भ्रामक शिक्षाओं के
स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (9) - पवित्र आत्मा की
निन्दा करने का पाप (3)
हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि
बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता
से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक
शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और
ज्योतिर्मय स्वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि
भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु
साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं।
जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2
कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि
कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे,
जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले;
जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार
जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”,
इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः
तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई
को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है,
कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने,
जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने
के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है।
पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा
देने वाले लोगों के द्वारा, प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को
देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः
बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना
आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या
उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही
परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है,
और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं
जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से
बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे
बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन
उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है।
इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात है
“अन्य-भाषाओं” में बोलना, और उन लोगों के द्वारा “अन्य-भाषाओं” को अलौकिक भाषाएं बताना, और परमेश्वर के वचन के
दुरुपयोग के द्वारा इससे संबंधित कई और गलत शिक्षाओं को सिखाना। इसके बारे में भी
हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार
नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं,
वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई
अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या
समर्थन नहीं है कि “अन्य-भाषाएं” प्रार्थना
की भाषाएं हैं। इस गलत शिक्षा के साथ जुड़ी हुई इन लोगों की एक और गलत शिक्षा है कि
“अन्य-भाषाएं” बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त
करने का प्रमाण है, जिसके भी झूठ होने और परमेश्वर के वचन के
दुरुपयोग पर आधारित होने को हमने पिछले लेख में देखा है। पिछले लेख में हमने यह भी
देखा था कि उन लोगों के सभी दावों के विपरीत, न तो प्रेरितों
2:3-11 का प्रभु के शिष्यों द्वारा अन्य-भाषाओं में बोलना
कोई “सुनने” का आश्चर्यकर्म था,
न ही अन्य भाषाएं प्रार्थना करने की गुप्त भाषाएँ हैं, और न ही ये किसी को भी यूं ही दे दी जाती हैं, जब तक
कि व्यक्ति की उस स्थान पर सेवकाई न हो, जहाँ की भाषा बोलने
की सामर्थ्य उसे प्रदान की गई है। एक और दावा जो ये पवित्र आत्मा और अन्य-भाषाएँ
बोलने से संबंधित गलत शिक्षाएं देने वाले करते हैं, है कि
व्यक्ति अन्य-भाषा बोलने के द्वारा सीधे परमेश्वर से बात करता है। इसके तथा कुछ
संबंधित और बहुत महत्वपूर्ण बातों के बारे में हम पिछले दो लेखों में देख चुके हैं
कि उनका यह दावा भी वचन की कसौटी पर बिलकुल गलत है, अस्वीकार्य
