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गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

परमेश्वर का वचन – बाइबल, और विज्ञान / Word of God – Bible & Science – 11

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बाइबल और जीव-विज्ञान - 4 - जन्तुओं का व्यवहार


      हमने पिछले तीन लेखों में देखा है कि जीव-जंतुओं और मनुष्यों से संबंधित कितनी ही बातें हैं जिनका क्रमिक विकासवाद (Evolution) के पास आज भी कोई उत्तर नहीं है। हम यह भी देख चुके हैं कि क्रमिक विकासवाद और विज्ञान के नाम पर सब कुछ जो हमें पढ़ाया और बताया जाता रहा है वह सत्य नहीं है, और न ही सभी तथ्यों का सही प्रकटीकरण अथवा व्याख्या है; बहुत सी असुविधाजनक बातों को, जिनके कोई संतोषजनक उत्तर विज्ञान या वैज्ञानिकों के पास नहीं हैं, उन्हें दबा दिया जाता है, या टाल दिया जाता है। हम सामान्यतः क्रमिक विकासवाद को केवल इसलिए सच और सही मान लेते हैं क्योंकि यह बचपन से हमें विज्ञान और सत्य बताकर पढ़ाया जाता है, हमारे मनों में बैठा दिया गया है, जबकि वास्तविकता इससे बहुत भिन्न है।


    हमारे चारों ओर कुछ बातें तो इतनी सामान्य हैं कि अधिकांशतः हम उन बातों पर कुछ विशेष ध्यान दिए बिना, उन्हें यूं ही स्वीकार कर लेते हैं, और उनके विषय क्रमिक विकासवाद की चुप्पी पर ध्यान भी नहीं करते हैं। ऐसी ही कुछ बातों पर ध्यान कीजिए:

  • विज्ञान के इतने उन्नत और जटिल यंत्रों से लैस वायु-यान और जल-पोत भी दिशा भटक जाते हैं, और इस कारण दुर्घटना-ग्रस्त हो जाते हैं; किन्तु छोटा सा पक्षी, कबूतर, जिसका पूरा मस्तिष्क हमारे अंगूठे के सिरे के बराबर भी नहीं होता, वह कभी दिशा नहीं भटकता है; कहीं से भी छोड़ा जाए, वह अपने ‘घर’ पहुँच जाता है। 

  • कुछ समुद्री मच्छलियाँ हैं जो अंडे देने के लिए मीठे जल की नदियों में पानी के प्रवाह की विपरीत दिशा में जाती हैं, और नदी में उसी स्थान पर जाकर अंडे देती हैं, जहाँ पर वे स्वयं अंडों से निकलकर और फिर पानी के साथ बहकर समुद्र में पहुंची और बड़ी हुईं। वे पली और बड़ी समुद्र में हुईं, वहीं इधर से उधर विचरण करती हैं; किन्तु उन्हें अपने जन्म का स्थान और नदी, उसकी भौगोलिक स्थिति, याद है, जबकि सागर में न जाने कितनी नदियां मिलती रहती हैं। कौन उन्हें यह सिखाता और उस स्थान का सटीक पता बताता है? 

  • उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रों की कुछ तितलियाँ हैं जो जब उनके अंडे देने का समय आने लगता है, तो लाखों की संख्या में लगभग 2500 मील की यात्रा करके मध्य तथा दक्षिणी अमेरिका में जा कर ही अंडे देती हैं, और उनकी अगली पीढ़ी जन्म लेने के बाद स्वतः ही वहाँ से वापस उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रों में लौट कर आती है; और अपनी अगली पीढ़ी को जन्मे देने के लिए वे फिर वहीं दक्षिण की ओर लौट कर जाती हैं, और यह चक्र चलता ही रहता है। 

