ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

रविवार, 26 फ़रवरी 2017

दृष्टिकोण


   मेरी पत्नि परिवार से पहले तड़के ही उठ जाती है। वह परिवर के अन्य जनों के उठने से पहले के इस शान्त समय को प्रार्थना करने तथा परमेश्वर का वचन बाइबल पढ़ने में लगाती है। हाल ही में वह अपनी कुर्सी पर बैठकर ऐसा करना आरंभ ही कर रही थी कि उसका ध्यान वहाँ रखे सोफा की अस्त-व्यस्त स्थिति तथा वहाँ फैली हुई गन्दगी पर गया, जहाँ मैंने पिछली रात्रि बैठकर अपनी पसन्द का फुटबॉल का खेल देखा था और फिर बिना उसे ठीक किए ऐसे ही उठ गया था। उस अव्यवस्थित सोफा और वहाँ की गन्दगी को देखकर पहले तो वह विचलित हुई और उसका ध्यान विच्छेदित हुआ, और मुझे लेकर हुई उसकी निराशा ने परमेश्वर से बातचीत करने के उसके समय के उत्साह को भंग किया। फिर उसे कुछ ध्यान आया और उसने अपनी कुर्सी का रुख बदलकर खिड़की की ओर कर लिया जहाँ से वह एटलांटिक महासागर पर होते हुए सूर्योदय के सुन्दर दृश्य को देख सकी। उस प्रातः परमेश्वर द्वारा रचे गए उस दृश्य की सुन्दरता ने मेरे कारण बने उसके कुँठित कर देने वाले दृष्टिकोण को बदल दिया।

   बाद में जब उसने यह बात मुझे बताई, तो हम दोनों ने उस प्रातः के सीखे गए उस पाठ के महत्व को समझा। हम चाहे हमारे दिन पर प्रभाव डालने वाली हर बात को नियंत्रित ना कर सकें, फिर भी हर बात के प्रति एक चुनाव हमारे पास सदैव होता है - हम उस अस्त-व्यस्त परिस्थिति और "गन्दगी" पर ध्यान करते रह सकते हैं और कुँठित बने रह सकते हैं, या फिर अपना दृष्टिकोण बदल कर कुछ अच्छा देख सकते हैं उस से आनन्दित हो सकते हैं।

   जब प्रेरित पौलुस एथेन्स में था तो "... नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल गया" (प्रेरितों 17:16)। लेकिन उसने अपनी जलन में फंसे रहने की बजाए, धर्म के प्रति एथेन्स के लोगों की रुचि को अवसर बना कर उन्हें सच्चे परमेश्वर तथा सारे जगत के सभी लोगों के उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के बारे में बताने के लिए प्रयोग किया।

   उस प्रातः मेरी पत्नि के काम पर जाने के बाद मेरे लिए अवसर था कि मैं प्रातः के पाठ के संदर्भ में अपना दृष्टिकोण बदलता, और परमेश्वर की सहायता से घर में मेरे द्वारा उत्पन्न की जाने अव्यवस्था को अपनी पत्नि की नज़रों से देखना और समझना सीखता। - रैंडी किलगोर


परमेश्वर के दृष्टिकोण से अपने जीवन का अवलोकन करने में ही बुद्धिमानी है।

यदि मैं कहूं, मैं उसकी चर्चा न करूंगा न उसके नाम से बोलूंगा, तो मेरे हृदय की ऐसी दशा होगी मानो मेरी हड्डियों में धधकती हुई आग हो, और मैं अपने को रोकते रोकते थक गया पर मुझ से रहा नहीं जाता। - यिर्मयाह 20:9

बाइबल पाठ: प्रेरितों 17:16-31
Acts 17:16 जब पौलुस अथेने में उन की बाट जोह रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल गया। 
Acts 17:17 सो वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उन से हर दिन वाद-विवाद किया करता था। 
Acts 17:18 तब इपिकूरी और स्‍तोईकी पण्‍डितों में से कितने उस से तर्क करने लगे, और कितनों ने कहा, यह बकवादी क्या कहना चाहता है परन्तु औरों ने कहा; वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है, क्योंकि वह यीशु का, और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था। 
Acts 17:19 तब वे उसे अपने साथ अरियुपगुस पर ले गए और पूछा, क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? 
Acts 17:20 क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिये हम जानना चाहते हैं कि इन का अर्थ क्या है? 
Acts 17:21 (इसलिये कि सब अथेनवी और परदेशी जो वहां रहते थे नई नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे)। 
Acts 17:22 तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा हो कर कहा; हे अथेने के लोगों मैं देखता हूं, कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े मानने वाले हो। 
Acts 17:23 क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्‍तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, कि अनजाने ईश्वर के लिये। सो जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूं। 
Acts 17:24 जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उस की सब वस्‍तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्‍वामी हो कर हाथ के बनाए हुए मन्‍दिरों में नहीं रहता। 
Acts 17:25 न किसी वस्तु का प्रयोजन रखकर मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और स्‍वास और सब कुछ देता है। 
Acts 17:26 उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाईं हैं; और उन के ठहराए हुए समय, और निवास के सिवानों को इसलिये बान्‍धा है। 
Acts 17:27 कि वे परमेश्वर को ढूंढ़ें, कदाचित उसे टटोल कर पा जाएं तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं! 
Acts 17:28 क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है, कि हम तो उसी के वंश भी हैं। 
Acts 17:29 सो परमेश्वर का वंश हो कर हमें यह समझना उचित नहीं, कि ईश्वरत्‍व, सोने या रूपे या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों। 
Acts 17:30 इसलिये परमेश्वर आज्ञानता के समयों में अनाकानी कर के, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। 
Acts 17:31 क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रामाणित कर दी है।

एक साल में बाइबल: 
  • गिनती 15-16
  • मरकुस 6:1-29