मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की कार्य-विधि (यूहन्ना 16:12-13) - 1.
हम देखते आ रहे हैं कि मसीही विश्वासी की मसीही सेवकाई परमेश्वर पवित्र आत्मा की सहायता और मार्गदर्शन से ही संभव है। हमने यूहन्ना 16:8-11 से इस सेवकाई के विषय में देखा है, कि मसीही सेवक में परमेश्वर पवित्र आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण, उस मसीही के जीवन, व्यवहार, और कार्य के द्वारा संसार के लोगों को ‘निरुत्तर’ या कायल किया जाना है। मसीही विश्वासी, पवित्र आत्मा की सहायता और मार्गदर्शन द्वारा, संसार के लोगों पर पाप, धार्मिकता, और न्याय के बारे में उन लोगों के विचार, व्यवहार, और धारणाओं की तुलना में मसीही शिक्षाओं और जीवन को रखता है, अपने जीवन से उन्हें प्रदर्शित करता है। संसार और मसीही विश्वास के मध्य का यह तुलनात्मक प्रकटीकरण, स्वतः ही संसार के लोगों को कायल करने के लिए पर्याप्त है। बाइबल के अनुसार यही अपने आप में मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण है। मसीही विश्वासियों के परिवर्तित जीवन, उनका खरा व्यवहार, और परमेश्वर के भय में होकर किए गए उनके कार्य, संसार के लोगों में उनके प्रति एक ऐसे ‘भय’ या आदर का भाव उत्पन्न कर देते हैं (प्रेरितों 2:43; 5:11; 9:31; 19:17), जो अपने आप में उनके संसार के लोगों से पृथक तथा उनमें एक अलौकिक सामर्थ्य के विद्यमान होने का प्रमाण होता है।
आज बहुत से लोग, मत, समुदाय, और डिनॉमिनेशंस पवित्र आत्मा के नाम पर बाइबल से बाहर की बातों, व्यवहार, और शिक्षाओं के आधार पर लोगों को पवित्र आत्मा की उपस्थिति दिखाने और प्रमाणित करने की शिक्षाएं देने में लगे हुए हैं। किन्तु प्रभु द्वारा कही गई इन बातों पर ध्यान देना, उन्हें बताना और सिखाना उनके ‘प्रमाणों’ का भाग नहीं हैं। न ही संसार के लोग उनके जीवन तथा व्यवहार के कारण पाप, धार्मिकता, और न्याय के विषय कायल होते हैं; और न ही उनके प्रति वह आदर या ‘भय’ की भावना संसार के लोगों में उत्पन्न होती है, जो आरंभिक मसीही विश्वासियों के जीवन और कार्यों से सभी स्थानों के लोगों के मध्य होती थी। वरन इन गलत शिक्षाओं को बताने और सिखाने वालों के व्यवहार को लेकर, लोगों में 1 कुरिन्थियों 14:23 के अनुसार प्रतिक्रिया अधिक देखी जाती है। उनका यह बाइबल की शिक्षाओं से पूर्णतः भिन्न व्यवहार और अनुचित शिक्षाएं न तो उनमें परमेश्वर पवित्र आत्मा की उपस्थिति को प्रमाणित करते हैं, और न ही परमेश्वर की महिमा का कारण ठहरते हैं; वरन परमेश्वर और बाइबल की बातों के उपहास और अविश्वास को ही बढ़ावा देते हैं।
मसीही सेवकाई के लिए शिष्यों को तैयार करते हुए, यूहन्ना 16 अध्याय की चर्चा में, प्रभु ने 12 और 13 पद में एक और बात अपने शिष्यों के समक्ष रखी: “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आने वाली बातें तुम्हें बताएगा” (यूहन्ना 16:12-13)। ये शिष्य लगभग साढ़े-तीन वर्ष से प्रभु यीशु के साथ रहे थे, प्रभु से सीखते रहे थे, प्रभु के भेजे जाने पर सुसमाचार प्रचार के लिए भी गए थे और उन्होंने आश्चर्यकर्म भी किए तथा दुष्टात्माओं को भी निकाला था। किन्तु अब, अपनी पृथ्वी की सेवकाई के अंतिम समय में आ कर, और उन्हें उनकी आने वाले दिनों की सेवकाई के विषय, प्रभु उनसे कहता है “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते।” मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का हिन्दी अनुवाद ‘सह’ किया गया है, उसका मूल भाषा का अर्थ है “उठाना” या “निर्वाह करना”। अर्थात प्रभु से साढ़े तीन वर्ष प्रशिक्षण पाने, और सामर्थी कार्य कर लेने के बाद भी उनके लिए सेवकाई से संबंधित अभी “बहुत सी बातें” थीं, जिन्हें उन शिष्यों