  • उत्तरी ध्रुव के निकट के क्षेत्रों के कुछ पक्षी हैं जो हर वर्ष ठंड आरंभ होने से पहले दक्षिण की ओर हजारों मील उड़ कर पहुंचते हैं। वहाँ अंडे देते और अपनी अगली पीढ़ी को जन्म देते हैं, और सर्दियाँ समाप्त होने तथा गर्मियों का आरंभ होने पर फिर अपने ठन्डे इलाके को लौट जाते हैं। पृथ्वी का यह भूगोल और मौसम ज्ञान तथा समझ उन में कैसे आई? वे कैसे उन्हीं स्थानों पर प्रति वर्ष लौट कर आ जाते हैं जहाँ उनका जन्म हुआ था? जबकि उनसे कहीं अधिक और उन्नत बुद्धि वाला मनुष्य एक छोटे से जंगल में, यहाँ तक कि अपने ही शहर में भी दिशा भटक जाता है, स्थान नहीं स्मरण रख पाता है। 

  • एक नया जन्मा हुआ कीट, जैसे कि मकड़ी, या छिपकली, या अन्य जन्तु जिनकी परवरिश उनके माता-पिता नहीं करते हैं, वे कैसे अपने भोजन को पहचानने और पकड़ने की कला सीख लेते हैं; मकड़ी को उसका अद्भुत जाला बनाना कौन सिखाता है?


प्रकृति और जीव-जंतुओं, वनस्पतियों की ऐसी ही अनगिनत बातें हैं जिनके लिए क्रमिक विकासवाद या विज्ञान के पास कोई संतोषजनक उत्तर नहीं है। उपरोक्त तथा उनके समान बातों के लिए उन्हें जीव-जंतुओं के नैसर्गिक गुण (animal instinct) कहकर टाल दिया जाता है, किन्तु यह कोई नहीं बताता और समझाता है कि ये नैसर्गिक गुण कभी तो उत्पन्न हुए होंगे, कहीं से तो आए होंगे; तो उनका यह आरंभ कहाँ से और कैसे हुआ था?


किन्तु बाइबल का परमेश्वर हमें बताता है कि ये और ऐसे सभी गुण, सभी प्राणियों में उसने दिए हैं, उसकी सृष्टि की योजना का भाग हैं; उसकी बुद्धिमता और कार्य-कौशल तथा महानता का प्रमाण हैं। लगभग 4000 वर्ष प्राचीन अय्यूब की पुस्तक में परमेश्वर इन्हीं बातों को आधार बना कर अय्यूब से उनके विषय प्रश्न करता है, कि क्या उसमें यह सब समझने और जानने की समझ तथा क्षमता है (अय्यूब 39 अध्याय)। 


इन्हीं बातों को आधार बना कर परमेश्वर अपने लोगों से, उनकी परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारिता के लिए उलाहना देता है “आकाश में लगलग भी अपने नियत समयों को जानता है, और पणडुकी, सूपाबेनी, और सारस भी अपने आने का समय रखते हैं; परन्तु मेरी प्रजा यहोवा का नियम नहीं जानती” [Even the stork in the heavens Knows her appointed times; And the Turtledove, the Swift, and the Swallow observe the time of their coming. But My people do not know the judgment of the Lord] (यिर्मयाह 8:7)। साथ ही इन छोटे और नगण्य प्रतीत होने वाले जीवों में जो गुण उसने डाले हैं, उन से शिक्षा लेने की भी सलाह देता है “पृथ्वी पर चार छोटे जन्तु हैं, जो अत्यन्त बुद्धिमान हैं: च्यूटियां निर्बल जाति तो हैं, परन्तु धूप काल में अपनी भोजन वस्तु बटोरती हैं; शापान बली जाति नहीं, तौभी उनकी मान्दें पहाड़ों पर होती हैं; टिड्डियों के राजा तो नहीं होता, तौभी वे सब की सब दल बान्ध बान्ध कर पलायन करती हैं; और छिपकली हाथ से पकड़ी तो जाती है, तौभी राजभवनों में रहती है” (नीतिवचन 30:24-28)। बाइबल में ऐसे ही अनेकों अन्य खंड और पद हैं जो सृष्टि की हर बात में परमेश्वर की बुद्धिमता और ज्ञान के विषय बताते हैं।

 

