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रविवार, 21 अगस्त 2022

मसीही सेवकाई और पवित्र आत्मा के वरदान / Gifts of The Holy Spirit in Christian Ministry – 1


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मसीही जीवन, कार्यशील जीवन


मसीही जीवन और सेवकाई से संबंधित बातों के अध्ययन की इस ज़ारी शृंखला में हम मसीही विश्वास, मसीही जीवन, और मसीही सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका के बारे में देख चुके हैं। पिछले कुछ लेखों में हम परमेश्वर पवित्र आत्मा और उनके कार्यों से संबंधित सामान्यतः सिखाई और प्रचार की जाने वाली गलत शिक्षाओं के बारे में देख रहे थे, कि बाइबल की वास्तविक शिक्षाएं क्या हैं, और इन्हें गलत रूप और अर्थ के साथ बताने सिखाने वालों की गलतियों को कैसे पहचाना जाए, और उनसे बच कर रहा जाए। आज से हम एक और संबंधित बात के बारे में अध्ययन करना आरंभ करेंगे - जो मसीही सेवकाई और जीवन के लिए भी आवश्यक है, और जिसकी गलत समझ के कारण परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित गलत शिक्षाएं बताने और फैलाने वाले इसके विषय भी बहुत से गलत धारणाएं तथा शिक्षाएं बताते, सिखाते, और फैलाते रहते हैं। और इसलिए इनके विषय भी परमेश्वर के वचन की वास्तविकता को जानना एवं समझना अनिवार्य है ताकि गलतियों और व्यर्थ बातों से बचा जा सके, वचन की सच्चाइयों के साथ चला जा सके।

 

हमारे प्रभु परमेश्वर का एक बहुत बड़ा गुण है कि वह सदा अपनी सृष्टि के संचालन और प्रबंधन में सक्रिय रहता है, उसकी देखभाल में और संबंधित कार्यों में जुटा रहता है। प्रभु यीशु ने कहा, “इस पर यीशु ने उन से कहा, कि मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूं” (यूहन्ना 5:17)। आज भी हमारा परमेश्वर पिता और हमारा उद्धारकर्ता परमेश्वर पुत्र हमारे लिए कार्य कर रहे हैं; और परमेश्वर पवित्र आत्मा हम में होकर संसार में कार्य कर रहा है। हमारा परमेश्वर पिता हम पर अपनी दृष्टि लगाए रखता है (2 इतिहास 16:9), अपनी आँख की पुतली के समान हमारी रखवाली करता है (व्यवस्थाविवरण 32:10; ज़कर्याह 2:8), हमारे मन और विचार की बातों को देखता और जाँचता रहता है (1 इतिहास 28:9), हमारी प्रार्थनाओं को सुनता और अपनी योजनाओं के अनुसार उनका उचित उत्तर देने के लिए कार्य करता है (भजन 143:1; 1 यूहन्ना 5:14-15), इत्यादि। हमारा उद्धारकर्ता परमेश्वर पुत्र, प्रभु यीशु पिता के सामने हमारा सहायक है (1 यूहन्ना 2:1), हमारे लिए विनती और प्रार्थना करता है (यूहन्ना 17:9, 11, 15; रोमियों 8:34), शैतान के दोषारोपण से हमें बचाए रखता है (प्रकाशितवाक्य 12:10), हमारे लिए स्थान तैयार कर रहा है, हमें लेने आने की तैयारी में लगा है (यूहन्ना 14:3), इत्यादि। कार्यशील रहना न केवल परमेश्वर का एक गुण है, वरन उसने मनुष्य में जिसे उसने अपने स्वरूप में बनाया है, उसमें भी अपने समान कार्यशील होने का गुण डाला है। सृष्टि के आरंभ से ही कार्यशील रहने से संबंधित परमेश्वर के इस सिद्धांत को हम लागू देखते हैं। परमेश्वर ने आदम के लिए अच्छे फलों के वृक्षों की अदन की वाटिका लगा कर दी, किन्तु उस वाटिका की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी परमेश्वर ने आदम को सौंपी (उत्पत्ति 2:8, 9, 15)। यद्यपि आदम अकेला था, किन्तु परमेश्वर ने उसे निठल्ला नहीं रहने दिया, उसे वाटिका में काम पर लगाया। इसी सिद्धांत के अनुसार, पवित्र आत्मा की अगुवाई में प्रेरित पौलुस ने लिखा, “और जब हम तुम्हारे यहां थे, तब भी यह आज्ञा तुम्हें देते थे, कि यदि कोई काम करना न चाहे, तो खाने भी न पाए। हम सुनते हैं, कि कितने लोग तुम्हारे बीच में अनुचित चाल चलते हैं; और कुछ काम नहीं करते, पर औरों के काम में हाथ डाला करते हैं। ऐसों को हम प्रभु यीशु मसीह में आज्ञा देते और समझाते हैं, कि चुपचाप काम कर के अपनी ही रोटी खाया करें” (2 थिस्स्लुनीकियों 3:10-12)।


