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बुधवार, 28 जुलाई 2010

मित्रों का मूल्य

जौन क्रिसोसटोम (सन ३४७-४०७) प्रारंभिक चर्च का एक महान प्रचारक था। उसके सुवक्ता होने के कारण उसे यह नाम क्रिसोसटोम दिया गया, जिसका अर्थ है ’सुनहले मुँह वाला’।

मित्र के मूल्य पर उसके द्वारा कही गई कुछ बातों को परखकर देखिये: "यह मित्रता ही है जिसके कारण हम स्थानों और ‌ऋतुओं को चाहते हैं; जैसे फूल अपनी मधुर पंखुड़ियां अपने चारों ओर की भूमि पर बिखेर देते हैं, ऐसे ही मित्र भी अपने आस पास सौहार्द और अनुग्रह बिखेर देते हैं। मित्रों के साथ दरिद्रता में भी आनन्द होता है। हमारे लिये यह अधिक भला होगा कि सूर्य जाता रहे बजाए इसके मित्र न रहें।"

दाऊद और योनातान की कहानी मित्रता के मूल्य को दिखाती है। यद्यपि योनातन का पिता राजा शाउल, अपने पागलपन में, दाऊद को मारने को फिर रहा था, दाऊद ने उस ही के पुत्र की मित्रता से हिम्मत पाई - "और योनातन दाऊद से प्रेम रखता था, ... क्योंकि वह उस से अपने प्राण के बराबर प्रेम रखता था" (१ शमुएल २०:१७)। उनका यह संबंध विश्वास, समझ-बूझ और प्रोत्साहन पर आधारित था। राजा शाऊल द्वारा किये जा रहे अनुचित उत्पीड़न को सहना दाऊद के लिये असंभव होता यदि परमेश्वर पर आधारित योनातान की मित्रता (१ शमुएल २०:४२) का पोषण उसे ना मिलता।

किंतु मित्रता का इससे भी ऊंचा स्तर हम प्रभु यीशु में देखते हैं, जिसने अपने अनुयायियों के प्रति अपनी मित्रता का मूल्य अपने प्राण से भी अधिक रखा "इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे" (यूहन्ना १५:१३)। आज भी उसका अपने मित्रों से वायदा है कि "मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा" (इब्रानियों १३:५)।

क्रिसोसटोम के वचन और दाऊद-योनातान की मित्रता के उदाहरण हमें याद दिलाते हैं कि परमेश्वर द्वारा दिये गये मित्रों की मित्रता को हमें कैसे संवारे रखना है, प्रभु यीशु हमें दिखाता है कि मित्रता का मूल्य क्या है। - डेनिस फिशर


जब संसार हमें छोड़ देता है तो मित्र ही हमारे साथ रहते है।


और योनातन दाऊद से प्रेम रखता था, ... क्योंकि वह उस से अपने प्राण के बराबर प्रेम रखता था" - १ शमुएल २०:१७

इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे। - यूहन्ना १५:१३

बाइबल पाठ: यूहन्ना १५:१२-१७
मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।
इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।
जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो।
अब से मैं तुम्हें दास न कहूंगा, क्‍योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्‍वामी क्‍या करता है: परन्‍तु मैं ने तुम्हें मित्र कहा है, क्‍योंकि मैं ने जो बातें अपके पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं।
तुम ने मुझे नहीं चुना परन्‍तु मैं ने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जाकर फल लाओ, और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से मांगो, वह तुम्हें दे।
इन बातें की आज्ञा मैं तुम्हें इसलिये देता हूं, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ४६-४८
  • प्रेरितों के काम २८