बाइबल काल्पनिक किस्से-कहानियों की पुस्तक नहीं, परमेश्वर का सत्य वचन है। परमेश्वर का अपने विषय एक सीमित प्रकटीकरण है। जो थोड़ा सा उसने हम पर प्रकट किया है, वही इतना अद्भुत, विलक्षण, और अनुपम है, कि दाऊद ने कहा “यह ज्ञान मेरे लिये बहुत कठिन है; यह गम्भीर और मेरी समझ से बाहर है” (भजन 139:6)। जब परलोक में हम उसके सामने होंगे, तब परमेश्वर के लोगों के लिए जो तैयार किया गया है उसके विषय परमेश्वर ने लिखवाया, “परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ीं वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखने वालों के लिये तैयार की हैं” (1 कुरिन्थियों 2:9) - साधारण शब्दों में, वे बातें इतनी अद्भुत हैं कि हम मानवीय बुद्धि और क्षमता से उनकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।


अब यह आपको निर्णय लेना है कि आप किस की मानेंगे, किस पर विश्वास करेंगे - विज्ञान और तथ्यों के नाम पर बदलती रहने वाली बातों को सिखाने वालों पर; या कभी न बदलने वाले, कभी झूठ न बोलने, सदा हमारा भला ही चाहने और करने वाले परमेश्वर पर? उस प्रेमी सच्चे सृष्टिकर्ता परमेश्वर पर जिसने हम से इतना प्रेम किया है कि हमारे उद्धार के लिए अपने पुत्र तक को बलिदान कर दिया, जिससे कि उसकी अनाज्ञाकारिता और अवहेलना करते रहने वाले हम पापी मनुष्यों को उससे मेल-मिलाप कर लेने, उसके पास लौट आने का मार्ग मिल सके? यदि आपने परमेश्वर के पक्ष में अपना निर्णय लिया है, तो आपके द्वारा स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों के प्रति पश्चातापी मन के साथ आप के द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना “हे प्रभु यीशु, मैं मान लेता हूँ कि मैंने मन, ध्यान, विचार, व्यवहार में जाने-अनजाने पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आप ने मेरे पापों के दंड को अपने ऊपर लेकर मेरे बदले में उनकी सज़ा को क्रूस पर बलिदान देकर पूरा कर दिया है। कृपया मेरे पाप क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, मेरे पापी मन और जीवन को बदल कर अपना मुझे अपने साथ ले लें” आपके जीवन को बदल देगी, पापी मन को बदल कर आपको परमेश्वर की संतान बना देगी।


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English Translation


Bible and BioSciences - 4 - Animal Behavior


In the previous three articles on the Bible and BioSciences, we have seen  that there are many things related to animals and humans for which evolution has no answer even today. We have also seen that everything that has been taught and told to us in the name of evolution and “science” is not always the truth; and an honest, correct disclosure or explanation of all scientific facts and data is also not always done. Many inconvenient things for which science or scientists have no satisfactory answers are suppressed, or avoided being brought to the knowledge of the general public. We generally accept evolution as true and correct simply because it has been taught to us from childhood and because simultaneously it has been ingrained in our minds that what is being taught to us in the name of science is the truth; whereas, the reality is very different from this.

 

Some things around us are so common that we often just take them for granted, without paying any special attention to them, and ignore the silence of evolution about them. Consider a few such generally known, but scarcely pondered over things of animal behavior:

  • Even aircraft and ships equipped with highly advanced and complex navigation instruments made by science lose their way, and because of this they suffer accidents. But a little bird, the pigeon, whose entire brain is not even the size of our thumb, never loses its location and direction; left off anywhere, it reaches its 'home'.

  • There are some marine fish that very laboriously swim against the direction of the flow of water in freshwater rivers, going a great distance upstream just to lay their eggs. They lay their eggs at the same place in the river, where they had hatched from the eggs themselves and then had floated downstream with the water, reached the sea and grew into an adult in the sea, where it swims around from here to there. But, although so many rivers around the world end up in the ocean, it remembers the place of its birth, the river it hatched in, its geographical location, and reaches that precise place for laying its eggs. Who would teach these fishes this, tell the exact address of that place, and why? Why does it need to go into a freshwater river just to lay eggs; and that too into the exact river that it had hatched in?