को जानना, सीखना, और समझना अभी शेष था। और जैसा यूहन्ना 16:13 में लिखा है, ये बातें, परमेश्वर पवित्र आत्मा ने ही आ कर उन्हें सिखाना था। इन बातों का, जो केवल पवित्र आत्मा की सामर्थ्य और सहायता से सीखी, समझी, और निर्वाह की जा सकती हैं, एक उदाहरण यूहन्ना 6:60-66 में हमें मिलता है, जहाँ आने वाले समय में स्थापित किए जाने वाले प्रभु-भोज से संबंधित प्रभु की शिक्षाओं को उनके कई शिष्य समझ नहीं सके, सहन नहीं कर सके, और उन्हें छोड़कर चले गए। किन्तु आज, मसीही विश्वासियों के लिए, उनके लिए जिनमें उद्धार के साथ ही पवित्र आत्मा आकार निवास करने लगता है, प्रभु-भोज से संबंधित इन शिक्षाओं को ग्रहण करना कठिन नहीं है; क्योंकि उनमें बसने वाला पवित्र आत्मा उन्हें उन बातों के विषय बताता है, उनका पालन करना सिखाता है।
यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो आपके जीवन में परमेश्वर पवित्र आत्मा की क्या भूमिका और कार्य प्रकट होते हैं? क्या आपका मसीही जीवन आज संसार के लोगों के समक्ष एक आधारभूत परिवर्तन का जीवन, उन लोगों के जीवन और व्यवहार से पृथक तुलना का जीवन प्रस्तुत करता है? क्या संसार के लोगों में आपके जीवन, व्यवहार, कार्य, आदि के द्वारा आपके तथा आपके परमेश्वर के प्रति एक आदर का, ‘भय’ का भाव उत्पन्न होता है? या फिर वे आपकी बातों और व्यवहार के कारण आपका तथा आपके परमेश्वर और विश्वास का उपहास करते हैं, और अविश्वास करते हैं? अपने मसीही जीवन, व्यवहार, और शिक्षाओं को परख कर देखें (1 थिस्सलुनीकियों 5:21), और केवल उन बातों को ही थामें रहने जो परमेश्वर के वचन के अनुसार हैं; न कि उन बातों के पालन में लगे रहें जो आपके मत या डिनॉमिनेशन के अनुसार हैं (गलातीयों 1:10)। तब ही आप प्रभावी मसीही सेवक बन सकेंगे; अन्यथा विचित्र व्यवहार, और चिह्न-चमत्कारों के चक्करों में पड़े हुए, इन बातों पर आधारित गलत शिक्षाओं में भटकते रहेंगे, इन्हें ही पवित्र आत्मा की उपस्थिति और सामर्थ्य के प्रमाण मानते रहेंगे। और अंततः जब आँख खुलेगी, समझ आएगी कि शैतान भी अपनी शक्ति से यही सब कर सकता है और करता रहता है (2 कुरिन्थियों 11:3, 13-15; 2 थिस्सलुनीकियों 2:9-12), तब तक बहुत देर हो चुकेगी, आप सब कुछ गँवा चुके होंगे, और गलती सुधारने के अवसर समाप्त हो चुके होंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो थोड़ा थम कर विचार कीजिए, क्या मसीही विश्वास के अतिरिक्त आपको कहीं और यह अद्भुत और विलक्षण आशीषों से भरा सौभाग्य प्राप्त होगा, कि स्वयं परमेश्वर आप में आ कर सर्वदा के लिए निवास करे; आपको धर्मी बनाए; आपको अपना वचन सिखाए; और आपको शैतान की युक्तियों और हमलों से सुरक्षित रखने के सभी प्रयोजन करके दे? और फिर, आप में होकर अपने आप को तथा अपनी धार्मिकता को औरों पर प्रकट करे, आपको खरा आँकलन करने और सच्चा न्याय करने वाला बनाए; तथा आप में होकर पाप में भटके लोगों को उद्धार और अनन्त जीवन प्रदान करने के अपने अद्भुत कार्य करे, जिससे अंततः आपको ही अपनी ईश्वरीय आशीषों से भर सके? इसलिए अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों के लिए पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु से क्षमा माँगकर, अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आप अपने पापों के अंगीकार और पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से समर्पण की प्रार्थना कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए मेरे सभी पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” प्रभु की शिष्यता तथा मन परिवर्तन के लिए सच्चे पश्चाताप और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
यहेजकेल 1-2
इब्रानियों 11:1-19