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बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (4)


भ्रामक शिक्षाएं

 

हम पिछले लेखों से इफिसियों 4:14 से अपरिपक्व मसीही विश्वासियों और अपरिपक्व कलीसिया के बारे में देखते आ रहे हैं। उनकी इस बालकों समान अपरिपक्वता का कारण उनका परमेश्वर पर पूरा भरोसा न रखना, और अपने पर भरोसा रखते हुए, परमेश्वर के निर्देशों के अनुसार नहीं वरन अपनी बुद्धि और समझ के अनुसार निर्णय लेते और कार्य करते रहना है। उनकी यह अपने पर भरोसा रखने की प्रवृत्ति उन्हें परमेश्वर के वचन और संगति से दूर कर देती है, जिससे फिर उन्हें उनकी आत्मिक खुराक या तो कम मिलती है अथवा मिलती ही नहीं है, और वे अपने आत्मिक जीवन में, अपने मसीही जीवन, गवाही, और सेवकाई में दुर्बल एवं अप्रभावी हो जाते हैं। अपनी इस अपरिपक्वता के कारण वे फिर मनुष्यों की ठग विद्या, भ्रम और युक्तियों, और गलत शिक्षाओं वाले उपदेशों का शिकार हो जाते हैं, जिसका प्रमाण उनका अस्थिर और भटकता हुआ मसीही जीवन होता है। हम अपरिपक्वता के पहले दो दुष्प्रभावों, मसीही विश्वासियों के मनुष्यों की ठग विद्या तथा भ्रम और युक्तियों से प्रभावित होने के बारे में देख चुके हैं। आज तीसरे दुष्प्रभाव, गलत उपदेशों से प्रभावित होने के बारे में देखेंगे। 

आज हमारे हाथों में परमेश्वर का संपूर्ण वचन है, जो सुविधा उन आरंभिक मसीही विश्वासियों के पास नहीं थी। उनके पास, या उन्हें उपलब्ध केवल पुराने नियम की पुस्तकें, और प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों तथा प्रेरितों द्वारा दी गई मौखिक शिक्षाएं और लिखी गई पत्रियां ही होती थीं। किन्तु फिर भी ऐसे भी मसीही विश्वासी थे, जैसे कि बेरिया के विश्वासी, जो अपने इन सीमित संसाधनों के बावजूद उन्हें दी जाने वाली शिक्षाओं को उपलब्ध वचन से जाँच परख कर देखते थे, और तब ही उन्हें स्वीकार करते थे। उनके इस खराई में बने रहने के प्रयास के लिए परमेश्वर के वचन में उनकी प्रशंसा की गई है, उन्हें उदाहरण के समान रखा गया है (प्रेरितों 17:11)। परमेश्वर पवित्र आत्मा ने पौलुस प्रेरित द्वारा लिखवाया है किसब बातों को परखो: जो अच्छी है उसे पकड़े रहो” (1 थिस्स्लुनीकियों 5:21)। किसी भी प्रचारक, उपदेशक, या शिक्षक के द्वारा दिए जाने वाले संदेश की खराई और सच्चाई को जाँचना-परखना, और तब ही उसे स्वीकार करना, परमेश्वर के वचन के विरुद्ध नहीं, उसके अनुसार है। जो कलीसिया या मसीही विश्वासी यह करते हैं, इस जाँचने की प्रवृत्ति के लिए जाने जाते हैं, वे गलत शिक्षाओं से भी बचे रहेंगे, और कोई गलत शिक्षाओं का देने वाला उनके मध्य आकर कुछ भी कहने से सावधान रहेगा। यह न केवल प्रत्येक मसीही विश्वासी का व्यक्तिगत दायित्व है, वरन प्रत्येक कलीसिया में वचन की सेवकाई के लिए भी परमेश्वर पवित्र आत्मा द्वारा यह जांचने का निर्देश बाइबल में लिखवाया गया हैभविष्यद्वक्ताओं में से दो या तीन बोलें, और शेष लोग उन के वचन को परखें” (1 कुरिन्थियों 14:29)। किन्तु आज वचन के इस निर्देश के विपरीत, हर प्रकार के शिक्षक या उपदेशक को सहज ही ग्रहण कर लेना और उसके प्रचार संदेश की सराहना अथवा प्रशंसा करना एक आम बात हो गई है। उसके प्रचार का विश्लेषण करने और जाँचने वाले लोग और कलीसियाएं कम ही मिलती हैं। इसीलिए भ्रामक और गलत उपदेशों की भरमार हो गई है, और शैतान का काम आसान हो गया है। 