और कार्यशील रहने से संबंधित यही सिद्धांत उद्धार पाने के बाद के मसीही जीवन एवं सेवकाई पर भी इसी प्रकार से लागू है “और जैसी हम ने तुम्हें आज्ञा दी, वैसे ही चुपचाप रहने और अपना अपना काम काज करने, और अपने अपने हाथों से कमाने का प्रयत्न करो” (1 थिस्स्लुनीकियों 4:11)। परमेश्वर ने उद्धार पाए हुए अपने लोगों के लिए पहले से ही कार्य निर्धारित करके तैयार रखे हुए हैं, “क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया” (इफिसियों 2:10)। और जब परमेश्वर ने ज़िम्मेदारी दी है, तो फिर हम सभी से उस ज़िम्मेदारी के निर्वाह का हिसाब भी लेगा तथा हमारे कार्यों के अनुसार हमें प्रतिफल भी देगा (मत्ती 16:27; 1 कुरिन्थियों 3:13-15; 4:5; 2 कुरिन्थियों 5:10; 1 पतरस 4:17)। जो काम परमेश्वर ने हमारे लिए निर्धारित किए हैं, हम उन्हें ठीक से करने पाएं, इसके लिए परमेश्वर ने हमारे लिए उपाय भी किया है - हम मसीही विश्वासियों में निवास करने वाला पवित्र आत्मा हमारा मार्गदर्शन और सहायता करता है; और साथ ही परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रत्येक मसीही विश्वासी की सेवकाई के अनुसार उसे उपयुक्त वरदान भी दिए हैं, जिनकी सहायता से हम अपनी इस ज़िम्मेदारी को पूरा कर सकें (1 कुरिन्थियों 7:7; 12:11), ठीक से निभा सकें, और इस से परमेश्वर की महिमा हो सके (1 पतरस 4:10-11)। साथ ही इन आत्मिक वरदानों से संबंधित कुछ बातें भी हैं, जिनके अनुसार इनका प्रयोग किया जाना है। आगे हम इन बातों और वरदानों के बारे में कुछ और विस्तार से देखेंगे।

 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं तो क्या आपको यह पता है कि परमेश्वर ने आपके लिए कौन से भले कार्य निर्धारित करके रखे हुए हैं? और क्या आप उन कार्यों को उसकी इच्छा के अनुसार पूरा कर रहे हैं? कहीं आप अपनी ही इच्छा और सुविधा के अनुसार प्रभु यीशु के नाम में कुछ भी करने के द्वारा यह तो नहीं समझ रहे हैं कि आप ने परमेश्वर के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का सही निर्वाह कर लिया है? यदि आपको अभी भी उस कार्य का पता नहीं है जो परमेश्वर ने आपके लिए नियुक्त किया है, तो आपको प्रार्थना में परमेश्वर के सम्मुख इस बात को रखना चाहिए और उससे अपनी उस सेवकाई की पहचान माँगनी चाहिए, जो वह चाहता है कि आप उसके लिए करें। आपकी आशीष और प्रतिफल उसी सेवकाई के निर्वाह से है, अन्य कुछ करने से नहीं।

 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


एक साल में बाइबल पढ़ें: 

  • भजन 107-109 

  • 1 कुरिन्थियों 4

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English Translation

Christian Living - Active and Working


In this on-going series about Christian Life, Living, and Ministry, in the previous articles we have seen the role of God the Holy Spirit in Christian Faith, Life, and Ministry. In the preceding articles we had been considering and evaluating from God’s Word the Bible, the false teachings and wrong doctrines that are being commonly taught these days about the Holy Spirit and His works. In this context we had seen what are the actual teachings of the Bible, and how to identify the wrong meanings and implications ascribed to these Biblical teachings, to be able to avoid the false and wrong and stay safe from them. From today we will start studying another related topic, which is very important for Christian Living and Ministry, and which is also the subject of many misinterpretations, misunderstandings, and wrong teachings; since those who preach and teach wrong doctrines about the Holy Spirit, have also formed and spread many wrong teachings and notions about this topic as well. Hence, it is essential to know and learn the truths of God’s Word about this topic, stay safe from errors and false doctrines, and only go by the truths of God’s Word.


