नवंबर
2015 में, मुझे पता चला कि मुझे दिल के ऑपरेशन की आवश्यकता है। मैं चकित तथा
विचलित हुआ, और स्वाभाविक था कि मैं अपनी मृत्यु की संभावना के विषय भी विचार
करता। क्या कोई ऐसा संबंध था जिसमें कुछ सुधर करने की आवश्यकता थी? क्या मेरे
परिवार के लिए आर्थिक बातों का प्रावधान करना था? क्या वह समय आने से पूर्व कोई
कार्य करना आवश्यक था? क्या कोई ऐसा कार्य था, जिसे टाला नहीं जा सकता था; उसे
किसे सौंपना था? मेरे लिए वह समय कार्य करने तथा प्रार्थना करने का समय था।
परन्तु
मेरी स्थिति ऐसी थी कि मैं न कार्य कर सकता था और न ही प्रार्थना करने पा रहा था।
मेरा
शरीर और मन दोनों ही बहुत थके हुए थे, इतने कि बहुत सामान्य सा काम करना भी मुझ से
नहीं हो पा रहा था; और जब मैं प्रार्थना करने का प्रयास करता तो शीघ्र ही मेरा
ध्यान भटक कर मेरी शारीरिक स्थिति की ओर चला जाता, और कमज़ोर हृदय के कारण साँस
लेने में होने वाली दिक्कत से मुझे शीघ्र ही नींद आ जाती थी। यह सब मेरे लिए बहुत
निराशाजनक था – न मैं कुछ कर सकता था, और न ही परमेश्वर से प्रार्थना कर सकता था
कि मुझे जीवन प्रदान करे जिससे मैं अपने परिवार के साथ और समय बिता सकूँ।
मुझे
सबसे अधिक परेशान मेरे प्रार्थना न कर पाने ने किया। परन्तु जिस प्रकार से हमारा
परमेश्वर पिता, हमारी शारीरिक आवश्यकताओं के लिए प्रावधान करता है, उसी प्रकार से
उसने मेरी इन परिस्थितियों के लिए भी प्रावधान किया हुआ था, क्योंकि वह जानता था
कि मेरे साथ क्या हो रहा है। मुझे बाद में समझ आया कि हमारी ऐसी परिस्थितियों के
लिए उसने हमारे लिए दो प्रावधान किए हैं: पहला, जब हम प्रार्थना करने में असक्षम
होते हैं, तो पवित्रात्मा हमारे लिए प्रार्थना करता है (रोमियों 8:26), तथा हमारे
लिए परमेश्वर के अन्य जन भी प्रार्थनाएं करते हैं (याकूब 5:16; गलातियों 6:2)।
मेरे
लिए यह बहुत ही दिलासा देने वाला था कि पवित्र आत्मा परमेश्वर पिता के सम्मुख मेरे
लिए निवेदन कर रहा था। और फिर एक और अचरज की बात सामने आई, जब मेरे मित्र और परिवार
जन मुझ से पूछते थे कि मेरे लिए वे किन विषयों पर प्रार्थना करें, तो यह भी स्पष्ट
होता गया कि मैं जो उन्हें कहता था, वह परमेश्वर द्वारा मेरी की गई प्रार्थना के
रूप में ग्रहण किया जा रहा था।
अनिश्चितता
और परेशानी के समय में यह जानना कितना सांत्वना देने वाला होता है कि परमेश्वर
हमारे हृदय की बात को हमारी प्रार्थना के समान सुनता है, चाहे हम उसे पुकार भी न
पा रहे हों। - रैंडी किल्गोर
परमेश्वर अपने बच्चों की प्रार्थनाओं की
कभी अनसुनी नहीं करता है।
जब मैं मूर्छा खाने लगा, तब मैं ने यहोवा को स्मरण किया; और मेरी प्रार्थना
तेरे पास वरन तेरे पवित्र मन्दिर में पहुंच गई। - योना 2:7
बाइबल पाठ: रोमियों 8:22-28
Romans 8:22 क्योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।
Romans 8:23 और केवल वही नहीं पर हम भी जिन
के पास आत्मा का पहिला फल है, आप ही अपने में कराहते हैं;
और लेपालक होने की, अर्थात अपनी देह के
छुटकारे की बाट जोहते हैं।
Romans 8:24 आशा के द्वारा तो हमारा उद्धार
हुआ है परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है जब वह देखने में आए, तो फिर आशा कहां रही? क्योंकि जिस वस्तु को कोई देख
रहा है उस की आशा क्या करेगा?
Romans 8:25 परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं
देखते, यदि उस की आशा रखते हैं, तो धीरज
से उस की बाट जोहते भी हैं।
Romans 8:26 इसी रीति से आत्मा भी हमारी
दुर्बलता में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते,
कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु
आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे
लिये बिनती करता है।
Romans 8:27 और मनों का जांचने वाला जानता
है, कि आत्मा की मनसा क्या है क्योंकि वह पवित्र लोगों के
लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिनती करता है।
Romans 8:28 और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये
सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात उन्हीं
के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।
एक साल में बाइबल:
- यशायाह 5-6
- इफिसियों 1