आरंभिक कलीसिया के समय में गलत शिक्षाओं वाले ये प्रचारक, अपने साथ इस प्रकार की उनकी सराहना और प्रशंसा की पत्रियां लिए फिरते थे, जिससे उन्हें कलीसियाओं में प्रवेश पाना और प्रचार करना सहज हो जाए। प्रेरित पौलुस ने इस बात के संदर्भ में, कुरिन्थुस की मण्डली के लोगों से पूछा, “क्या हम फिर अपनी बड़ाई करने लगे? या हमें कितनों के समान सिफारिश की पत्रियां तुम्हारे पास लानी या तुम से लेनी हैं?” (2 कुरिन्थियों 3:1)। और अपने आप को इस कुप्रथा से दूर रखते हुए, उसने इन गलत उपदेश वालों की पहचान करने का एक चिह्न भी दिया - सच्चे मसीही प्रचारक का प्रचार और उसका प्रभाव, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से, केवल बाहरी या शारीरिक नहीं होता है, वरन हृदय या मन में होता है, और सभी लोगों के सामने बदले हुए हृदय में दिखाई देता है (2 कुरिन्थियों 3:2-3)। पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस ने तीमुथियुस को इस बात के लिए भी सचेत कियाक्योंकि ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे। और अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे। पर तू सब बातों में सावधान रह, दुख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर” (2 तीमुथियुस 4:3-5), अर्थात, लोग स्वयं ही अपने लिए गलत उपदेशक बटोर लेंगे और वचन की खरी शिक्षाओं पर नहीं, परंतु इधर-उधर की बातों, मन-गढ़ंत किस्से-कहानियों पर मन लगाएंगे। परन्तु तीमुथियुस को इन बातों से सावधान रहते हुए, सुसमाचार प्रचार की अपनी सेवकाई को पूरा करना था, चाहे उसके लिए दुख ही क्यों न उठाने पड़ें। 

अगले लेख में हम इन गलत शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों को देखेंगे। किन्तु यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो अपने विषय यह सुनिश्चित कर लीजिए कि: 

  • क्या आप हर उपदेश को ऐसे ही ग्रहण कर लेते हैं, अथवा उसे वचन से जाँच-परख कर ही स्वीकार करते हैं
  • क्या आपको वचन की खरी शिक्षाएं, जो दोधारी तलवार के समान अंदर तक काटती हैं और भीतरी स्थिति की वास्तविकता को प्रकट करती हैं (इब्रानियों 4:12), पसंद हैं; या फिर आप सुनने में अच्छी लगने वाली इधर-उधर की बातों, मन-गढ़ंत किस्से-कहानियों से संतुष्ट और प्रसन्न होते हैं?
  • क्या आपके हृदय में, मन में आए परिवर्तन को लोग देखने और पहचानने पाते हैं; आपको संसार के लोगों से भिन्न समझने पाते हैं; या आपके किसी भी दावे के विपरीत, आपके जीवन में उन्हें संसार के अन्य लोगों से कोई भिन्नता दिखाई नहीं देती है?

       अपने आप को जाँच-परख कर, जो भी आवश्यक सुधार हैं, उन्हें अभी समय रहते कर लीजिए, और अपने अनन्त जीवन तथा आशीषों को सुरक्षित कर लीजिए। लापरवाही या अनुचित विलंब कहीं बहुत भारी न पड़ जाए। 

       यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • लैव्यव्यवस्था 19-20        
  • मत्ती 27:51-66