है।
इन गलत शिक्षा फैलाने वालों की एक और
प्रमुख शिक्षा, जिसे वे अपने बचाव के लिए प्रयोग करते हैं,
है “पवित्र आत्मा की निन्दा कभी क्षमा न होने
वाला पाप है।” यह समझने के लिए कि यह “निरादर”
या “निन्दा” वास्तव में
है क्या, और यह क्यों केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा ही के
विरुद्ध ही क्षमा नहीं हो सकता है, हमने पिछले लेख से
परमेश्वर के वचन में से कुछ तथ्यों एवं शिक्षाओं को देखना आरंभ किया है, और पहले त्रिएक परमेश्वर के तीनों स्वरूपों, पिता,
पुत्र और पवित्र आत्मा के बारे में अपने इस विषय के संदर्भ से देखा
है। फिर हमने देखा कि लूसिफर का पाप क्यों क्षमा नहीं हो सकता था; और यह भी समझा था कि वचन के अनुसार निन्दा (blasphemy) शब्द का वास्तव में क्या अर्थ और अभिप्राय होता है, और
वचन के संदर्भ एवं प्रयोग के अनुसार क्यों जन-साधारण का हर संदेह, अविश्वास, अभद्र भाषा का प्रयोग, आदि, पवित्र आत्मा की निन्दा की श्रेणी में नहीं आता है। आज हम देखेंगे कि
क्यों प्रभु यीशु ने “पवित्र
आत्मा की निन्दा कभी क्षमा न होने वाला पाप है” केवल वचन के
ज्ञानियों और शिक्षकों, फरीसियों के लिए ही क्यों कहा है
(मरकुस 3:28-30 और लूका 12:10)।
यह समझने के लिए कि किस प्रकार से
फरीसियों के लिए प्रभु यीशु का निरादर करना क्षमा न हो सकने वाले पाप ठहरा,
इस संदर्भ में वचन के कुछ हवालों को देखिए:
यूहन्ना 3:1-3 को देखिए: “फरीसियों
में से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार
था। उसने रात को यीशु के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी,
हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से गुरु हो कर आया है; क्योंकि कोई इन
चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो,
तो नहीं दिखा सकता। यीशु ने उसको उत्तर दिया; कि
मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो
परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।” यहाँ, यह
बिलकुल स्पष्ट है कि निकुदेमुस ने प्रभु से जो कहा - “हम जानते हैं”, उसके अनुसार न
केवल वह स्वयं, वरन फरीसी समाज के सभी लोग भली-भांति जानते
थे कि प्रभु यीशु परमेश्वर की ओर से गुरु होकर आए हैं। तथा सभी फरीसी यह भी समझते
थे कि प्रभु यीशु के कार्य यह प्रमाणित करते थे कि परमेश्वर उनके साथ है, और उन में होकर काम कर रहा है।
धर्म के ये अगुवे प्रभु यीशु के, उस के
सेवकाई से पहले के जीवन के बारे में, न तो अनभिज्ञ थे और न किसी संदेह में थे; वरन, वे उसके विषय सब बातों के बारे में अच्छे से जानते थे! इसीलिए जब प्रभु
यीशु ने उन्हें चुनौती दी कि “तुम में से कौन मुझे पापी
ठहराता है? और यदि मैं सच बोलता हूं, तो
तुम मेरी प्रतीति क्यों नहीं करते?” (यूहन्ना 8:46),
तो उनमें से कोई भी प्रभु के जीवन में कोई पाप या बुराई को नहीं बता सका, कोई भी प्रभु को किसी भी बात में
दोषी नहीं
ठहरा सका।
इसी प्रकार से जब
“तब फरीसियों ने जा कर आपस में विचार किया, कि उसको किस प्रकार बातों में फंसाएं। सो उन्होंने अपने चेलों को
हेरोदियों के साथ उसके पास यह कहने को भेजा, कि हे गुरु;
हम जानते हैं, कि तू सच्चा है; और परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है; और किसी
की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू मनुष्यों का मुंह देखकर
बातें नहीं करता” (मत्ती 22:15-16) तब भी उन्होंने उसे “हे गुरु” कहकर
संबोधित किया, तथा इस तथ्य का अंगीकार किया कि प्रभु यीशु
सच्चा है, परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है, और निष्पक्ष, निष्कपट व्यवहार करता है।
जब प्रभु यीशु मसीह को पकड़वाने वाले
उनके शिष्य यहूदा इस्करियोती ने अपने किए पर दुख जताया और उन धर्म के अगुवों के
पास आकर कहा, “जब उसके पकड़वाने वाले यहूदा ने देखा कि वह दोषी ठहराया गया है तो वह
पछताया और वे तीस चान्दी के सिक्के महायाजकों और पुरनियों के पास फेर लाया। और कहा,
मैं ने निर्दोष को घात के लिये पकड़वाकर पाप किया है?
