अधिकतर लोग नम्रता को कमज़ोरी के रूप में देखते हैं. लेकिन यह सच नहीं है। वास्तव में विनम्र होने के लिए बहुत सामर्थ चाहिए होती है, क्योंकि विनम्र लोग अन्य लोगों के समान न तुरंत पलटवार करते हैं और न बदला लेने की चाह में रहते हैं। वे बिना कुड़कुड़ाए, अपशबद बोले या अपने हाव-भाव द्वारा कोई कटुता दिखाए निन्दा सह लेते हैं; वे हर परिस्थिति के लिए और हर परिस्थिति में - भली हो या बुरी, परमेश्वर के धन्यवादी रहते हैं तथा उसके आधीन बने रहते हैं। ऐसे संयम को बनाए रखना हर किसी के बस की बात नहीं है और ना ही यह मात्र मानवीय समर्थ से संभव है। क्योंकि विनम्र लोग संसार के आम लोगों के समान प्रत्युत्तर नहीं देते और ना ही व्यवहार करते हैं इसलिए संसार के लोग समझते हैं कि उन को दबा लेना या उन पर हावी होकर अपने लिए प्रयोग कर लेना आसान है; किंतु सच्ची नम्रता कमज़ोरी नहीं है। इसके विपरीत यदि नम्रता स्वार्थ सिधि का मार्ग या जीवन में समझौते करने और पाप में पड़ने का माध्यम बन जाए तो अवश्य कमज़ोरी बन जाती है।
परमेश्वर का वचन पवित्र बाइबल जिस नम्रता की बात करती है, वह कोई कमज़ोरी नहीं वरन एक सामर्थी सद्गुण है जो हमें प्रभु यीशु में देखने को मिलता है। प्रभु यीशु परमेश्वर का प्रतिरूप थे, परमेश्वरत्व की सारी सामर्थ उनमें विद्यमान थी, उनके वचन में हर कार्य को कर देने की सामर्थ थी लेकिन उनहोंने कभी अपनी इस सामर्थ का प्रयोग अपने लिए अथवा किसी स्वार्थ सिधि के लिए नहीं किया। दूसरों ने उनके साथ चाहे जैसा भी बर्ताव किया हो, वे सदा ही दूसरों की भलाई में ही लगा रहे। वे सदा परमेश्वर पिता को भी समर्पित रहे, सदा उनका आज्ञाकारी रहे। परमेश्वर पिता के प्रति उनका समपूर्ण विश्वास, समर्पण और आज्ञाकारिता ही थे जिनके द्वारा वे हर परिस्थिति में साहसी, हरेक व्यक्ति के प्रति करुणामय, पाप और बुराई से कभी कैसा भी समझौता न करने वाले और समस्त संसार के पापों के लिए आत्मबलिदान करने वाले बन सके।
ऐसी सच्ची नम्रता परमेश्वर के प्रति सच्चे समर्पण तथा मन के अन्दर बसी और बनी भलाई की भावना से ही आती है; और यह भलाई परमेश्वर के साथ बने रहने से आती है, इसीलिए सच्ची नम्रता परमेश्वर की संगति का नतीजा है। जहाँ परमेश्वर की संगति होगी, वहाँ परमेश्वर की सामर्थ भी होगी; और जो परमेश्वर की सामर्थ से होगा वह ना कभी कमज़ोरी हो सकता और ना ही कमज़ोर बना सकता है। - मार्ट डी हॉन
सेवा करने के लिए काबू में ली गई सामर्थ ही नम्रता है।
धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। - मत्ती ५:५
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:१-११
Php 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
Php 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
Php 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
Php 2:4 हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।
Php 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।
Php 2:6 जिस ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।
Php 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
Php 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
Php 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।
Php 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
Php 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
एक साल में बाइबल:
- सभोपदेशक १-३
- २ कुरिन्थियों ११:१६-३३