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सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

मसीही विश्वास एवं शिष्यता - 4

 

मसीही में विश्वास (2)

   कल हमने प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करने के अर्थ को देखना आरंभ किया था। हमने इसे समझने के लिए परमेश्वर के वचन बाइबल में से दो पदों, मत्ती 1:21 और यूहन्ना 1:12 को लिया था। हमने मत्ती 1:12 के आधार पर कल यह देखा था कि प्रभु यीशु मसीह का जन्म ही लोगों को उनके पापों से छुटकारा देने और सुरक्षित करने के उद्देश्य से हुआ था। प्रभु यीशु मसीह ही वे एकमात्र हैं जो मनुष्यों को उनके पापों से छुटकारा प्रदान कर सकते हैं, किसी भी मनुष्य के द्वारा अपने आप या अपने लिए यह कर पाना कभी संभव नहीं होने पाया था। किन्तु साथ ही हमने यह भी देखा था कि प्रभु यीशु मसीह द्वारा उपलब्ध करवाया गया यह छुटकारा और सुरक्षा उनके लिए ही उपलब्ध और कारगर जो प्रभु यीशु के लोग हैं। जिसे भी यह छुटकारा और सुरक्षा चाहिए उसे पहले प्रभु का जन बनना पड़ेगा, और तब प्रभु द्वारा उपलब्ध करवाया गया यह उपाय उसके जीवन में कार्यकारी हो सकेगा। प्रभु का जन बनने का तरीका हमें यूहन्ना 1:12 में दिया गया है - स्वेच्छा से प्रभु यीशु को ग्रहण करना, और उसके नाम पर विश्वास करना। प्रभु यीशु का जन होना किसी मानवीय पद्धति या क्रिया से, अथवा अन्य किसी प्रकार से संभव नहीं है। 

परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं” (यूहन्ना 1:12-13)। इन पदों का दूसरा अर्ध-भाग स्पष्ट कर देता है कि प्रभु यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करने वाले किसी मनुष्य के वंश अथवा प्रयास से नहीं वरन मसीह में अपने विश्वास के द्वारा “परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।”” और जिस विश्वास के द्वारा उनके लिए यह संभव हुआ है, वह प्रथम अर्ध-भाग के अंत में दिया गया है, “जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।” इस वाक्यांश में एक छोटा सा शब्द ‘पर प्रमुख किया गया है, क्योंकि वही इस बात को समझने की कुंजी है। यह वाक्यांश बता रहा है कि प्रभु यीशु मसीह को वे ग्रहण करते हैं, परमेश्वर की संतान वे बनते हैं जो “उसके नामपर विश्वास करते हैं। 

इसे समझने के लिए इन दोनों शब्दों, “उसके” और “यीशु” को देखिए। यूहन्ना 1 अध्याय में इन पदों से पहले के पदों को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि बात उस “वचन” अर्थात सृष्टिकर्ता परमेश्वर की हो रही है, जो देहधारी होकर जगत में आया। अर्थात “उसके” से अभिप्राय उस सृष्टिकर्ता परमेश्वर से है जिसने मानव देह में होकर जन्म लिया। इस मानव देह में अवतरित परमेश्वर का नाम “यीशु” रखा गया। शब्द हिन्दी का शब्द “यीशु” बाइबल के नए नियम खंड की मूल यूनानी भाषा के शब्द “ईएसोऊस (Iesous)” से आया है। यूनानी भाषा का नाम “ईएसोऊस” पुराने नियम की मूल इब्रानी भाषा के नाम “यहोशूआ” से आया है। इब्रानी भाषा का नाम “येहोशूआ” एक संयुक्त शब्द है, जो दो शब्दों, संज्ञा “यहोवा” एवं शब्द “शूआ” की संधि से बना है। संज्ञा “यहोवा” इब्रानी में परमेश्वर का नाम है; और इब्रानी शब्द “शूआ” का अर्थ होता है “मुक्ति देने वाला” या “स्वतंत्र करने वाला”। अर्थात मूल इब्रानी भाषा के अनुसार शब्द “यहोशूआ” और उससे निकले यूनानी शब्द “ईएसोऊस” तथा हिन्दी शब्द “यीशु” का अर्थ है “यहोवा ही मुक्ति या स्वतंत्रता देने वाला है”। इसलिए यूहन्ना 1:12 के वाक्यांश “जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं” का अभिप्राय हो गया “जो यह विश्वास रखते हैं कि यहोवा ही मुक्ति या स्वतंत्रता देने वाला है”।

अर्थात, यीशु पर विश्वास करने, उस ग्रहण करने और इस के कारण परमेश्वर की संतान हो जाने का तात्पर्य है, इस तथ्य को ग्रहण करना या अपने जीवन में स्वीकार करना तथा कार्यान्वित करना कि केवल प्रभु यीशु मसीह ही वह एकमात्र है जिसके द्वारा पापों से मुक्ति, नश्वर संसार से स्वतंत्रता मिल सकती है। प्रभु यीशु मसीह के अतिरिक्त और कोई मार्ग अथवा माध्यम या तरीका नहीं है, जैसा कि प्रभु यीशु मसीह ने स्वयं भी अपने विषय में कहा, “यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता” (यूहन्ना 14:6)। मनुष्यों के अपने किसी भी प्रयास, विधि, कर्म, धर्म, जीवन शैली, आदि के द्वारा उसे उसके पापों से यह मुक्ति या स्वतंत्रता कदापि नहीं मिल सकती है। यह केवल प्रभु यीशु मसीह के नाम पर लाए गए विश्वास द्वारा ही संभव है; किसी अन्य तरीके से नहीं। जो कोई भी स्वेच्छा और सत्य-निष्ठा से इस प्रकार प्रभु यीशु का जन हो जाएगा, मत्ती 1:21 के अनुसार, प्रभु यीशु उसे पापों से छुटकारा और सुरक्षा प्रदान करेगा, और वह परमेश्वर की संतान हो जाएगा। 

कल और आज के लेखों का सम्मिलित निष्कर्ष है कि परमेश्वर के वचन बाइबल के अनुसार प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने का अर्थ है यह ग्रहण करना और अपने जीवन में कार्यान्वित करना कि केवल और केवल प्रभु यीशु मसीह ही मुझे मेरे पापों से छुड़ा सकता है, सुरक्षित कर सकता है; और जब मैं इस बात को ग्रहण करके अपने आप को उसे समर्पित कर दूँगा, उसका जन बना जाऊँगा, तब प्रभु यीशु मुझे मेरे पापों से छुड़ा कर उनके दुष्प्रभावों से सुरक्षित भी कर देगा।   

कल हम कुछ ऐसी बातों के बारे में देखेंगे, जिन पर सामान्यतः लोग भरोसा रखते हैं कि उनके द्वारा वे प्रभु के जन बन जाएंगे और पापों से छुटकारा एवं सुरक्षा पा जाएंगे, किन्तु यह केवल उनका भ्रम है, बाइबल की सच्चाई नहीं। यदि आपने अभी तक अपने आप को प्रभु यीशु मसीह की शिष्यता में समर्पित नहीं किया है, और आप अभी भी अपने जन्म अथवा संबंधित धर्म तथा उसकी रीतियों के पालन के आधार पर अपने आप को प्रभु का जन समझ रहे हैं, तो आपको भी अपनी इस गलतफहमी से बाहर निकलकर सच्चाई को स्वीकार करने और उसका पालन करने की आवश्यकता है। आज और अभी आपके पास अपनी अनन्तकाल की स्थिति को सुधारने का अवसर है; प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  


 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यशायाह 20-22  

  • इफिसियों 6