One of the great characteristics of our Lord God is that He is always actively involved in taking care of His creation, always at work in managing and running it. The Lord Jesus said, “My Father has been working until now, and I have been working” (John 5:17). Even today our Father God and our Savior God the Son are at work for us; and, God the Holy Spirit is working through us in this world. Our Father God always keeps His eyes on us (2 Chronicles 16:9), protects us as the apple of His eyes (Deuteronomy 32:10; Zechariah 2:8), looks at and evaluates the thoughts arising in our heart (1 Chronicles 28:9), listens to our prayers and answers them in accordance with His plans related to them (Psalms 143:1; 1 John 5:14-15), etc. Our savior Lord, God the Son, is our advocate before God the Father (1 John 2:1). He prays and intercedes for us (John 17:9, 11, 15; Romans 8:34), and delivers us from the accusations of the devil (Revelation 12:10), He is preparing a place for us and preparing to come and take us to be with Him for eternity (John 14:3), etc. Being active and working is not only an attribute of God, but He has also placed this in man whom He created in His likeness. From the very beginning of creation, we see this principle of being active and working being in force. God made a garden of good fruit bearing plants, the Garden of Eden, for Adam; but gave the task and responsibility of tending that garden, looking after and maintaining it to Adam (Genesis 2:8, 9, 15). Although Adam was alone at that time, but God did not let him be lazy and inactive, but put him to work in the Garden. In accordance with this principle, under the guidance of the Holy Spirit, the apostle Paul wrote, “For even when we were with you, we commanded you this: If anyone will not work, neither shall he eat. For we hear that there are some who walk among you in a disorderly manner, not working at all, but are busybodies. Now those who are such we command and exhort through our Lord Jesus Christ that they work in quietness and eat their own bread” (2 Thessalonians 3:10-12).


This principle of being active and working is in force upon the Christian Believers after their being saved, “that you also aspire to lead a quiet life, to mind your own business, and to work with your own hands, as we commanded you” (1 Thessalonians 4:11). God has already determined works to be done by His people, the Born-Again Christian Believers, “For we are His workmanship, created in Christ Jesus for good works, which God prepared beforehand that we should walk in them” (Ephesians 2:10). When God has given a responsibility, then He will also take an account from each one of us about how we have fulfilled it and reward us accordingly (Matthew 16:27; 1 Corinthians 3:13-15; 4:5; 2 Corinthians 5:10; 1 Peter 4:17). So that we are able to do our God assigned works and responsibilities well enough, God has also made provisions for our help - God the Holy Spirit residing in every truly Born-Again Christian Believer from the moment of his salvation, guides and helps us. The Holy Spirit also gives to every Christian Believer appropriate gifts (1 Corinthians 7:7; 12:11), through which we can not only fulfill our responsibility, but do it well and glorify God through it (1 Peter 4:10-11). There are some important things related to these spiritual gifts, and these gifts have to be used keeping those things in mind. We will look into these things and the spiritual gifts in the coming articles.


If you are a Christian Believer, then are you aware of the ‘good works’ God has kept for you, assigned to you? Are you actively involved in doing those works in accordance with God’s will? Or, is it that by doing anything according to your fancy in the name of the Lord Jesus, you are assuming that you have appropriately fulfilled your responsibility towards the Lord God? If you are as yet unaware of the work that God wants you to do for Him, then you should put this in prayer before God, and ask Him to help you identify and understand the work He wants you to do for Him. Your blessings and rewards are only according to your fulfilling your God assigned responsibility, not through anything else you may assume and do.


If you are still thinking of yourself as being a Christian, a child of God, entitled to a place in heaven, because of being born in a particular family and having fulfilled the religious rites and rituals prescribed under your religion or denomination since your childhood, then you too need to come out of your misunderstanding of Biblical facts and start learning, understanding, and living according to what the Word of God says, instead of what any denominational creed says or teaches. Make the necessary corrections in your life now while you have the time and opportunity; lest by the time you realize your mistake, it is too late to do anything about it.


If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.



Through the Bible in a Year: 

  • Psalms 107-109 

  • 1 Corinthians 4