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रविवार, 12 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 18

 

पाप का समाधान - उद्धार - 14

       मनुष्य की अनाज्ञाकारिता के कारण पाप के संसार में प्रवेश के समाधान के बारे में देखते हुए, अभी तक हम देख चुके हैं कि: 

  • क्योंकि पाप का प्रवेश मनुष्य के द्वारा हुआ, उसका समाधान भी मनुष्य में होकर ही होना था। 
  • पाप के कारण मृत्यु जगत में आई; पाप के समाधान के द्वारा मृत्यु का यह प्रभाव मिटाया जाकर मनुष्य को वापस उस स्थिति में लाया जाना था जो अदन की वाटिका में पाप से पहले उसकी थी। 
  • इसके लिए यह आवश्यक था कि कोई ऐसा निष्पाप, निष्कलंक, पवित्र, सिद्ध मनुष्य हो जो पाप के कारण आई मृत्यु को स्वयं सह ले, और मनुष्यों पर से मृत्यु की पकड़ को मिटा दे। यदि मृत्यु को सहने वाले मनुष्य में अपना कोई पाप, या पाप का कोई दोष अथवा अंश होता, तो फिर वह उस मृत्यु को केवल अपने ही लिए सह सकता था, दूसरों को उसके लाभ प्रदान नहीं कर सकता था। 
  • इस कारण पृथ्वी पर जन्म लेने वाले मनुष्यों की सामान्य प्रणाली के अनुसार जन्म लेने वाला प्रत्येक मनुष्य इसके अयोग्य ठहरता, क्योंकि सभी पाप-दोष के साथ जन्म लेते हैं। इस संदर्भ में हमने पिछले दो लेखों में देखा कि कैसे प्रभु यीशु मसीह ने मनुष्यों के जन्म की सामान्य प्रणाली के द्वारा नहीं, वरन एक विशेष रीति से मनुष्य की देह में जन्म लिया और कोख में आने से लेकर क्रूस पर उनकी मृत्यु के समय तक एक पूर्णतः निष्पाप, निष्कलंक, पवित्र, और सिद्ध जीवन बिताया। न उनके जीवन काल में, और न तब से लेकर अब दो हज़ार वर्षों से भी अधिक के अंतराल में, कोई उनके जीवन में कोई भी पाप नहीं दिखा सका, उनमें पाप का दोष होने को प्रमाणित नहीं कर सका। 
  • अदन की वाटिका में पाप और मृत्यु ने मनुष्य की अनाज्ञाकारिता के द्वारा प्रवेश किया; और इस अनाज्ञाकारिता का कारण था मनुष्य का परमेश्वर की उनके लिए भली मनसा और योजनाओं पर संदेह करना था। मनुष्य के जीवन से पाप और मृत्यु का मिटाया जाना इस अनाज्ञाकारिता की प्रक्रिया को उलट देने से होना था। साथ ही इस आज्ञाकारिता के लिए मनुष्य को अपने जीवन पर्यंत, बिना परमेश्वर की किसी भी बात के लिए उस पर संदेह अथवा अविश्वास किए, स्वेच्छा से तथा भली मनसा के साथ परमेश्वर की पूर्ण आज्ञाकारिता में जीवन व्यतीत करना था। 

       आज से हम प्रभु यीशु मसीह द्वारा इस पूर्ण आज्ञाकारिता की शर्त को पूरा करने के बारे में देखेंगे। ऐसा नहीं है कि क्योंकि प्रभु यीशु परमेश्वर के पुत्र थे, क्योंकि वे पूर्णतः परमेश्वर और पूर्णतः मनुष्य थे, इसलिए उनके लिए यह आज्ञाकारिता सहज एवं सरल थी। प्रभु यीशु को भी अपने मनुष्य रूप में आज्ञाकारिता के लिए बहुत दुख और कष्ट सहने पड़े, परीक्षाओं और कठिनाइयों से होकर निकलना पड़ा। प्रभु यीशु की इस आज्ञाकारिता के विषय परमेश्वर के वचन बाइबल में लिखा गया है, “उसने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊंचे शब्द से पुकार पुकार कर, और आंसू बहा बहा कर उस से जो उसको मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई। और पुत्र होने पर भी, उसने दुख उठा उठा कर आज्ञा माननी सीखी। और सिद्ध बन कर, अपने सब आज्ञा मानने वालों के लिये सदा काल के उद्धार का कारण हो गया” (इब्रानियों 5:7-9); और “...वरन वह सब बातों में हमारे समान परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला” (इब्रानियों 4:15) 

