रभु के साथ चलना; तब ही हम आत्मिक जीवन में आगे बढ़ पाएंगे और प्रभु के लिए प्रभावी और कार्यकारी हो पाएंगे। - मार्ट डी हॉन


यदि हम अलग होकर प्रभु की संगति में विश्राम करना नहीं सीखेंगे तो बिलकुल अलग-थलग हो जाएंगे।

परन्तु जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएंगे, वे उकाबों की नाई उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे और श्रमित न होंगे, चलेंगे और थकित न होंगे। - यशायाह ४०:३१


बाइबल पाठ: यशायाह ४०:२५-३१

Isa 40:25 सो तुम मुझे किस के समान बताओगे कि मैं उसके तुल्य ठहरूं? उस पवित्र का यही वचन है।
Isa 40:26 अपनी आंखें ऊपर उठाकर देखो, किस ने इनको सिरजा? वह इन गणों को गिन गिनकर निकालता, उन सब को नाम ले लेकर बुलाता है? वह ऐसा सामर्थी और अत्यन्त बली है कि उन में के कोई बिना आए नहीं रहता।
Isa 40:27 हे याकूब, तू क्यों कहता है, हे इस्राएल तू क्यों बोलता है, मेरा मार्ग यहोवा से छिपा हुआ है, मेरा परमेश्वर मेरे न्याय की कुछ चिन्ता नहीं करता?
Isa 40:28 क्या तुम नहीं जानते? क्या तुम ने नहीं सुना? यहोवा जो सनातन परमेश्वर और पृथ्वी भर का सिरजनहार है, वह न थकता, न श्रमित होता है, उसकी बुद्धि अगम है।
Isa 40:29 वह थके हुए को बल देता है और शक्तिहीन को बहुत सामर्थ देता है।
Isa 40:30 तरूण तो थकते और श्रमित हो जाते हैं, और जवान ठोकर खाकर गिरते हैं;
Isa 40:31 परन्तु जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएंगे, वे उकाबों की नाई उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे और श्रमित न होंगे, चलेंगे और थकित न होंगे।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ११०-११२
  • १ कुरिन्थियों ५