मुजे मेरी प्राथमिक शिक्षा के लिए अपने माता-पिता से दूर, एक अन्य परिवार के साथ रहना पड़ा था। वह परिवार मुझ से बहुत प्रेम करने और देखभाल करने वाला था, तथा मेरी देखरेख बहुत अच्छे से करता था। एक दिन एक पारिवारिक अवसर को मनाने के लिए सभी बच्चे एक स्थान पर एकत्रित हुए। उस सभा के दो भाग थे; पहले भाग में सभी बच्चों ने भाग लिया, और सब ने अपने अनुभव बताए; मैं भी उनमें सम्मिलित था। परन्तु दूसरे भाग में केवल वही बच्चे भाग ले सकते थे जो "सगे" थे, और मुझे नम्रता के साथ, सम्मिलित नहीं होने के लिए कहा गया। उस समय मुझे उस कटु सत्य का बोध हुआ कि मैं उस परिवार का सगा सदस्य नहीं था। वह परिवार मुझसे बहुत प्रेम करता था, बहुत अच्छे से मेरी देखभाल करता था, परन्तु मैं केवल उनके साथ रहने वाला एक जन था, उनके परिवार का सगा तथा वैध सदस्य नहीं था।
मेरे जीवन का यह अनुभव मुझे परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रभु यीशु मसीह के विषय यूहन्ना 1:11-13 में लिखी बात स्मरण करवाता है। परमेश्वर का पुत्र, प्रभु यीशु मसीह, अपनों के मध्य आया, परन्तु उन्होंने उसका तिरिस्कार कर दिया। परन्तु परमेश्वर ने उसे ही मनुष्यों के लिए परमेश्वर के परिवार का सदस्य बनने का माध्यम बना दिया। जो कोई भी साधारण विश्वास के साथ उसे ग्रहण करता है, अपना जीवन उसे समर्पित करता है, वह परमेश्वर के परिवार का सदस्य हो जाता है, चाहे उसका जन्म किसी भी परिवार में क्यों न हुआ हो। परमेश्वर के परिवार का सदस्य बनने का आधार हमारा सांसारिक परिवार और उसका विश्वास, रीतियाँ या मान्यताएं नहीं है, वरन हमारे द्वारा स्वेच्छा से प्रभु यीशु मसीह पर लाया गया विश्वास और उसके प्रति हमारा समर्पण है; हम चाहे किसी भी परिवार में क्यों न जन्मे हों और पले-बड़े हुए हों। जब हम अपने द्वारा लिए गए निर्णय से परमेश्वर के परिवार का अंग बनते हैं, तब ही "आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं" (रोमियों 8:16)।
जो कोई भी परमेश्वर पिता के पास प्रभु यीशु में होकर आता है, उसकी लेपालक संतान बनता है, परमेश्वर कभी उसे अस्विकार नहीं करता है, वरन उन्हें अपने परिवार का वैध और सगा सदस्य बना लेता है। परन्तु जो भी प्रभु यीशु पर विश्वास और समर्पण की इस साधारण सी आवश्यकता को पूरा नहीं करता है, वह चाहे परमेश्वर के प्रेम और देखभाल को कितना भी अनुभव कर ले, वह परमेश्वर के परिवार का वैध तथा सगा सदस्य नहीं है; अन्ततः उसे अलग होना ही होगा।
अपने जन्म के सांसारिक परिवार को अपने अनन्त का आधार न बनाएं; आपने चाहे जिस भी परिवार में जन्म क्यों न लिया हो, सुखद अनन्त के लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के परिवार के सदस्य बन जाएं। - लॉरेंस दरमानी
उद्धार आप क्या जानते हैं से नहीं,
वरन प्रभु यीशु को जानने-मानने से सुनिश्चित होता है।
सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं: क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं। - रोमियों 8:1
बाइबल पाठ: यूहन्ना 1:1-14
John 1:1 आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।
John 1:2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था।
John 1:3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।
John 1:4 उस में जीवन था; और वह जीवन मुनष्यों की ज्योति थी।
John 1:5 और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया।
John 1:6 एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से आ उपस्थित हुआ जिस का नाम यूहन्ना था।
John 1:7 यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएं।
John 1:8 वह आप तो वह ज्योति न था, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिये आया था।
John 1:9 सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी।
John 1:10 वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना।
John 1:11 वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया।
John 1:12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।
John 1:13 वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।
John 1:14 और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।
एक साल में बाइबल:
- भजन 70-71
- रोमियों 8:22-39