शैतान ने उनके जन्म से पहले से लेकर, उनकी मृत्यु के समय तक उनके द्वारा यह कार्य संपन्न होने से रोकने का प्रयास करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी:

  • इसे समझने के लिए मत्ती 1:18-21 देखिए। जब प्रभु के सांसारिक पिता कहलाए जाने वाले व्यक्ति यूसुफ को पता चला कि उसकी मंगेतर मरियम, जिसमें होकर प्रभु यीशु ने जन्म लेना था, गर्भवती है, तो उसने उसे चुपके से छोड़ देने की योजना बनाई। उन दिनों में, मूसा द्वारा मिली व्यवस्था के अनुसार, व्यभिचार के दोषी को पत्थरवाह करके मार डाला जाता था (यूहन्ना 8:4, 5)। यदि यूसुफ मरियम को छोड़ देता, तो या तो उसके विवाह से पहले गर्भवती होने की बात खुल जाने पर मरियम को पत्थरवाह करके मार डाला जाता; या फिर मरियम त्यागी हुई स्त्री के समान अकेले ही समाज से तिरस्कृत जीवन जीने के लिए बाध्य हो जाती, और प्रभु भी जन्म के समय से ही तिरस्कृत और अपमानित, तथा समाज में अस्वीकार्य रहता; इस बात के लिए प्रभु को बाद में भी लोगों के ताने सुनने पड़े (यूहन्ना 8:41)। दोनों में से जो भी परिस्थिति कार्यान्वित होती, प्रभु का उद्धार का कार्य, आरंभ होने से पहले ही समाप्त हो जाता। किन्तु क्योंकि परमेश्वर के संदेश को सुन और मानकर यूसुफ ने मरियम को अपना लिया, शिशु यीशु को अपना नाम और परिवार दिया, इसलिए शैतान की यह योजना विफल हो गई। 
  • प्रभु के जन्म के बाद, हेरोदेस राज्य ने दो वर्ष की आयु से कम के बच्चों को मरवाने की आज्ञा देकर प्रभु को शिशु-अवस्था में ही मरवा डालने का प्रयास किया, किन्तु असफल रहा (मत्ती 2:13-16) 
  • प्रभु यीशु के वयस्क हो जाने और सेवकाई के आरंभ करने के समय वह लगातार चालीस दिन तक शैतान द्वारा परखा गया (लूका 4:1)। जब शैतान उसे पाप में नहीं गिरा सका, तोकुछ समय के लिए” (लूका 4:13) उसके पास से चला गया, किन्तु उसकी सारी सेवकाई भर लोगों, विशेषकर धर्म के अगुवों और धर्म-गुरुओं को उसके विरुद्ध भड़काता रहा, उसकी सेवकाई में बाधाएं डालता रहा।
  • धर्म-गुरुओं के षड्यंत्र के अंतर्गत (यूहन्ना 11:47-50), अन्ततः यीशु को पकड़ कर, रोमी गवर्नर पिलातुस को बाध्य कर के, प्रभु यीशु को क्रूस पर मार डाला गया।
  • क्रूस की अवर्णनीय पीड़ा सहते हुए भी, वहाँ पर भी उसका ठट्ठा उड़ाया जाना ज़ारी रहा (मत्ती 27:41; लूका 23:36); किन्तु प्रभु ने कोई अपशब्द नहीं कहा, या दुर्भावना नहीं रखी, वरन अपने सताने वालों की क्षमा की प्रार्थना ही की; कोई पाप नहीं किया (लूका 23:34) 
  • उसे क्रूस पर से उतर आने का प्रलोभन दिया गया, इस आश्वासन के साथ कि यदि वह ऐसा करेगा, तो वे लोग उस पर विश्वास कर लेंगे (मत्ती 27:40, 42)। यदि उनकी बात मानकर प्रभु क्रूस पर से उतर आता, तो बलिदान का कार्य अधूरा रह जाता, और असफल हो जाता। 
  • शैतान ने सोचा होगा कि अब यह प्रभु का अंत है; अब शैतान को रोकने वाला कोई नहीं रहा। किन्तु तीसरे दिन प्रभु यीशु के पुनरुत्थान ने उसकी सारी संतुष्टि और योजनाओं पर पानी फेर दिया। तब प्रभु के पुनरुत्थान के बाद भी शैतान ने प्रभु के पुनरुत्थान को ही झूठा ठहराने का षड्यंत्र कार्यान्वित कर दिया (मत्ती 28:13-15) 

