पवित्र आत्मा की
प्राप्ति (1)
पिछले लेख में हमने देखा था कि शैतान
इतना सामर्थी, कुटिल,
और धूर्त है कि मनुष्य के लिए अपनी किसी बल-बुद्धि-ज्ञान के द्वारा
उसका सामना करना, या उस पर जयवंत हो पाना संभव नहीं है।
परमेश्वर पवित्र आत्मा ने पौलुस प्रेरित के द्वारा लिखवाया, “क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लहू और मांस से नहीं,
परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस
संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक
सेनाओं से है जो आकाश में हैं” (इफिसियों 6:12)। इस आत्मिक मल्लयुद्ध के लिए आत्मिक हथियारों और सुरक्षा कवच, तथा आत्मिक बातों और आत्मिक सामर्थ्य की आवश्यकता है। इसे शारीरिक
सामर्थ्य, बुद्धि, ज्ञान, और बातों के द्वारा न तो लड़ा जा सकता है, और न ही जीता जा सकता
है। इसीलिए मसीही विश्वासियों को मनुष्य के नहीं, वरन परमेश्वर
के सारे हथियार बांध लेने के लिए कहा गया है “इसलिये
परमेश्वर के सारे हथियार बान्ध लो, कि तुम
बुरे दिन में सामना कर सको, और सब कुछ पूरा कर के स्थिर रह
सको” (इफिसियों 6:13), और फिर वह
उन हथियारों की सूची देता है (इफिसियों 6:14-17)।
इसी आत्मिक मल्लयुद्ध के लिए आत्मिक सामर्थ्य और ‘युद्ध-विद्या’ को सीखने और जानने के लिए प्रभु यीशु ने अपने स्वर्गारोहण से पहले शिष्यों
को आज्ञा दी कि वे यरूशलेम को न छोड़ें। वरन वहीं बने रहकर परमेश्वर पिता द्वारा जो
प्रतिज्ञा दी गई है, और जिसकी चर्चा प्रभु यीशु ने पहले उन
से की है, उसकी प्रतीक्षा करते रहें। प्रभु की यह प्रतिज्ञा
स्पष्ट शब्दों में प्रेरितों 1:5, 8 में बताई गई है। प्रभु की यह
प्रतिज्ञा स्पष्ट शब्दों में प्रेरितों 1:5, 8 में बताई गई
है “क्योंकि यूहन्ना ने तो पानी में बपतिस्मा दिया है
परन्तु थोड़े दिनों के बाद तुम पवित्रात्मा से बपतिस्मा पाओगे”; “परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ्य पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और
पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।” प्रेरितों 1:5, 8 यह स्पष्ट है कि
प्रभु शिष्यों से जिस प्रतिज्ञा के पूरे होने की प्रतीक्षा करने को कह रहा था,
वह शिष्यों के द्वारा पवित्र आत्मा प्राप्त करना था; और यह पवित्र
आत्मा प्राप्त करना ही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना है।
अब, यहाँ दो बातों पर ध्यान देना
आवश्यक है:
पहली, जिसे हम आज देखेंगे, शिष्यों को सेवकाई पर निकलने से पहले, प्रतिज्ञा के
पूरा होने तक प्रतीक्षा करनी थी, सेवकाई पर जाने के लिए
परमेश्वर के सही समय का इंतजार करना था। किन्तु यह बहुत महत्वपूर्ण
और ध्यान में रखने योग्य बात यह कि प्रभु ने उन्हें यह नहीं कहा कि उस प्रतीक्षा के समय
के दौरान उन्हें कुछ विशेष करते रहने होगा जिसके द्वारा फिर उन्हें पवित्र आत्मा
दिया जाएगा। न ही प्रभु ने उनसे यह कहा कि उनके परमेश्वर से विशेष रीति से मांगने
से, आग्रह करने या गिड़गिड़ाने
से, अथवा कोई अन्य विशेष प्रयास करने के परिणामस्वरूप फिर
परमेश्वर उन्हें पवित्र आत्मा देगा, जैसे कि आज बहुत से लोग
और डिनॉमिनेशन सिखाते हैं, और अपने लोगों द्वारा करने के लिए
बल देते हैं, विशेष सभाएं रखते हैं। पवित्र आत्मा प्राप्त
होने की प्रतिज्ञा का पूरा किया जाना परमेश्वर के द्वारा, उसके
समय और उसके तरीके से होना था, न कि इन शिष्यों के किसी
विशेष रीति से मांगने या कोई विशेष कार्य अथवा प्रयास करने से होना था।
बाइबल के गलत अर्थ निकालने और अनुचित
शिक्षा देने का सबसे प्रमुख और सामान्य कारण है किसी बात या वाक्य को संदर्भ से
बाहर लेकर, और उस
से संबंधित किसी संक्षिप्त वाक्यांश के आधार पर, अपनी ही समझ
के अनुसार एक सिद्धांत (doctrine) खड़ा कर लेना, उसे सिखाने लग जाना। प्रभु की कही इस बात के आधार पर भी ऐसे ही यह गलत
शिक्षा दी जाती है कि पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करना और प्रयास
करना आवश्यक है।
सम्पूर्ण नए नियम में फिर कहीं यह
प्रतीक्षा करना न तो सिखाया गया है, और ना इस बात के लिए कभी किसी को कोई उलाहना दिया गया है
कि उन्होंने प्रतीक्षा अथवा प्रयास क्यों नहीं किया। न ही किसी मसीही विश्वासी में
विश्वास अथवा सामर्थ्य की कमी दिखने पर उससे कभी यह कहा गया कि कुछ विशेष प्रयास
अथवा प्रतीक्षा कर के वे पवित्र आत्मा को प्राप्त करें, और
उससे प्रभु की सेवकाई के लिए सामर्थी बनें। वरन नए नियम में अन्य सभी स्थानों पर
यही बताया और सिखाया गया है कि पवित्र आत्मा प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करते ही,
तुरंत ही दे दिया जाता है।
- प्रेरितों
10:44; 11:15, 17 – विश्वास करने के साथ ही
- प्रेरितों
19:2 – विश्वास
करते समय
- इफिसियों
1:13-14 – विश्वास
करते ही छाप लगी
- गलातियों
3:2 – विश्वास
के समाचार से
- तीतुस
3:5 – नए जन्म
और पवित्र आत्मा का स्नान साथ ही
यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो प्रभु परमेश्वर की प्रतिज्ञा और वचन के आधार पर जानिए तथा विश्वास रखिए कि प्रभु ने उद्धार पा लेने के बाद आपको निःसहाय नहीं छोड़ दिया है, वरन आपकी सुरक्षा और मार्गदर्शन के लिए परमेश्वर पवित्र आत्मा आपके अंदर उसी क्षण से विद्यमान हैं, जिस क्षण आपने प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार किया और अपना जीवन प्रभु को समर्पित कर दिया। आपको पवित्र आत्मा के प्रति संवेदनशील होने, उनके कहे के अनुसार कार्य करने, और उनकी आज्ञाकारिता में बने रहकर अपनी मसीही सेवकाई को करते रहने की आवश्यकता है।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में
अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके
वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और
सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
प्रभु की प्रतिज्ञा के अनुसार, प्रभु के शिष्यों द्वारा
पवित्र आत्मा प्राप्ति से संबंधित दूसरी बात को हम कल के लेख में देखेंगे।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यिर्मयाह
30-31
- फिलेमोन 1