परमेश्वर के वचन बाइबल में नीतिवचन 6:16-19 में उन सात बातों का उल्लेख है जिनसे परमेश्वर को घृणा है, और इन बातों में से एक है भाईयों के बीच में झगड़ा उत्पन्न करना। इसी बात के कारण वह एकता जो प्रभु यीशु मसीह मसीही विश्वासी भाईयों में देखना चाहता है (यूहन्ना 17:21-22) वह बिगड़ जाती है।
जो भेदभाव या झगड़े उत्पन्न करते हैं, कई बार उनका इरादा ऐसा करने का नहीं होता है, वरन वे या तो अपनी व्यक्तिगत या जिस गुट के वे हैं उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के प्रयासों में ऐसा कर बैठते हैं (याकूब 4:1-10)। इन झगड़ों और मतभेदों के कारणों को समझने के लिए बाइबल में दी गई कुछ घटनाओं पर विचार कीजिए: क्यों लूत और अब्राहम के चरवाहों में झगड़े हुए (उत्पत्ति 13:1-18); या फिर प्रभु यीशु के चेलों में क्यों विवाद हुआ (लूका 9:46); या फिर कुरिन्थुस की मसीही मण्डली में गुटबाज़ी और मतभेद किस कारण आने पाए (1 कुरिन्थियों 3:1-7)?
एकता को प्रोत्साहन देने का सबसे कारगर तरीका क्या है? यह आरंभ होता है मन परिवर्तन से; जब हम मसीह यीशु के स्वभाव को अपना लेते हैं तो हमारे अन्दर नम्रता और दूसरों की सेवकाई की भावना भी आ जाती है और केवल मसीह यीशु में होकर ही हम वह सामर्थ भी पा सकते जिसके द्वारा हम केवल अपनी ही नहीं वरन औरों की आवश्यकताओं की भी चिन्ता कर सकें (फिलिप्पियों 2:1-5)। जब हम ऐसा करने लगते हैं तो शीघ्र ही दूसरों की आशाएं और आवश्यकताएं हमारे लिए हमारी अपनी आशाओं और आवश्यकताओं से अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं।
जब हम परस्पर प्रेम के बन्धनों में बन्धने लगते हैं तो हमारे आपसी मतभेद और झगड़े आनन्द और एकता में बदल जाते हैं। - डेनिस फिशर
हम अकेले उतना कभी नहीं कर पाते जितना दूसरों के साथ मिलकर कर लेते हैं।
हे भाइयो, मैं तुम से यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है उसके नाम के द्वारा बिनती करता हूं, कि तुम सब एक ही बात कहो; और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत हो कर मिले रहो। - 1 कुरिन्थियों 1:10
बाइबल पाठ: नीतिवचन 6:16-19; फिलिप्पियों 2:1-11
Proverbs 6:16 छ: वस्तुओं से यहोवा बैर रखता है, वरन सात हैं जिन से उसको घृणा है
Proverbs 6:17 अर्थात घमण्ड से चढ़ी हुई आंखें, झूठ बोलने वाली जीभ, और निर्दोष का लोहू बहाने वाले हाथ,
Proverbs 6:18 अनर्थ कल्पना गढ़ने वाला मन, बुराई करने को वेग दौड़ने वाले पांव,
Proverbs 6:19 झूठ बोलने वाला साक्षी और भाइयों के बीच में झगड़ा उत्पन्न करने वाला मनुष्य।
Philippians 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
Philippians 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
Philippians 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
Philippians 2:4 हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।
Philippians 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।
Philippians 2:6 जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।
Philippians 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
Philippians 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
Philippians 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।
Philippians 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
Philippians 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
एक साल में बाइबल:
- यहोशु 13-15
- लूका 1:57-80