किन्तु शैतान की हर चाल को प्रभु ने विफल किया, और दिखा दिया कि मानव-देह में शैतान की युक्तियों, प्रलोभनों, और परीक्षाओं का सामना करने, और उसे पराजित करने की क्षमता है। शैतान के इन सभी प्रयासों ने परमेश्वर के कार्य को बाधित करने के स्थान पर और अधिक प्रबल कर दिया। शैतान के ये प्रयास परमेश्वर के वचन में दी गई प्रभु यीशु से संबंधित भविष्यवाणियों को पूरा और प्रमाणित करने वाले तथ्य बन गए; प्रभु परमेश्वर की महिमा के, उसके सत्य के सदा जयवन्त रहने के उदाहरण बन गए। हम प्रभु द्वारा परमेश्वर की आज्ञाकारिता के विषय आगे अगले लेख में देखेंगे।

जिस प्रभु ने मानव देह में होकर यह दिखा दिया कि मनुष्य परमेश्वर की आज्ञाकारिता में रहते हुए, परमेश्वर की सहायता से शैतान का सामना कर सकता है, उसे पराजित कर सकता है, वही प्रभु परमेश्वर अपने शिष्यों को अपने पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से भर देता है, परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रभु यीशु के शिष्यों में उसी पल से आकर बस जाता है जब वे पापों से पश्चाताप करते हैं और अपने जीवन प्रभु को समर्पित कर देते हैं (इफिसियों 1:13-14)। प्रभु के साथ तथा पवित्र आत्मा की सहायता एवं मार्गदर्शन से हम मनुष्य भी शैतान पर जयवंत हो सकते हैं। क्या आपने प्रभु के इस अद्भुत उपहार को पा लिया हैयदि आप ने अभी भी उद्धार नहीं पाया है, अपने पापों के लिए प्रभु यीशु से क्षमा नहीं मांगी है, तो अभी आपके पास अवसर है। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा।

 

बाइबल पाठ: यूहन्ना:1-14

यूहन्ना 1:1 आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।

यूहन्ना 1:2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था।

यूहन्ना 1:3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।

यूहन्ना 1:4 उस में जीवन था; और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति थी।

यूहन्ना 1:5 और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया।

यूहन्ना 1:6 एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से आ उपस्थित हुआ जिस का नाम यूहन्ना था।

यूहन्ना 1:7 यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएं।

यूहन्ना 1:8 वह आप तो वह ज्योति न था, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिये आया था।

यूहन्ना 1:9 सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी।

यूहन्ना 1:10 वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहचाना।

यूहन्ना 1:11 वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया।

यूहन्ना 1:12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।

यूहन्ना 1:13 वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।

यूहन्ना 1:14 और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।

 

एक साल में बाइबल:

·      नीतिवचन 13-15

·      2 कुरिन्थियों