टी.वी. पर दिखाया जाने वाला एक पुराना कार्यक्रम एक ऐसे स्थल पर आधारित था जहां कुछ लोग नियमित रूप से आते रहते थे। वे लोग इसलिए उस स्थल पर एकत्रित होते थे क्योंकि उन्हें वहां एक दूसरे से अपनी पहचान और स्वागत मिलता था, सब एक दुसरे को नाम से जानते थे। हम सब की चाह होती है कि हम अपने आस-पास के लोगों में स्वीकार किए जाएं, उनमें हमारी पहचान और हमारा महत्व हो।
लेकिन कुछ लोग जीवन के उन किनारों पर रहते हैं जहां उनके लिए यह मानना कठिन होता है कि उनका कोई महत्व या पहचान है, या किसी को उनकी कोई परवाह है। बच्चों में यह बात अकसर देखी जाती है, यदि कोई बच्चा अपने हम-उम्र बच्चों से अधिक लंबा, या मोटा, या कुशल हो जाता है या अन्य बच्चों के समान कुशल नहीं होने पाता, तो बाकी बच्चे उसकी उपेक्षा करते हैं, उसका मज़ाक उड़ाते हैं और उसका उपहास करते हैं। कोई व्यसक यदि अपने आस-पास के लोगों और उनके व्यवहार से भिन्न होता है तो उसे नज़रंदाज़ किया जाता है, उसे महत्वहीन और पहचानरहित महसूस करवाया जाता है।
लेकिन हमारे प्रभु परमेश्वर के साथ ऐसा कभी नहीं होता। हम उसके सामने और उसके स्वर्गदूतों के सामने कितने भी कम सामर्थी और कैसे भी अनाज्ञाकारी हों, उसने हमारी कीमत इतनी आंकी कि हमारे उद्धार के लिए अपने एकलौते पुत्र को भी ना रख छोड़ा, वरन उसे हमारे पापों की कीमत चुकाने के लिए बलिदान होने को दे दिया, जिससे उसके साथ फिर से हमारा संबंध स्थापित हो सके। वह कभी भी स्वर्गदूतों या अन्य महान और नामी विश्वासियों के सामने हमें किसी भी रीति से गौण महसूस नहीं होने देता, वरन उनके समान ही दर्जा देता है और स्वर्ग्दूतों को हमारी सेवा-टहल करने वाला बना दिया है (इब्रानियों १:१३-१४)। जो भी प्रभु यीशु में विश्वास और पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के पास आता है, वह परमेश्वर की संतान और स्वर्गीय वस्तुओं का वारिस हो जाता है। हम परमेश्वर के स्वरूप में सृजे गए हैं (उत्पत्ति १:२७), उसने हमारे जन्म से पहले ही हमारे लिए योजनाएं बनाईं हैं और वह हमारे जीवनों में रुचि रखता है (भजन १३९:१-१६)। उसका उद्देश्य हमें नीचा दिखाने का कभी नहीं होता, वरन वह सदा ही हमें ऊँचे पर रखना चाहता है।
चाहे संसार में या हमारी अपनी नज़रों में हमारा महत्व और पहचान हो या ना हो, हमारे परमेश्वर पिता की नज़रों में हमारा बहुत महत्व है "और मेरे लिये तो हे ईश्वर, तेरे विचार क्या ही बहुमूल्य हैं! उनकी संख्या का जोड़ कैसा बड़ा है" (भजन १३९:१७); उसने हमें अपनी संतान होने की पहचान दी है और उसका प्रेम सदा हमारे प्रति गहराई से बना रहता है। - सिंडी हैस कैस्पर
जिस परमेश्वर ने इस सृष्टि को सृजा, वही आपसे भी प्रेम तथा आपकी परवाह करता है।
जब मैं गुप्त में बनाया जाता, और पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता था, तब मेरी हडि्डयां तुझ से छिपी न थीं। - भजन १३९:१५
बाइबल पाठ: भजन १३९:१-१७
Psa 139:1 हे यहोवा, तू ने मुझे जांच कर जान लिया है।
Psa 139:2 तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है।
Psa 139:3 मेरे चलने और लेटने की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है।
Psa 139:4 हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो।
Psa 139:5 तू ने मुझे आगे पीछे घेर रखा है, और अपना हाथ मुझ पर रखे रहता है।
Psa 139:6 यह ज्ञान मेरे लिये बहुत कठिन है; यह गंभीर और मेरी समझ से बाहर है।
Psa 139:7 मैं तेरे आत्मा से भागकर किधर जाऊं? वा तेरे साम्हने से किधर भागूं?
Psa 139:8 यदि मैं आकाश पर चढूं, तो तू वहां है! यदि मैं अपना बिछौना अधोलोक में बिछाऊं तो वहां भी तू है!
Psa 139:9 यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़ कर समुद्र के पार जा बसूं,
Psa 139:10 तो वहां भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपने दाहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा।
Psa 139:11 यदि मैं कहूं कि अन्धकार में तो मैं छिप जाऊंगा, और मेरे चारों ओर का उजियाला रात का अन्धेरा हो जाएगा,
Psa 139:12 तौभी अन्धकार तुझ से न छिपाएगा, रात तो दिन के तुल्य प्रकाश देगी; क्योंकि तेरे लिये अन्धियारा और उजियाला दोनों एक समान हैं।
Psa 139:13 मेरे मन का स्वामी तो तू है; तू ने मुझे माता के गर्भ में रचा।
Psa 139:14 मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं।
Psa 139:15 जब मैं गुप्त में बनाया जाता, और पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता था, तब मेरी हडि्डयां तुझ से छिपी न थीं।
Psa 139:16 तेरी आंखों ने मेरे बेड़ौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहिले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे।
Psa 139:17 और मेरे लिये तो हे ईश्वर, तेरे विचार क्या ही बहुमूल्य हैं! उनकी संख्या का जोड़ कैसा बड़ा है।
एक साल में बाइबल:
- विलापगीत ३-५
- इब्रानियों १०:१९-३९