  • There are some butterflies in North America, which when the time comes for their egg laying, then millions of those butterflies, in swarms, travel about 2500 miles to Central and South America to just lay their eggs, and that is where their next generation is born. The new generation then automatically returns from there to areas of North America, where they live. And to give birth to their next generation, they then go back there to the south, and this cycle continues. Any rational explanation that evolutionists can give for this?

  • There are some birds from the regions near the North Pole that fly thousands of miles to the south every year before the onset of cold. There they lay eggs and give birth to their next generation, and return to their cooler regions when winter ends and summer begins. How did this knowledge and understanding of Earth's geography and weather come to them? How do they come back every year to the same places where they were born? Whereas a man with much more advanced intelligence and abilities than them, easily gets lost even in a small forest, or even in his own city, being unable to remember or find the places around him!

  • How do newly born insects or creatures, such as a spider, or lizard, or other animals, that are not raised by their parents, learn the art of recognizing and catching their food, immediately after being born? Who teaches the spider to make its wonderful web, that amazes science and scientists even today?

There are innumerable such things about nature, animals, and plants all around us, for which evolution or science has no satisfactory answer. For the above mentioned and other similar things, answers are avoided by the evolutionists, by calling them the natural behavior and instincts of animals; but no one is able to tell and explain how and why these so-called natural instincts “evolved” in them? Since they must have arisen in some past generation at some time, they must have come from somewhere; So, where and how did this “evolution” start?


But the God of the Bible tells us that these and all such qualities He has put in all creatures as part of His plan of creation; They are evidence of His intelligence, skill and abilities, and greatness. In the book of Job, which is about 4000 years old, God, on the basis of these things, questions Job and asks him if he has the knowledge and ability to understand and know all this (Job chapter 39).


Based on these things, God has rebuked His people for their disobedience to God. “Even the stork in the heavens Knows her appointed times; And the turtledove, the swift, and the swallow Observe the time of their coming. But My people do not know the judgment of the Lord” (Jeremiah 8:7). While at the same time, He also advises us to learn from the qualities he has instilled in these small and seemingly insignificant creatures, "There are four things which are little on the earth, But they are exceedingly wise: The ants are a people not strong, Yet they prepare their food in the summer; The rock badgers are a feeble folk, Yet they make their homes in the crags; The locusts have no king, Yet they all advance in ranks; The spider skillfully grasps with its hands, And it is in kings' palaces” (Proverbs 30:24-28). There are many other similar passages and verses in the Bible that speak of God's wisdom and knowledge in everything in creation.


The Bible is not a book of fiction and imaginary tales, but the true Word of God. God has given to us only a limited revelation about Himself. What little He has revealed to us is so wonderful, astounding, and unparalleled, that David said, “Such knowledge is too wonderful for me; It is high, I cannot attain it” (Psalm 139:6). God got written in His Word about what He has prepared for His people, once they are with Him after their earthly life, "But as it is written: Eye has not seen, nor ear heard, Nor have entered into the heart of man The things which God has prepared for those who love Him” (1 Corinthians 2:9) - in simple words, the things about God and heaven are so wonderful that we cannot even imagine about them with our human intelligence and abilities.


Now it is up to you to decide whom you will believe, whom you will put your faith upon - those who avoid truth and teach contrived facts and things that keep changing in the name of “science”; Or on God who never changes, never tells lies, always wants and does everything for our best? Are you willing and ready to put your trust in the true, loving, Creator God who has loved us so much that He even sacrificed His Son for our salvation, so that we sinners who have been disobedient to Him, and been deliberately ignoring Him, may be reconciled to Him, may have the way to return back to Him? If you have made your decision in God's favor, a short prayer, "Lord Jesus, I confess that, in my mind, thought, attitudes, and behavior I have knowingly or unknowingly committed sins. I accept and believe that you have taken my sins upon yourself and fulfilled the punishment for my sins by your sacrifice on the Cross of Calvary, for me. Please forgive my sins, take me under your care, change my sinful mind and life and take me with you" said by you voluntarily, willingly, and sincerely, while repenting of your sins, will change your life, change you from being a sinner, into being a blessed child of God.


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