उन्होंने कहा, हमें क्या? तू ही जान” (मत्ती 27:3-4), तब भी, यद्यपि उन्होंने यहूदा की बात को अनसुनी कर
दिया, किन्तु उन्होंने प्रभु यीशु के निर्दोष होने की उसकी
बात को अस्वीकार नहीं किया, उसके विषय कोई तर्क नहीं किया।
और न ही प्रभु ने अपने बारे में उन्हें
किसी संदेह में छोड़ा था; अनेकों अवसरों पर, यहाँ तक कि उस समय
तक भी जब उन्हें झूठे मुकद्दमों में दोषी ठहराने के प्रयास किए जा रहे थे, प्रभु ने यह बारंबार स्पष्ट बता दिया था की वे कौन हैं (यूहन्ना 5:17-43;
8:25; 10:24; 14:11; लूका 22:67-70)। परन्तु
प्रभु यीशु के वास्तविकता को भली-भांति जानते हुए भी उन्होंने कभी भी प्रभु पर
विश्वास नहीं किया (यूहन्ना 12:37)। उलटे, यह सब जानते हुए भी, बुरे उद्देश्यों एवं स्वार्थी
भावनाओं के अंतर्गत, उन्होंने प्रभु को मार डालने का
षड्यंत्र रचा (यूहन्ना 11:47-50)।
दूसरे शब्दों में, यद्यपि यहूदियों के
धार्मिक अगुवे यह भली-भांति जानते थे कि प्रभु यीशु वास्तव में कौन हैं, और यह भी कि परमेश्वर उनके साथ है, तथा उन में होकर
कार्य कर रहा है। फिर भी जानबूझकर, स्वार्थी लाभ के लिए,
उन्होंने प्रभु की अवहेलना की, उन पर अविश्वास
किया, और सबसे बुरा यह कि जानबूझकर उनके बारे में लोगों का
गलत मार्गदर्शन किया। उन्होंने सभी के समक्ष प्रभु के कार्यों और शिक्षाओं में
होकर दिखाए जा रहे परमेश्वर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य को शैतानों के सरदार की सामर्थ्य कहने के द्वारा न केवल प्रभु
और परमेश्वर के विषय झूठ बोला, वरन प्रभु में होकर कार्य करने वाली पवित्र आत्मा की
सामर्थ्य को शैतानी शक्ति बताया। अब पिछले लेख में हमने जो “निन्दा”
(blasphemy) शब्द का वचन के अनुसार वास्तविक अर्थ को और उसके अभिप्रायों के बारे में सीखा था, उसे स्मरण कीजिए या
फिर से देख लीजिए। उन फरीसियों तथा धर्म के अगुवों की यह, प्रभु
के विरोध में, और स्वार्थ के अंतर्गत जानबूझकर कही गई बात;
प्रभु के बारे में जानकारी रखते हुए भी और यह जानते हुए भी कि प्रभु
पर उनके द्वारा लगाए जाने वाले आरोप झूठे हैं, फिर भी झूठ
बोलकर प्रभु का निरादर करना, उन्हें अपमानित करना, और उनमें होकर
कार्य करने वाली पवित्र आत्मा की सामर्थ्य को शैतानी सामर्थ्य कहना, केवल इसे ही प्रभु ने पवित्र आत्मा के
विरुद्ध किया गया कभी क्षमा न हो सकने वाला पाप कहा है; अन्य किसी बात को
नहीं।
इसलिए, पवित्र आत्मा के विरुद्ध कभी क्षमा न
हो सकने वाले पाप वह नहीं हैं जो बहुधा वर्तमान के अनेकों धार्मिक अगुवों के
द्वारा कहे और बताए जाते हैं; और जो वचन, विशेषकर पवित्र आत्मा से संबंधित गलत
शिक्षाओं को देने वाले बताते और फैलाते हैं। बाइबल में यह वाक्यांश एक बहुत ही
विशिष्ट अपराध के लिए प्रयोग किया गया है, और केवल उस अपराध
को ही यह कहा जाना चाहिए। अपनी गलत शिक्षाओं के विषय प्रश्नों से बचने के लिए लोगों को “पवित्र आत्मा की निन्दा”
का भय दिखाना या कहना झूठ है, अनुचित है,
वचन का दुरुपयोग है।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना
और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं
में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न
ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और
लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत
शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को
जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के
पालन को अपना लें।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- गिनती
28-30
- मरकुस 8:22-38